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    रामजी के खून में बसी हैं पखावज की ताल

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    Updated: Sun, 12 Oct 2014 10:09 PM (IST)

    रामपुर। उत्तर प्रदेश संगीत अकादमी के पखावज के लिए चयनित रामजी लाल शर्मा की तेरह पीढि़यां संगीत की स

    रामपुर। उत्तर प्रदेश संगीत अकादमी के पखावज के लिए चयनित रामजी लाल शर्मा की तेरह पीढि़यां संगीत की साधना करती आ रही है। उनके पिता पंडित अयोध्या प्रसाद पखावज में पदमश्री अवार्ड पा चुके हैं। प्रदेश सरकार से सम्मान के लिए नामित होने पर पूरे परिवार में उल्लास है। कूंचा देवीदास मोहल्ला निवासी रामजी लाल ने बताया कि उनके पूर्वज दतिया मध्य प्रदेश घराने से यहां पहुंचे। दादा पंडित गया प्रसाद और पिता अयोध्या प्रसाद को देख रामजी ने पांच साल की उम्र से ही पखावज सीखना शुरू कर दिया। दिन में दस-दस घंटे के अभ्यास के बाद उनके जो हाथ सधे वे आज भी उसकी कुशलता से पखावज पर ताल निकाल रहे हैं। वर्ष 1970 में संगीत प्रवीण पखावज में स्वर्ण पदक मिलने के दो साल बाद उनको राष्ट्रीय छात्रवृत्ति मिलने लगी। एक साल बाद कानपुर में भारतीय संगीत विद्यापीठ ने संगीत शिरोमणि की मानद उपाधि से सम्मानित किया। फिर राष्ट्रीय पुरस्कार, महाराष्ट्र सरकार से तालमणि उपाधि, भारत सरकार से पखावज गुरु की उपाधि और फिर ताल कला रत्‍‌न की उपाधि न जाने कितने सम्मान उनको मिले। देश के विभिन्न भागों तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन पर नियमित प्रस्तुति देते आ रहे हैं। उनके पुत्र भूपेंद्र कुमार शर्मा व अनुराग शर्मा भी पखावज में खानदान का नाम रोशन कर रहे हैं। वे भी फिल्मों, दूरदर्शन व आकाशवाणी से जुड़े हुए हैं। उनके परिवार पर दूरदर्शन लखनऊ वृत्तचित्र भी बना चुका है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय व आकाशवाणी में सेवा के बाद रामजी लाल शर्मा बच्चों को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। कहते हैं कि संगीत लंबी साधना मांगता है। आजकल पश्चिम संगीत की ओर युवा पीढ़ी भाग रही है पर आत्मा को जो सुकून भारतीय संगीत से मिलता है पश्चिमी संगीत से नहीं। बताया कि मृदंग और पखावज एक ही है। धुपद्र गायकी के साथ इसकी संगत होती है। मुगलकाल से इसे पखावज नाम दिया गया। मुगलकाल में ख्याल गायकी शुरू हुई, जिसमें तबले की संगत दी जाने लगी। मृदंग यानी पखावज की परम्परा को गुरु हरिदास, तानसैन व बैजू बावरा ने बुलंदी पर पहुंचाया। युवाओं को सलाह देते हुए बोले कि शास्त्रीय संगीत लंबी तपस्या मांगता है। जो जितना डूबेगा उतना ही इसमें रमता जाएगा।

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