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    UP के इस जिले में रावण को भांजे के रूप में पूजते हैं, दशानन की शोभायात्रा निकालने के बाद ही शुरू होती है रामलीला, क्या है कारण?

    Updated: Sun, 28 Sep 2025 03:53 PM (IST)

    प्रयागराज में रावण से जुड़ी अनोखी परंपरा है। यहां कटरा में रावण को भांजा मानकर पूजा जाता है। मान्यता है कि रावण के नाना महर्षि भरद्वाज का आश्रम कटरा में था। श्रीकटरा रामलीला कमेटी रावण को सम्मान देती है शोभायात्रा निकालती है। कमेटी के पूर्व अध्यक्ष गोपालबाबू जायसवाल ने रावण के सम्मान की परंपरा शुरू की। ब्राह्मण होने के कारण रामलीला में ब्राह्मण को ही रावण बनाया जाता है।

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    प्रयागराज में श्री कटरा रामलीला कमेटी की ओर से निकाली गई रावण की शोभायात्रा। जागरण आर्काइव

    शरद द्विवेदी, प्रयागराज। लंकापति रावण की बात करें तो उसकी परंपरा भिन्न-भिन्न है। कहीं रावण के विशाल पुतले को आग लगाकर उसका दहन किया जाता है, कोई मंच पर श्रीराम द्वारा रावण वध करके अहंकार पर वीरता का परचम लहरवाता। रावण किसी के लिए प्रकांड विद्वान के रूप में पूज्य है। हर कमेटी समर्पित भाव से परंपरा का पालन करती है। 

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    महर्षि भरद्वाज से रावण का मानते हैं संबंध 

    अधर्म पर धर्म की जीत के पर्व दशहरा पर लंकापति रावण का पुतला जलाया जाता, लेकिन तीर्थराज प्रयाग के कटरा मुहल्ले में ऐसी परंपरा नहीं होता। यहां रावण की वीरता का गुणगान होता है। ऋषि पुत्र, प्रकांड विद्वान, महान तपस्वी व वीर योद्धा माना जाता है। रावण की शोभायात्रा निकालने के बाद रामलीला का शुभारंभ होता है। ऐसा इसलिए कि कटरावासी रावण को भांजा मानते हैं। भांजे के रूप में आदर देते हुए पूजते हैं। इसके लिए महर्षि भरद्वाज से रावण का संबंध होना है। महर्षि भरद्वाज रिश्ते में रावण के नाना लगते थे। त्रेतायुग में महर्षि भरद्वाज का गुरुकुल जिस स्थल पर था वो कटरा मुहल्ले में आता है। इसके चलते श्रीकटरा रामलीला कमेटी रावण को आदर देती है।

    डा. बिपिन ने पौराणिक मान्यताओं का किया उल्लेख

    विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष डा. बिपिन पांडेय पौराणिक मान्यताओं का उल्लेख करते हुए बताते हैैं कि प्रजापिता ब्रह्मा के छह मानस पुत्रों में ऋषि पुलस्त्य ज्येष्ठ थे। उनका विवाह राजा तृणबिंदु की पुत्री से हुआ, और विश्रवा जन्मे। वेदज्ञ, सदाचारी व महान तपस्वी विश्रवा से महर्षि भरद्वाज ने अपनी पुत्री इड़विड़ा का विवाह किया।

    ऐसे रावण के नाना हुए महर्षि भरद्वाज

    उन्होंने बताया कि ऋषि विश्रवा का दूसरा विवाह राक्षसराज सुमाली की पुत्री कैकसी से हुआ। भरद्वाज की पुत्री से विश्रवा को वैश्रवण अर्थात कुबेर पैदा हुए। तपस्या से प्रसन्न होकर परमपिता ब्रह्मा जी ने कुबेर को चौथा लोकपाल नियुक्त किया। यम, इंद्र व वरुण पहले से तीनों लोक के पाल थे। कैकसी से रावण, कुंभकर्ण, सूपर्णखा व विभीषण का जन्म हुआ। इस तरह कुबेर लंकापति रावण के भाई हुए। वहीं, रावण के महर्षि भरद्वाज नाना हो गए।

    रावण के वध से नाराज थे महर्षि भरद्वाज

    मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जब लंका में लंकेश का वध कर प्रयाग आए और आशीर्वाद मांगने पहुंचे तो महर्षि भरद्वाज नाराज हो गए। उन्होंने ब्रह्म हत्या का कलंक होने की बात कहते हुए श्रीराम को आशीर्वाद देने से मना कर दिया, तब ब्रह्म हत्या से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम ने सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक किया। इसके बाद ही उन्हें महर्षि भरद्वाज का आशीर्वाद मिला।

    गोपालबाबू ने रावण को दिलाया सम्मान

    कटरा में रावण को सम्मान दिलाने का श्रेय श्रीकटरा रामलीला कमेटी के पूर्व अध्यक्ष गोपालबाबू जायसवाल को जाता है। कमेटी का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने रावण की गाजे-बजे, ध्वज-पताका के साथ राजसी वैभव से शोभायात्रा निकालने की परंपरा आरंभ कराई। महर्षि भरद्वाज से रावण के रिश्ते का प्रचार-प्रसार कराया। इससे जन-जन में रावण के प्रति भाव में बदलाव आया। वह कहते हैैं कि महर्षि भरद्वाज से रिश्ते की वजह से रावण हमारे लिए सम्माननीय है। हम अपनी रामलीला की शुरुआत ही लंकेश की भव्य शोभायात्रा निकालकर करते हैं।

    सिर्फ ब्राह्मण ही बनते हैं रावण : कक्कू

    श्रीकटरा रामलीला कमेटी के अध्यक्ष सुधीर गुप्ता कक्कू के अनुसार रावण ब्राह्मण थे। इस कारण रामलीला और शोभायात्रा में सिर्फ ब्राह्मण को रावण बनाया जाता है। पितृपक्ष की एकादशी पर भरद्वाज आश्रम में मंत्रोच्चार -पूजन के बाद लंकेश की शोभायात्रा निकाली जाती है, रामलीला, पितृपक्ष अमावस्या पर रावण जन्म से आरंभ होती है।