नागरिकता संशोधन कानून के तहत 12 और बांग्लादेशी हिंदुओं को मिली नागरिकता, बने भारतीय नागरिक
बिलासपुर में 12 और बांग्लादेशी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता मिली, जिससे क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गई। 61 सालों से नागरिकता का इंतजार कर रहे इन परिवारों ने मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया। 2500 परिवारों के 14500 शरणार्थी लंबे समय से नागरिकता के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। नागरिकता मिलने पर लोगों ने सरकार का आभार व्यक्त किया।
-1762618070410.webp)
अनमोल रस्तोगी, जागरण, बिलासपुर। प्रतीक्षा खत्म, 12 और लोगों को भारतीय नागरिकता मिल गई है। ये लोग पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से आकर बसे 2500 परिवारों के 14500 शरणार्थियों में से हैं जो पिछले 61 सालों से नागरिकता का इंतजार कर रहे थे। 13 लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का संदेश मिलते ही क्षेत्र के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
संदेश मिलते ही खुशी से उछल पड़े। एक-दूसरे को बधाई दी। मिठाई मंगाकर उसका वितरण करते हुए एक-दूसरे का मुंह मीठा किया। भारत सरकार का धन्यवाद भी किया। हालांकि 650 लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया था। क्षेत्र में बिना नागरिकता के निवास कर रहे बांग्लादेशी हिंदुओं के लगभग 2500 परिवारों के 14500 हजार शरणार्थी लोग रह रहे है। यह लोग लंबे समय से नागरिकता को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।
प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर देश के राजनेताओं तक नागरिकता का मुद्दा खूब उठाया गया। निखिल भारत बंगाली समन्वय समिति के विधिक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपांकर बैरागी, प्रकाश राय तथा रविन्द्र सिकदार ने बताया कि क्षेत्र के बंगाली बाहुल्य गांव अशोकनगर उर्फ मानपुर ओझा उर्फ बंगाली कालोनी, गोकुलनगरी और दिबदिबा आदि गांवों में शरणार्थियों की आबादी लगभग साढ़े 14 हजार हैं। इनमें कुछ को तो नागरिकता दी गई और उन्हें सरकार ने पुनर्वास के तहत प्रति परिवार पांच एकड़ भूमि पंजीकृत पट्टे के रूप में भी दी।
1964 के बाद से धीरे-धीरे बांग्लादेश से भी कुछ परिवार आकर बसे। इनकी संख्या आज हजारों में पहुंच गई है। उन्हें आज तक नागरिकता नहीं मिल सकी। विधिक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने बताया कि 1955 का कानून था कि माता-पिता दोनों भारतीय हों तो उन्हें नागरिकता दी जाएगी। इसके बाद 2003 में नागरिकता कानून में संशोधन हुआ, जिसमें माता-पिता में एक व्यक्ति भारत का नागरिक हो, उसे भारत की नागरिकता देने का नियम लागू हुआ। बांग्लादेश से आए शरणार्थियों ने भारतीय नागरिकता के लिए काफी लंबी लड़ाई लड़ी।
वहीं दूसरी ओर 12 शरणार्थी लोगों को भारत की नागरिकता मिलने पर उनका खुशी के मारे ठिकाना ना रहा। शुक्रवार की शाम पांच बजे जैसे ही उनके मोबाइल पर मैसेज आया, तो वह खुशी से उछल पड़े। कहा कि उनके लिए यह पल ऐतिहासिक है, जिसे वह जीवन भर भूल नहीं पाएंगे। इस समय उनकी चौथी और पांचवीं पीढ़ी चल रही है। उन्होंने सरकार का शुक्रिया अदा किया। साथ ही एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी भी प्रकट की।
इन लोगों को मिली भारत की नागरिकता
जिन लोगों को भारतीय नागरिकता मिली है। उनमें रविंद्र विश्वास, गौतम कुमार बढ़ई, प्रकाश बढ़ई, मदन मोहन बढ़ई, महानंद बढ़ई, रविंद्र सरकार, गोपाल तरफदार, शांति भंडार, अमूल्य मलिक, लक्ष्मी राय, वीरेंद्र, निकिता दास शामिल हैं।
