Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उत्तर प्रदेश के किसानों ने छोड़ी गन्ना-गेहूं की खेती! लाखों कमाई के लिए अपनाया ये नया तरीका

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 06:30 AM (IST)

    रामपुर के धनोरा गांव में किसान गन्ना और गेहूं की खेती छोड़कर मछली पालन कर रहे हैं जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधर रही है। रेतीली जमीन और सिंचाई की समस्या के कारण किसानों ने यह बदलाव किया। अब यह गांव मछली और अंडों के उत्पादन के लिए मशहूर है जहाँ से विभिन्न राज्यों में सप्लाई होती है।

    Hero Image
    मछली पालन कर कमा रहे अधिक लाभ, आत्मनिर्भर हो रहे किसान।

    विनोद कुमार गंगवार, रामपुर।  क्षेत्र के गांव धनोरा के कई किसानों ने गन्ना, गेहूं-धान समेत अन्य फसलों को उगाना छोड़कर मछली पालन शुरू किया है। इससे वे अधिक आर्थिक लाभ कमाकर संपन्न हो रहे हैं। इनसे प्रेरित होकर किसानों का रुझान मछली पालन की ओर बढ़ रहा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मत्स्य पालकों के अनुसार, वे पहले तहसील के कई गांवों में रहने वाले किसानों की तरह गन्ना, गेहूं, धान, बाजरा और जौ समेत अन्य फसलें उगाते थे। यहां की भूमि रेतीली होने पर फसलों की सिंचाई बार-बार करनी पड़ती थी। नहरे और नदियां नहीं होने के कारण किसानों को फसलों की सिंचाई पंपिंगसेट चलाकर करनी पड़ती थी।

    फसलों की सिंचाई में खर्च होने वाले डीजल को खरीदने पर किसानों को आर्थिक बोझ पड़ता था। किसानों को फसल काटने के बाद मुनाफे से अधिक लागत में खर्च आता था। इसकी बाद गांव के किसानों ने मछली पालन करने का निर्णय लिया। अब गांव मछली पालन, उनके अंडों और बच्चे उत्पादन के लिए मशहूर है।

    पारंपरिक खेती के साथ-साथ किसानों ने अपनी आय को बढ़ाने के लिए मछली पालन करना शुरू किया था। शुरुआत में यहां के किसान बिचौलियों के माध्यम से अपनी मछलियों, उनके अंडों और बच्चों को बेचा करते थे।

    कुछ ही समय बाद किसान बिचौलियों के चुंगल से बाहर निकले और आत्मनिर्भर बने। अब यहां के किसान अपनी मछलियां और उनके अंडों को सीधे व्यापारियों को बेचकर लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं।

    गांव में भारतीय मछलियां जैसे रोहू, कत्ला और नारायण के साथ-साथ विदेशी प्रजाति कामन कार, ग्रास कार, सिल्वर कार आदि मछलियों और उनके अंडों और बच्चों का विक्रय किया जाता है। मार्च से सितंबर के दौरान अंडे देने का सीजन होता है। मछलियों को सबसे पहले ब्रीडिंग पूल में रखा जाता है। वहां पर वह अंडों को देती हैं।

    इसके बाद अंडों को आटो पूल में नियंत्रित तापमान पर रखा जाता है। वहां अंडों से बच्चे बन जाने के बाद उन्हें चाइनीज पूल में शिफ्ट कर दिया जाता है। मछली और उनके बच्चों की राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली आंध्र प्रदेश, गुजरात और नेपाल आदि जगह सप्लाई होती हैं।

    भरपूर बिजली का वादा, आपूर्ति न मिलने से मछली पालन में बाधा मिलक

    गांव में 20 से अधिक फिश हैचरी हैं। इनमें मछली पालन, अंडा उत्पादन और बच्चे बेचे जाते हैं। गांव मछली पालन में प्रदेश में जाना जाता है। लेकिन, मछली उत्पादकों के लिए बिजली आपूर्ति समस्या बनी हुई है। गांव की काकू फिश हैचरी चलने वाले गुरप्रीत सिंह का कहना है कि हैचरी के लिए 24 घंटे बिजली चाहिए, जो नहीं मिल पा रही है।

    हैचरी के लिए सोलर पावर प्लांटों की मांग पूरी हो जाए तो काफी राहत मिलेगी। फौजी फिश हैचरी चलाने वाले लच्छूराम दिवाकर का कहना है कि बिजली बड़ी समस्या है। तालाबों को भरने के लिए पंपिंगसेट चलाने पड़ते हैं। यदि बिजली मिले तो यह काम आसान हो जाए और डीजल की बचत होगी।

    गुरुकृपा हैचरी के मालिक बलबीर सिंह का कहना है कि हैचरी को देखने बड़े बड़े अधिकारी आते हैं। वे भरपूर बिजली का आश्वासन देकर चले जाते हैं, पर समस्या बनी हुई है। डियू फिश हैचरी के मालिक गुरजीत सिंह बताते हैं कि उन्होंने सरकार के हैचरियों को भरपूर बिजली देने के वादे पर खेती को छोड़ मछली पालन को अपनाया था।

    24 घंटे में 10 या 15 घंटे बिजली आती है। इसलिए मजबूर में पंपिंगसेट चलाते हैं, जिससे लागत बढ़ जाती है। गिल फिश हैचरी के मालिक गुरदीप सिंह का कहना है कि देश के कोने कोने से बड़े कारोबारी मछली के बच्चे खरीदने के लिए आते हैं। लेकिन नगर से हैचरियों तक आने वाला कुंदनपुर मार्ग हालत खस्ता हालत में है। कारोबारी हमारे यहां से मछली के बीज खरीदने में हाथ खींचने लगे हैं।