Move to Jagran APP

रामपुर नवाब रजा अली खां की थीं तीन रानियां, छह साल की उम्र में बन गए थे दूल्हा

चीफ सेकेट्री ही होते थे राज्य के चीफ मिनिस्टर। उस दौरा में मंदिरों और मस्जिदों को बिजली मुफ्त में दी जाती थी। नवाब खानदान की जीवनशैली काफी निराली थी।

By Narendra KumarEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 01:14 AM (IST)Updated: Sun, 16 Feb 2020 08:26 AM (IST)
रामपुर नवाब रजा अली खां की थीं तीन रानियां, छह साल की उम्र में बन गए थे दूल्हा
रामपुर नवाब रजा अली खां की थीं तीन रानियां, छह साल की उम्र में बन गए थे दूल्हा

रामपुर (मुस्लेमीन)। रामपुर के आखिरी नवाब रजा अली खां की तीन बीवियां थीं। वह छह साल की उम्र में ही दूल्हा बन गए थे। उनके शासनकाल में अधिकारियों को भी मंत्री का दर्जा प्राप्त था। चीफ सेकेट्री ही राज्य का चीफ मिनिस्टर हुआ करता था। उस दौर में कई पाबंदियां भी थीं। बैलगाड़ी सड़कों पर नहीं चल सकती थी, जबकि मंदिरों और मस्जिदों को बिजली मुफ्त में दी जाती थी।

loksabha election banner

रामपुर में आजकल जिस नवाब की संपत्ति के बंटवारे की प्रक्रिया चल रही है। उनकी उनकी तीन रानियां थीं। इनसे तीन बेटे और छह बेटियां पैदा हुईं। तीनों बेटों और एक बेटी की मौत हो चुकी है। इनके वंशजों में ही बंटवारा हो रहा है। नवाब रजा अली खां के दूल्हा बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। वरिष्ठ अधिवक्ता सौकत अली खां ने रामपुर का इतिहास लिखा है, जिसमें रजा अली खां की पैदाइश से लेकर इंतेकाल तक का जिक्र है। बताते हैं कि रजा अली खां 17 नवंबर 1906 को पैदा हुए। छह साल से भी कम उम्र में 11 मार्च 1912 को सकीना बेगम से उनका निकाह हो गया। हालांकि दुल्हन आठ साल बाद रुखसत होकर उनके घर पहुंची थी। चार नवंबर 1920 को उनकी रुख्सती का उत्सव मनाया गया था। इस खुशी में रामपुर में बिजली की रोशनी की व्यवस्था की गई थी। बाद में सकीना बेगम को राजमाता रफत जमानी बेगम से जाना गया। कैसर जमानी बेगम और तलत जमानी बेगम भी नवाब की पत्नियां बनीं। 20 जून 1930 को वह सिंहासन पर आसीन हुए और 26 अगस्त 1930 को उनकी ताजपोशी के मौके पर राज्य में जश्न मनाया गया। 

19 साल तक किया था राज 

उन्होंने 30 मार्च 1949 तक राज किया। 1966 में उनका इंतेकाल हुआ और नजफ (इराक) में दफ्न किया गया। उनके दौर में मस्जिद और मंदिरों को बिजली मुफ्त में दी जाती थी। 

गोले पर चलती हसमत की गाड़ी

नवाबी दौर में रामपुर में जनता पर कई पाबंदिया भी लगी थीं। थाना सिविल लाइंस से शाहबाद गेट तक की सड़क पर केवल सराकरी गाड़ी ही चलती थीं। बैलगाडिय़ों के चलने पर रोक थी लेकिन, एक ऐसा शख्स था, जिसकी गाड़ी गोले पर चलती थी । उसका नाम था हसमत पगला। शौकत अली खां बताते हैं कि एक बार नवाब साहब हसमत पगले से खुश हो गए और बोले मांग लो क्या चाहिए। इस पर हसमत ने कहा सरकार मेरी गाड़ी गोले (बीच सड़क)पर चलती रहे। तब नवाब ने उसकी गाड़ी गोले पर चलने की इजाजत दी थी। आज भी अक्सर रामपुर के लोगों की जुबां पर हसमत पगले की गोले पर गाड़ी चलने का किस्सा आ जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.