दस्तावेज को लेकर आ रही है समस्या
समिति के विधिक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने बताया कि दस्तावेज को लेकर नागरिकता मिलने में समस्या आ रही है। जिसका समाधान करवाया जाए। बताया कि 650 लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया है। लेकिन दस्तावेज न होने के कारण उनके आवेदन पत्र पेंडिंग में पड़े हैं। जिससे उन्हें नागरिकता नहीं मिल पा रही है। अधिकतर लोगों के पास दस्तावेज नहीं है, जिसकी वजह से समस्या उत्पन्न हो रही है। सबसे पहले क्षेत्र के मात्र एक व्यक्ति तपन विश्वास को नागरिकता मिली। उसके बाद अब 12 लोगों और नागरिकता मिल गई है। उन्होंने अधिकारियों तथा सरकार से इस समस्या का समाधान निकालने की मांग की। कहा कि उन्हें सरकार की समस्त मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं।
यहां रहते हैं बंगाली परिवार
क्षेत्र के गांव मानपुर ओझा-बंगाली कालोनी, गोकुलनगरी, कौशलगंज, धनोरा फार्म, नगरिया खुर्द, लालपुर, दिबदिबा, रामनगर, शिवनगर, गदा फार्म, गोविंदपुरा, चकफेरी के अलावा नगर के अलग-अलग मुहल्लों में बंगाली परिवार निवास करते हैं। यहां पूर्व में आए लोगों के पास नागरिकता हैं, लेकिन बाद में जो लोग आकर बसे हैं, उन्हें नागरिकता नहीं मिली।
सरकार के सम्मुख दो अन्य मांगों को भी उठाया
नागरिकता संसोधन अधिनियम के बाद बंगाली समाज ने केंद्र सरकार के सम्मुख दो अन्य मांगों को भी उठाया। कहा कि इस कानून के पारित होने के बाद उन्हें केंद्र सरकार से काफी उम्मीद जगी हैं। कि उन्हें इसके साथ-साथ भूमियों का मालिकाना हक भी दिया जाए। साथ ही बंटवारे के बाद हिन्दू बंगाली समाज जहां मूल निवास करते हैं उनकी उपजातियां नामोंशुद्र, पोण्ड्रा, मांझी, राजवंशी आदि अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं। उन्हें पश्चिम बंगाल और उड़ीसा आदि राज्यों में मान्यता भी मिल गई हैं। मगर उन्हें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में यह मान्यता नहीं मिली हैं। प्रदेश में रहने वाली इन जातियों को मान्यता दी जाए।
| 61 | वर्ष से नागरिकता का कर रहे थे इंतजार |
| 650 | लोगों ने किया था नागरिकता को आवेदन |
| 01 | बांग्लादेशी को पूर्व में मिल चुकी है नागिरकता |
भारतीय नागरिकता मिलने पर जताई खुशी
नागरिकता मिलने के बाद बहुत खुशी हो रही है। जैसे उनका वर्षों का सपना आज पूरा हो गया है। इसी तरह अन्य लोगों को भी जल्द नागरिकता मिलनी चाहिए।
- रविंद्र विश्वास
शुक्रवार की शाम पांच बजे नागरिकता मिलने का जैसे ही मैसेज उनके फोन पर आया, तो खुशी के मारे ठिकाना ना रहा। इसके लिए वह पिछले काफी समय से संघर्ष करते चले आ रहे थे।
- रविंद्र सरकार
नागरिकता मिलने का यह एक ऐतिहासिक पल है। जिसे वह जीवन भर कभी भूल नहीं पाएंगे। सरकार की जितनी प्रशंसा की जाएं, उतनी कम है। इसकी आस काफी सालों से लगाए हुए थे।
- गोपाल तरफदार
नागरिकता मिलते ही परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई है। जैसे ही शुक्रवार को मैसेज के जरिए नागरिकता मिलने का पता चला, तो मानो सपना पूरा हो गया। अब सभी बहुत खुश हैं।
- अमूल्य मलिक
सभी के कड़े संघर्ष के बाद अब भारत की नागरिकता मिल पाई है। जिसके लिए वह 61 सालों से इंतजार कर रहे थे। इस पल का हर दिन इंतजार रहता था। इसके लिए सरकार प्रशंसा की पात्र है।
- वीरेंद्र
पूरी उम्मीद थी, कि एक न एक दिन सरकार हमारी बात सुनेगी और नागरिकता जरूर मिलेगी। वह दिन शुक्रवार को सच हो गया। जिससे पूरे परिवार में खुशी का माहौल व्याप्त है।
- लक्ष्मी राय

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।