राना बेनी माधव बख्श सिंह के सबसे विश्वासपात्र योद्धा थे शिवदीन पासी,अंग्रेज भी घबराते थे उनके युद्ध कौशल से
Shivdin Pasi in Raebareli रायबरेली में 11 नवंबर 1837 को जन्मे शिवदीन पासी 16 साल की उम्र में ही राना की सेना में शामिल हो गए थे। राना बेनी माधव को अंग्रेजों की कैद से छुड़ाकर शिवदीन पासी सेनापति बने थे।
रायबरेली, संवादसूत्र। बात हो रही स्वतंत्रता सेनानी शिवदीन पासी की, जिन्हें हम वीरा पासी के नाम से जानते हैं। अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में वह स्वतंत्रता सेनानी राना बेनी माधव बख्श सिंह के सबसे विश्वासपात्र योद्धा थे। उनके युद्ध कौशल से अंग्रेज भी घबराते थे, तभी तो षडयंत्र रचकर उन्हें अपने जाल में फंसाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए।
रायबरेली तहसील के जीत का पुरवा (लोधवारी) में 11 नवंबर 1837 को जन्मे शिवदीन पासी 16 साल की उम्र में ही राना की सेना में शामिल हो गए थे। कहा जाता है कि एक बार राना बेनी माधव लोधवारी क्षेत्र में अपने घोड़े सब्जा संग भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि शिवदीन पासी अपनी मां से बहस कर रहे थे कि वह जानवर चराने नहीं जाएंगे। इस पर उनकी मां ने कहा कि काम नहीं करोगे तो कहां से खाना खाओगे। शिवदीन जवाब देते है कि मैं राना की सेना में भर्ती हो जाऊंगा।
ऐसे भर्ती हुए राना की सेना में
यह सुनकर राना शिवदीन को अपने पास बुलाते हैं। पूछते हैं कि तुम्हारे अंदर सिपाही के क्या गुण हैं। इस पर शिवदीन ने कहा कि मुझे सिपाही बनने के लिए क्या परीक्षा देनी होगी। राना कहते हैं कि यदि तुम हमारा एक मुक्का छाती पर सह लो मैं तुम्हें सेना में भर्ती करा दूंगा। शिवदीन राना का जोरदार मुक्का सह लेते हैं और टस से मस नहीं होते। इस बात से राना उस बालक से बहुत प्रभावित होते हैं और शंकरपुर (जगतपुर) लाकर सेना में भर्ती करा देते हैं।
अंग्रेजों पर भारी पड़े
एक बार अंग्रेज राना बेनी माधव को कैद कर लेते और किला बाजार में किला नुमा जेल में कैद कर लेते हैं। तब राना की मां शंकरपुर के महल में एक पान 'वीरा' रखती हैं और घोषणा करती हैं कि जो कोई राना को जेल से आजाद कराएगा, वही वीरा को खाएगा। देर शाम तक कोई योद्धा वीरा उठाने नहीं आता है। ये बात जब शिवदीन को पता चलती है तो वह महल पहुंचते हैं और वीरा उठाकर महारानी को वचन देते हैं कि राना को कैद से आजाद कराकर लाएंगे। वह अपने घोड़े तेजा और राना के घोड़े सब्जा को लेकर किला बाजार पहुंचते हैं। अपनी सूझबूझ से वह अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों काे चकमा देकर राना को वहां से निकाल लाते हैं। राना उनकी वीरता से बहुत प्रभावित होते हैं और शिवदीन को वीरा पासी की उपाधि देते हैं। साथ ही उनको सिपाही से सेनापति बना दिया जाता है।
नहीं लगे अंग्रेजों के हाथ
वीरा को पकड़ने के लिए अंग्रेज उन पर 50 हजार का इनाम घोषित कर देते हैं। कुछ देशद्रोही उनकी मुखबिरी कर देते हैं। अंग्रेज वीरा को घेरकर उन पर गोलियां बरसाने लगते हैं। गोली लगने के बाद भी वह गोरों के हाथ नहीं लगते। 11 नवंबर 1857 को वह वीरगति को प्राप्त हुए।