यूपी में तालाब-जलाशयों से जल्द हटाएं अतिक्रमण, HC ने अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को दिया निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को तालाबों और जलाशयों से अतिक्रमण हटाने का सख्त निर्देश दिया है। कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने में लापरवाही करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने के लिए कहा है। कोर्ट ने सरकार को अतिक्रमण हटाने के लिए समय सीमा तय करने का भी आदेश दिया है।

हाई कोर्ट ने यूपी में तालाब-जलाशयों से जल्द हटाएं अतिक्रमण।
जागरण विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को प्रदेश की ग्राम पंचायतों में तालाब-जलाशयों से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि भूमि प्रबंधन समितियों के अध्यक्ष ग्राम प्रधान व सचिव लेखपाल यहां हुए अतिक्रमण की सूचना संबंधित तहसीलदार को दें ताकि वह राजस्व संहिता की धारा 67 की कार्रवाई कर इसे अवैध कब्जेदारों को बेदखल कर इसके मूल स्वरूप में बहाल करा सकें।
जिलाधिकारियों व उप जिलाधिकारियों को कानून की अवहेलना करने तथा विधिक दायित्व न निभाने वाले भूमि प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और सचिव के खिलाफ कदाचार की विभागीय कार्रवाई करने का निर्देश भी कोर्ट ने दिया है।
कहा है कि अध्यक्ष व सचिव अतिक्रमण की सूचना नहीं देते तो यह आपराधिक न्यास भंग, षड्यंत्र में शामिल होना व अवैध कब्जे के लिए उकसाने का अपराध माना जाएगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकलपीठ ने गांव चौंका, चुनार, मीरजापुर निवासी मनोज कुमार सिंह की जनहित याचिका निस्तारित करते हुए दिया है।
याचिका में बावली (तालाब) से अवैध कब्जा हटाने की मांग की थी। सरकार ने बताया कि धारा 67 राजस्व संहिता की कार्रवाई चल रही है। कोर्ट ने कहा, ‘जल ही जीवन है, इसके बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए हर कीमत पर जल बचाएं। जलाशयों पर किसी प्रकार के अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जा सकती। सरकार अतिक्रमण हटाने के साथ हर्जाना वसूले, अर्थ दंड आरोपित करे, दंडित करे।’
सुप्रीम कोर्ट के हींचलाल तिवारी केस (2001) का हवाला देते हुए कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय ने देश में तालाबों, जलाशयों, जलस्रोतों आदि को संरक्षित करने का आदेश दिया है। दुखद है कि इसके बावजूद अतिक्रमण हटाने की मांग में याचिकाएं आए दिन आ रही हैं।’
कोर्ट ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, आयुक्तों, जिलाधिकारियों, उप जिलाधिकारियों तहसीलदारों, समिति के अध्यक्ष व सचिवों को अनुपालनार्थ भेजने का निर्देश दिया है। यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि आदेश की अवहेलना सिविल अवमानना मानी जाएगी।
कोर्ट ने प्रदेश के सभी तहसीलदारों को धारा 67की लंबित कार्यवाही निर्धारित 90 दिन में पूरी करने का आदेश दिया है। कहा है कि केवल आदेश ही न दिया जाए, अतिक्रमण हटा कर जलाशयों व सार्वजनिक भूमि की मूल स्वरूप में बहाली भी कराई जाए। कोर्ट ने कहा, ग्राम पंचायत की सार्वजनिक उपयोग की जमीन की संरक्षक भूमि प्रबंधन समिति है।
इसलिए जहां भी अतिक्रमण हो उसका दायित्व है कि वह इसकी सूचना तहसीलदार को दे। ग्राम प्रधान व लेखपाल की लापरवाही के कारण हाई कोर्ट में अतिक्रमण हटाने की मांग में बड़ी संख्या में याचिकाएं आ रही हैं, जबकि राजस्व संहिता ने भूमि प्रबंधन समिति को अतिक्रमण की सूचना तहसीलदार को देने की जिम्मेदारी सौंपी है।
कोर्ट ने डीएम तथा एसडीएम को लापरवाह ग्राम प्रधानों को हटाने की कार्रवाई की भी छूट दी है। कहा है कि जो तहसीलदार धारा 67 की कार्रवाई तय नहीं कर रहे हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।
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