रामपुर में CRPF सेंटर पर आतंकी हमले की जांच रिपोर्ट में मिली लापरवाही, HC ने दिया ये आदेश
वर्ष 2007 में रामपुर सीआरपीएफ सेंटर पर हुए आतंकी हमले की जांच में हाईकोर्ट ने लापरवाही पाई है। अदालत ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई के आदेश दिए हैं। चश्मदीद गवाहों की गलती और सबूतों की कमी के कारण आरोपियों को बरी कर दिया गया। सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है और जांच के लिए कमेटी गठित हो सकती है। शस्त्र अधिनियम के तहत सजा बरकरार रखी गई है।

जागरण संवाददाता, रामपुर। वर्ष 2007 में 31 दिसंबर की आधी रात जब देशवासी नववर्ष के आगमन को लेकर जश्न मना रहे थे तब हुए आतंकी हमले में सात सीआरपीएफ जवान व एक रिक्शा चालक बलिदान हो गए थे। इस प्रकरण में स्थानीय अदालत ने पांच लोगों को गुनहगार मानते हुए फांसी व आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
मगर प्रयागराज हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद अभियोजन पक्ष के तथ्यों को कमजोर मानते हुए सजा रद कर दी है। साथ ही विवेचना में लापरवाही का उल्लेख करते हुए संंबंधित पुलिसकर्मियों व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी कहा है। ऐसे में तत्कालीन पुलिसकर्मियों व अधिकारियों के रिकार्ड खंगाले जाने लगे हैं।
रामपुर स्थित सीआरपीएफ ग्रुप केंद्र पर आधी रात को जब आतंकियों ने हमला बोला था तब सिविल लाइंस में तैनात उपनिरीक्षक ओम प्रकाश शर्मा वहीं ड्यूटी बजा रहे थे। हालांकि, एके-47 रायफलों और हैंड ग्रेनेड के सामने वह बेबस थे। इसके बावजूद उन्होंने एक दीवार की ओट में छिपकर हमले की सूचना सीओ, एसपी समेत पुलिस कंट्रोल रूम को दी थी।
मगर जब तक पुलिस ने घेराबंदी की तब तक आतंकी
अपना काम पूरा कर जा चुके थे। इसके बाद तत्कालीन एसपी संजीव गुप्ता के निर्देशन में प्रकरण की विवेचना सिविल लाइंस थाने के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक सतपाल शर्मा ने की थी। मगर लगभग एक महीने के बाद विवेचना एसटीएफ लखनऊ को स्थानांतरित कर दी गई थी। एसटीएफ की टीम ने ही घटना के आरोपितों को गिरफ्तार किया था। घटना के दौरान मौके पर मौजूद दारोगा ओम प्रकाश शर्मा ने उनकी शिनाख्त भी की थी।
एसटीएफ की ओर से लगाई गई चार्जशीट के आधार पर ही स्थानीय न्यायालय से आराेपितों को अलग-अलग फांसी व आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके खिलाफ हुई अपील पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने विवेचना में कई गड़बड़ियों का उल्लेख करते हुए निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, चश्मदीद गवाहों ने शिनाख्त परेड में पहचानने में गलती की। कहा अंधेरा था, अभियुक्त पहचान में नहीं आए।
जहां तक परिस्थिति जन्य साक्ष्य का प्रश्न है तो पहली जनवरी 2008 को लिया गया फिंगर प्रिंट सुरक्षित नहीं रखा गया। बरामद असलहों को मालखाने में जमा नहीं किया गया। घटना की विवेचना दोषपूर्ण रही। इसके कारण अभियुक्त बरी हुए। अभियोजन संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा।
पुलिस लापरवाही पर सरकार को विभागीय कार्यवाही करनी चाहिए। कोर्ट ने सरकार को लापरवाह पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच कार्यवाही करने की छूट दी है। स्थानीय अदालत में इस मुकदमें मे सजा दिलाने वाले शासकीय अधिवक्ता अमित कुमार सक्सेना का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले के अध्ययन के बाद प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती है। साथ ही अगर विवेचना में कहीं लापरवाही बरती गई है तो उसकी जांच को भी कमेटी गठित हो सकती है।
शस्त्र अधिनियम की बरकरार रखी सजा
कोर्ट ने फांसी व उम्र कैद की सजा रद कर दी है, लेकिन शस्त्र अधिनियम की धारा 25 में 10 साल की कैद व प्रत्येक को एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है और बाकी सजा पूरी करने का निर्देश दिया है। वर्ष 2019 में सत्र न्यायालय ने मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूक को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि जंग बहादुर खान उर्फ बाबा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। दो अन्य, मोहम्मद कौसर और गुलाब खान को बरी कर दिया गया था। मुख्य साजिशकर्ता सैफुल्लाह बाद 18 मई, 2025 को पाकिस्तान में मारा जा चुका है।

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