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    सल्तनत काल का विश्वसनीय दस्तावेज है तारीख ए फिरोजशाही

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 19 Mar 2017 10:08 PM (IST)

    रामपुर: जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्याल नई दिल्ली के इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रो. एसएम

    सल्तनत काल का विश्वसनीय दस्तावेज है तारीख ए फिरोजशाही

    रामपुर: जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्याल नई दिल्ली के इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रो. एसएम अजीजउद्दीन हुसैन ने कहा तारीख ए फिरोजशाही सल्तनत काल का विश्वसनीय दस्तावेज है। वह रविवार को र•ा लाइब्रेरी में जियाउद्दीन बरनी की तारीख ए फिरोजशाही एक समीक्षा विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ डा. अनवारुल हसन कादरी की तिलावते कुरान एवं सैयद नवेद कैसर शाह की नात ए पाक से हुआ। इस अवसर पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्याल नई दिल्ली के इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रो. एसएम अजीजउद्दीन हुसैन ने कहा कि बरनी ने सल्तनत काल का इतिहास 1266 से 1357 तक फ़ारसी भाषा में लिखा, जिसे तारीख ए फिरो•ाशाही का नाम दिया, जिसे बरनी ने सुल्तान फिरो•ा शाह तुगलक को समर्पित किया। तारीख ए फिरोजशाही सल्तनत काल के तत्कालीन समाज, संस्कृति, राजनीति तथा शासन व्यवस्था का प्रमाणिक एवं विश्वसनीय दस्तावे•ा है। कहा कि बरनी ने तारीख ए फिरो•ाशाही को दो भागों में लिखा। 1971 में प्रथम भाग को दुनिया के समक्ष लाने का श्रेय जर्मन इतिहासकार प्रो. सायमन डिग्बी को जाता है। दूसरा भाग सर सैयद अहमद खां ने 1862 में प्रकाशित किया। इस पाण्डुलिपि की प्रतियां र•ा लाइब्रेरी, खुदाबख्श लाइब्रेरी, पटना, अरबिक एण्ड पर्शियन इन्स्टीट्यूट, टोंक, राजस्थान और बोडलियन लाइब्रेरी, ओक्सफोर्ड, यूके के संग्रह में है। कहा कि तारीख ए फि़रोजशाही के पृष्ठों से बरनी का अपना व्यक्तित्व भी झांकता प्रतीत होता है। उन्होंने सीधे-सीधे तो कहीं भी अपने विषय में कुछ नहीं कहा, परन्तु संकेतों से पता चलता है कि उनका संबंध अवश्य ही उच्च वंश से रहा होगा और उनके बाप-दादा सुल्तान या दरबार से संबद्ध रहे होंगे। इस अवसर पर रामपुर र•ा लाइब्रेरी के निदेशक प्रो. सैयद हसन अब्बास ने कहा कि र•ा लाइब्रेरी पूरी दुनिया में जानी जाती है। यहां ऐसा इल्मी खजाना है, जिससे हर दौर के लोग इल्मी लाभ लेते रहे हैं और आगे भी लेते रहेंगे। कहा कि जियाउद्दीन बरनी बहुत बडे इतिहासकार थे जो तारीख ए फि़रो•ाशाही एवं फतवा ए जहांदारी के लेखक हैं। ये दोनों पुस्तकें सल्तनत काल (1266 से 1357 ) के समय की विभिन्न महत्वपूर्ण तथ्यों और घटनाओं पर रोशनी डालती है। बरनी नाते ए मुहम्मदी के भी लेखक हैं जो पैगम्बर मुहम्मद साहब की प्रशंसा पर प्रमुख पुस्तक है। यह पुस्तक रामपुर र•ा लाइब्रेरी से प्रकाशित हो चुकी है, जो फारसी भाषा में है। इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन लाइब्रेरी के सूचना अधिकारी डॉ. अबुसाद इस्लाही ने और अध्यक्षता राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हसन अहमद नि•ामी ने की। इस अवसर पर सरवत उस्मानी, शरीफ अहमद कुरैशी, सैयद साजिद मियां, शौकत अली खां, अ•ाहर इनायती, सरदार जावेद खां, सीनशीन आलम, इब्ने हसन खुर्शीद, मुहम्मद अमान अहमद सिद्दीकी, मौलाना साबिर अली, डॉ. र•िाया परवीन इत्यादि शहर के गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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