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    जब खून से लाल हो गया था सरेनी थाना

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    Updated: Fri, 09 Jan 2015 09:40 PM (IST)

    सरेनी, संवादसूत्र: अंग्रेजी हकूमत को उखाड़ने के लिए देश में चले आंदोलन रायबरेली की कुर्बानी किसी लेख

    सरेनी, संवादसूत्र: अंग्रेजी हकूमत को उखाड़ने के लिए देश में चले आंदोलन रायबरेली की कुर्बानी किसी लेखन की मोहताज नहीं है। आजादी के चित्र को अपने खून से रंगने वाले क्रांतिकारियों के कई इतिहास यहां गवाही दे रहे हैं। मंशीगंज में सैकड़ों किसानों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपने खून से सई नदी के जल को लाल कर दिया था तो सरेनी 1942 में तिरंगा फहराने के लिए भीड़ ने अपने नंगे सीने को अंग्रेजो के बुलेट के सामने कर दिया था इसमें पांच शहीद हुए थे तो कई घायल हु। हालंाकि इसमें कई का इतिहास के पन्नों में नाम नहीं तो कई की याद में बने स्मारक उपेक्षा के शिकार है। उनकी याद में होने वाले आयोजन में प्रशासन की लापरवाही भी दिखती है।

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    थाने में तिरंगा फहराने की थी योजना

    1942 को सरेनी क्षेत्र के क्त्रातिकारियों ने थाने में तिरंगा फहराने की योजना थी। इसको कार्य रूप देने के लिए बैठक होने थी। इसकी अगुआई स्वामी गुप्तार सिंह (बाद में विधायक हुए थो) को करनी थी। तिरंगा थाने में फहरना था।अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस को क्रातिकारियों की इस योजना की भनक लग गई। वह गुप्तार सिंह की गिरफ्तारी के लिए दबिशें देने लगे। इस वजह से इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए बैठक के नेतृत्व का जिम्मा सरेनी के सूर्यप्रसाद त्रिपाठी को सौपा गया। 18 अगस्त को सरेनी बाजार में जब क्रातिकारी जमा हुए तो अंग्रेजों ने घेर लिया और पुलिस सभा मंच से श्री त्रिपाठी को गिरफ्तार कर थाने ले आई। बैठक में मौजूद क्रंातिकारी पुलिस के इस अन्याय का विरोध करने के लिये थाने पहुंच गये और अपने नेता की रिहाई की माग करने लगे। भीड़ देख पुलिस ने थाने का गेट बंद कर दिया। भीड से पीछे हटने को कहा किन्तु क्त्रातिकारियों ने हटने के बजाय गेट तोडकर अंदर घुसने की कोशिश की पुलिस की चेतावनी न हवाई फा यारिंग की। लेकिन भीड़ पीछे नहीं हटी तो पुलिस ने मोर्चा संभाल लिया और क्रातिकारियों पर दनादन गोलिया बरसानी शुरू कर दी। इसमें गौतमन खेडा के अवदान सिंह, सरेनी के सुक्खू सिंह, मानपुर के पंडित रामशकर द्विवेदी, सुर्जीपुर के टिर्री सिंह, व पूरे सेवक मनो हमीर गाव के चौधरी महादेव पाच क्रातिकारी मौके पर ही शहीद हो गए। कई लोग घायल हो गए। आज भी बुजुर्ग लोग जिनका उस समय बचपन था उनकी दिलेरी याद करके बच्चों को सुनाते हैं।

    11 प्रशासन तो 18 को क्षेत्रीय लोग मनाते हैं समारोह

    11 जनवरी को यहा शहीद दिवस का आयोजन प्रशासन की ओर से हर वर्ष मनाया जाता है। हालाकि इनके बलिदान दिवस यानी 18 अगस्त को क्षेत्र के लोग दो दिन तक समारोह पूर्वक अमर शहादत को हर वर्ष नमन करते आ रहे हैं। प्रशासन के कार्यक्रम जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक सहित जिले व तहसील के आला अफ सर भी सिरकत करते हैं। 11 जनवरी को यहां होने वाले समारोह को लीजिए। अबतक 11 जनवरी को जिलाधिकारी एसपी सहित अधिकारी आते हैं। उनके कार्यक्रम भीड़ कर्मचारियों के अलावा कुछ नहीं होती।

    1966 से हुई समारोह की शुरुआत

    क्षेत्रीय लोग 18 अगस्त को दो दिवसीय समारोह एक समिति की अगुआई में करते हैं। इसकी शुरुआत 1996 में समाजसेवी अशोक श्रीवास्तव ने की थी जो आज भी जारी है। इसमें शहादत दिवस पर हजारों लोग एकत्र होते हैं।

    1991 में बना स्मारक

    थाने के सामने शहीदों की याद में 1991 में स्मारक को पूर्व विधायक इंद्रेश विक्रम सिंह ने इसे बनाया था। इसके पहले यहां विधायक रहे क्रांतिकारी गुप्तार से शहीदों की याद में चबूतरा बनवाया था।

    नहीं थे शहीदों के नाम

    स्मारक पर सन 2012 तक अमर शहीद के नाम तक अंकित नहीं थे। एमएलसी दिनेश सिंह ने पिछले साल इसकी चाहर दिवारी बनवाई। इसके बाद शहीदों के नाम अंकित हुए। चहारदीवारों में प्लास्टर नही हो पाया है।

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