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    ..पढ़े लिखे को फारसी क्या

    आदित्य, रामपुर। कहावत है, हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या। पर, फारसी को पढ़ना व समझना

    By Edited By: Updated: Thu, 29 Jan 2015 12:30 AM (IST)

    आदित्य, रामपुर। कहावत है, हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या। पर, फारसी को पढ़ना व समझना काफी मुश्किल है। इसे पढ़ने और समझने वाले भी मुश्किल से ही मिल पाते हैं। तब भी जबकि इतिहास का एक बड़ा काल खंड फारसी में ही रचा, पढ़ा व समझा गया, लेकिन अब उसे पढ़ने और समझने का सिलसिला थमने सा लगा है। ऐसे में रामपुर की रजा लाइब्रेरी ने ¨हदी भाषियों के लिए उक्त कहावत को चरितार्थ करने का निर्णय लिया है।

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    जी हां, दुनियाभर में मशहूर रजा लाइब्रेरी में मौजूद मुगल काल की फारसी में लिखी गई तारीख-ए-फिरोज शाही के साथ ही अब सैकड़ों पुस्तकों का हिंदी में भी प्रकाशन होगा। इसकी शुरूआत भारतीय इतिहास की दुर्लभ पुस्तक 'तारीख-ए-फिरोजशाही' से होगी। इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी द्वारा लिखी गई यह पुस्तक ऐतिहासिक जानकारी के लिए दुनिया भर में मशहूर है। लाइब्रेरी के निदेशक प्रोफेसर एस. एम. अजीजउद्दीन हुसैन बताते हैं कि जियाउद्दीन बरनी सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के सचिव व इतिहासकार थे। उन्होंने तारीखे-ए-फिरोजशाही लिखी। इसमें सुल्तान बलबन के शासनकाल से लेकर सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल तक का इतिहास लिखा है। लाइब्रेरी में यह दुर्लभ पांडुलिपि मौजूद है। इसकी मूल प्रतियां पहले प्रकाशित करवाई जा चुकी है, जिसका लोकार्पण वर्ष 2013 में उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने नई दिल्ली में किया था। उसमें पुस्तक का परिचय अंग्रेजी और उर्दू भाषा में लिखा गया है, लेकिन अब इस पुस्तक को ¨हदी में अनुवादित किया जा रहा है। पुस्तक में इतिहास से जुड़ी कई ऐसी दुर्लभ जानकारियां हैं जो शोधार्थियों के लिए काफी फायदेमंद है। साथ इस पुस्तक में पाठकों के लिए भी रोचक जानकारी है। इसके प्रकाशन का कार्य शीघ्र ही पूरा हो जाएगा। ¨हदी के प्रति लाइब्रेरी का यह लगाव भी यूं ही नहीं है। एक सर्वेक्षण के अनुसार अब लाइब्रेरी में आने वाले पाठकों व शोधार्थियों की एक बड़ी संख्या ¨हदी भाषियों की है। ऐसे में ¨हदी को माध्यम बना कर इस लाइब्रेरी की लोकप्रियता बरकरार रखने के लिए भी लाइब्रेरी प्रबंधन ने फारसी की खास पुस्तकों का ¨हदी संस्करण उपलब्ध कराने की योजना बनाई है।