Independence Day: 1947 में देश मना रहा था आजादी का जश्न; रामपुर के लोगों को दो साल बाद 1949 में मिली थी आजादी
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज कर दिया। इस दौरान कुछ छात्रों को भी पुलिस ने पीट दिया। इसके विरोध में छात्रों ने जुलूस निकाला तो पुलिस ने उन्हे पकड़ लिया। लेकिन शहर से बाहर धमौरा के पास ले जाकर छोड़ दिया। इसके बाद चार अगस्त को छात्रों ने मोती मस्जिद के पास सभा की और फिर जुलूस निकालने लगे। इस दौरान छात्र और पुलिस आमने सामने आ गई।

रामपुर: Independence Day 2023 :15 अगस्त 1947 को देश में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, लेकिन रामपुर में कर्फ्यू लगा था। यहां हिंसा हो रही थी, जिसमें पुलिस कर्मियों समेत दो दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए। उपद्रवियों ने हाई कोर्ट फूंक दिया। रियासत के गृहमंत्री की कार में भी आग लगा दी थी।
शहर में लगा दी थी धारा 144
रामपुर में करीब पौने दो सौ साल तक नवाबों का राज रहा। अगस्त 1947 में रामपुर में नवाब रजा अली खां का शासन था। कर्नल वशीर हुसैन जैदी उनके मुख्यमंत्री थे।
रामपुर का इतिहास, पुस्तक में शौकत अली खां ने लिखा है कि रामपुर में दो अगस्त 1947 को मुस्लिम कांफ्रेस ने शहर की जामा मस्जिद में मीटिंग करने की घोषणा की थी। लेकिन, सरकार ने उसी दिन इस पर रोक लगाते हुए धारा 144 लागू कर दी। इसके विरोध में मुस्लिम कांफ्रेंस ने गिरफ्तारी देना शुरू कर दी। तब लोगों ने प्रदर्शन भी किया।
छात्रों और पुलिस में हुई थी झड़प
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज कर दिया। इस दौरान कुछ छात्रों को भी पुलिस ने पीट दिया। इसके विरोध में छात्रों ने जुलूस निकाला तो पुलिस ने उन्हे पकड़ लिया। लेकिन, शहर से बाहर धमौरा के पास ले जाकर छोड़ दिया। इसके बाद चार अगस्त को छात्रों ने मोती मस्जिद के पास सभा की और फिर जुलूस निकालने लगे। इस दौरान छात्र और पुलिस आमने सामने आ गई। पुलिस ने गोली चलाई तो छात्रों ने पथराव किया।
जब जला दिया गया हाई कोर्ट
इस दौरान कई छात्र मारे गए। इसके विरोध में शहर के तमाम लोग आक्रोशित हो गए। कई दिन तक उपद्रव किया। हिंसा में कई पुलिस कर्मियों समेत दो दर्जन लोग मारे गए। उन अफसरों और पुलिस वालों के घरों को भी फूंक दिया गया, जिनकी गोली से छात्र मरे थे। हाई कोर्ट जला दिया गया।
रियासत के गृहमंत्री इरशाद उल्लाह खां की कार को भी आग लगा दी। हालात बिगड़ते देख शहर में कर्फ्यू लगाने के साथ ही मार्शल ला लागू कर दिया गया। 31 अगस्त तक तमाम दफ्तर भी बंद रहे। पाकिस्तान के नारे भी लगे। तब रियासत के मुख्यमंत्री कर्नल वशीर हुसैन जैदी ने कुछ असमाजिक तत्वों से पाकिस्तान में शामिल होने के नारे लगवाए और फिर इस आरोप में रियासत का विरोध कर रहे लोगों को गिरफ्तार करा दिया। तब रामपुर आजाद भी नहीं हो सका था । रामपुर के लोगों को दो साल बाद 1949 में आजादी मिली।
अगस्त 1947 में हुई हिंसा की बाद में जांच भी कराई गई। रामपुर के पहले जिलाधिकारी गंगा सिंह चूरामणि ने 1952 में प्रदेश सरकार को जो रिपोर्ट दी थी, उसमें रामपुर में चार अगस्त 1947 को हुई घटना के बारे में कहा था कि उपद्रव की पृष्ठभूमि की कहानी यह है कि उस समय शिया लोगों के विरुद्ध उग्र भावनाएं पैदा हो गई थीं। मुख्यमंत्री बशीर हुसैन जैदी शिया थे। जैदी ने कुछ लोगों को जिनमें ज्यादातर गुंडे थे, भाड़े पर प्राप्त किया और उन लोगों ने ही रामपुर को पाकिस्तान में शामिल करने के नारे लगाए थे।
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