मगफिरत के लिए दुआ मांगें रोजेदार
कचहरी वाली मस्जिद के इमाम मौलाना मुहम्मद उमर कहते हैं कि रमजानुल मुबारक का पहला अशरा रहमत का है, जि
कचहरी वाली मस्जिद के इमाम मौलाना मुहम्मद उमर कहते हैं कि रमजानुल मुबारक का पहला अशरा रहमत का है, जिसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की बारिश करता है। यानि दस दिन तक अल्लाह की बेशुमार रहमतें बंदों पर नाजिल होती हैं। अल्लाह अपने बंदों की इबादत से इतना खुश होता है कि वह कहता है कि है कोई जो मुझसे बेशुमार रहमतें हासिल कर सके। जबकि, दूसरा अशरा मगफिरत का है, जो इस समय चल रहा है। इस अशरे की मियाद भी दस दिन की है। इन दिनों खुदा से खूब दुआ मांगनी चाहिए। रोजेदार बुजुर्ग, रिश्तेदारों, घर के सभी लोगों के साथ खुद की मगफिरत के लिए दुआ मांगे। अल्लाह की रजा की खातिर सभी बंदों को इबादत करनी चाहिए। रमजान में आराम की ¨जदगी छोड़कर बंदों की इबादत को देखकर अल्लाह खुश होता है। उनके गुनाहों को माफ करने के साथ ही उनकी दुआओं को भी कुबूल करता है। हदीस पाक में रिवायत है कि जो बंदा रमजान में पूरे रोजे रखने के साथ ही खुदा के हुक्मों को पूरा करता है, फरिश्ते उसकी राह में इस्तकबाल के लिए खड़े रहते हैं। इस अशरे में अल्लाह अपनी रहमत से मरहूमों की मगफिरत फरमाता है। रोजेदारों को उनके गुनाहों से आजाद करता है। इसी तरह तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का है। इस अशरे में शब ए कद्र होती है, जो एक हजार महीनो की इबादत से बेहतर है। तीसरे अशरे में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नुम से निजात देता है। इस मुकद्दस महीने में मुसलमानों को रोजा रखने के साथ साथ पांचों वक्त की नमाज व तरावीह पढ़नी चाहिए। ताकि अल्लाह की बेशुमार नेमत हासिल कर जन्नत का हकदार बन सके। मुसलमान रमजान के बाद भी मस्जिदों को आबाद रखें। अपने दिल को नूरे इलाही से मुनव्वर रखें। रमजान की तरह दूसरे महीनों में भी इबादत में मशगूल रहे।
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