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    रामपुर में सपा के जीतने पर भी हारे आजम खान, किया था मोहिबुल्लाह का बहिष्कार- अर्श से फर्श पर आजम की राजनीति

    Updated: Tue, 04 Jun 2024 07:21 PM (IST)

    मुरादाबाद संभल बदायूं सहारनपुर में भी अपने चहेतों को विधानसभा का टिकट दिलवाया। 2019 में आजम खुद रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़े। मुरादाबाद में डा. एसटी हसन को सांसद बनवाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने 2022 का विधानसभा चुनाव सीतापुर जेल से लड़ा और एक लाख से अधिक मतों से जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

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    रामपुर में सपा के जीतने पर भी हारे आजम खान, किया था मोहिबुल्लाह का बहिष्कार

    संजय रुस्तगी, मुरादाबाद : इस चुनाव परिणाम के साथ ही रामपुर की राजनीति एक और करवट ले चुकी है। नवाब खानदान की सियासत रसातल में जाने के बाद अब सपा महासचिव आजम खां का राजनीतिक कद भी असरहीन हो रहा है। इस लोकसभा चुनाव में सपा के जीतने के बाद भी आजम हारे हैं। उनके खेमे ने चुनाव बहिष्कार का एलान किया था लेकिन सपा ने अपने बूते चुनाव लड़ा और अच्छी खासी लीड भी ली।

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    कभी सुपर चीफ मिनिस्टर कहे जाते थे आजम खान

    रामपुर की सियासत में आजम खां वोटों की दिशा अपने हिसाब से तय करते रहे हैं। प्रदेश में सपा की सरकार में संसदीय कार्य मंत्री सहित कई प्रमुख विभागों के मंत्रालय उनके पास रहे। विधान परिषद और राज्य सभा सदस्य से लेकर मंत्री तक के नाम भी उनकी मर्जी से तय होते रहे। मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में अमर सिंह उनकी राह में थोड़ा-बहुत रोड़ा बने रहे, लेकिन अखिलेश सरकार (2012 से 2017) में आजम खां को सुपर चीफ मिनिस्टर तक कहा जाने लगा था। जिले में पांच में तीन विधायक सपा के रहे।

    अपने चहेतों को दिलवाया था टिकट 

    मुरादाबाद, संभल, बदायूं, सहारनपुर में भी अपने चहेतों को विधानसभा का टिकट दिलवाया। 2019 में आजम खुद रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़े। मुरादाबाद में डा. एसटी हसन को सांसद बनवाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने 2022 का विधानसभा चुनाव सीतापुर जेल से लड़ा और एक लाख से अधिक मतों से जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। बाद में सजा होने पर आजम की शहर विधानसभा सीट भी चली गई और भाजपा काबिज हो गई।

    बेटे की सियासत भी लगा दी दांव पर 

    बेटे अब्दुल्ला आजम की सजा से रिक्त स्वार सीट भी उपचुनाव में अपना दल ने झटक ली। समय-समय पर सपा के शीर्ष नेतृत्व को आंखें दिखाकर नतमस्तक करने वाले आजम ने इस लोकसभा चुनाव में पहले पार्टी मुखिया अखिलेश यादव को खुद लड़ने को मजबूर किया। मंशा पूरी नहीं होती देख चुनाव बहिष्कार कर दिया। यह घोषणा करने वालों में सपा के एकमात्र विधायक, जिलाध्यक्ष के साथ दो प्रदेश सचिव भी थे।

    रुचि वीरा को कहीं और से लड़वाना चाहते थे आज़म

    पार्टी प्रत्याशी मोहिबुल्लाह के प्रयासों के बाद यह नेता झुकने को तैयार नहीं हुए। लेकिन, मतदाताओं ने आजम और उनके खेमे का फरमान असरहीन कर दिया। आजम के विरोध के बाद भी सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह अपने बूते जीत हासिल करने में सफल रहे हैं। पूरा दृश्य बदल चुका है। जिस पार्टी को कभी उन्होंने पसीने से सींचा, आज उसमें ही बेगाने हैं। इसी तरह मुरादाबाद से विजयी सपा प्रत्याशी रुचि वीरा आजम खां की करीबी रही हैं। आजम उन्हें मुरादाबाद के बजाय किसी अन्य सीट से लड़ाना चाहते थे। लेकिन, सपा के शीर्ष नेतृत्व ने सभी शंकाओं को दरकिनार कर मुरादाबाद से चुनाव मैदान में उतारा और जिताया।