Daya Prakash Sinha Tribute : वरिष्ठ लेखक, नाटककार पद्मश्री का प्रयागराज से था गहरा नाता, NCZCC के संस्थापक निदेशक रहे
Daya Prakash Sinha Tribute वरिष्ठ लेखक और नाटककार पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा, जिनका प्रयागराज से गहरा नाता था, का निधन हो गया। वे NCZCC के संस्थापक निदेशक थे और उन्होंने हिंदी नाट्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रयागराज में एक शोक सभा में, रंगकर्मियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके कार्यों को याद किया। दया प्रकाश सिन्हा के नाटकों ने समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया।

पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा को प्रयागराज में रंगकर्मियों ने दी श्रद्धांजलि। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। Daya Prakash Sinha Tribute नाटक के निर्देशन और रंगमंचीय योगदान में अहम किरदार पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा का प्रयागराज से घनिष्ठ नाता था। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) के संस्थापक निदेशक दया प्रकाश ने न केवल हिंदी नाट्य जगत को नई पहचान दी, बल्कि सांस्कृतिक प्रशासन में अपनी गहरी छाप भी छोड़ी।
दया प्रकाश की सृजनशीलता पर चर्चा
Daya Prakash Sinha Tribute उनके साहित्यिक योगदान में अनेक मौलिक नाटक शामिल हैं, जो भारतीय समाज, इतिहास और संस्कृति के विविध पहलुओं को उजागर करते हैं। उनके निधन की सूचना मिलने पर तमाम रंगकर्मियों ने शोक जताया है। एनसीजेडसीसी में शोक मनाते हुए दया प्रकाश की सृजनशीलता पर चर्चा हुई।
भारतीय रंगमंच के दिग्गज कलाकार थे
दो मई 1935 को कासगंज में जन्मे दया प्रकाश सिन्हा भारतीय रंगमंच के दिग्गज कलाकार थे। 11 मार्च 1986 से एक जनवरी 1987 तक एनसीजेडसीसी के संस्थापक निदेशक रहे। स्थापना काल में सांस्कृतिक गतिविधियों को ग्रामीण क्षेत्रों से लाकर नया आयाम दिया। इस तरह के योगदान पर उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में चर्चा हुई। इसके बाद अधिकारियों, कर्मचारियों ने शोक जताया। डीपी सिन्हा की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।
प्रयागराज में उनका अधिकांश रंगमंचीय जीवन गुजरा
वरिष्ठ रंग निर्देशक अनिल रंजन भौमिक ने कहा कि दया प्रकाश, डीपी सिन्हा के नाम से ज्यादा चर्चित थे। कथा एक कंस की, सम्राट अशोक, रक्तअभिषेक, सीढ़ियां जैसे प्रसिद्ध नाटकों का लेखन किया। वे इलाहाबाद आर्टिस्ट एसोसिएशन के प्रारंभिक सदस्य थे। प्रशासनिक सेवाओं में रहते हुए उन्होंने रंगकर्मियों के लिए नित नए नाटकों की रचना की और मंचन कराया। प्रयागराज में उनका अधिकांश रंगमंचीय जीवन गुजरा। तमाम नाटकों के मंचन में उनका योगदान रहा, कलाकारों के अभ्यास में शामिल होते थे और अभिनय के तरीके बताते थे।
मृदुभाषी व्यक्तित्व था उनका
Daya Prakash Sinha Tribute वरिष्ठ रंगकर्मी अजामिल के अनुसार करीब 20 साल पहले आस्था संस्था की ओर से हुए एक नाटक के पूर्वाभ्यास में दया प्रकाश आए थे। तब उनसे मुलाकात हुई थी। जितने मृदुभाषी उतने ही नाटकों के प्रति अभ्यस्त थे। वैसे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में महीने में एक या दो बार उनका आगमन होता ही था। अपने समकालीन रंगकर्मियों और साहित्यकार मित्रों से मुलाकात करते थे। नाटकों की समृद्धि में जिस व्यक्तित्व की जरूरत होती है दरअसल दया प्रकाश सिन्हा उसके धनी थे।
इलाहाबाद से पढ़ाई व विश्वविद़यालय में प्रवक्ता रहे
साहित्यकार रविनंदन सिंह दया प्रकाश ने इलाहाबाद में रहकर इंटरमीडिएट किया। यहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए तक की शिक्षा प्राप्त की सीएमपी डिग्री कालेज में इतिहास विभाग के प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए। जब पीसीएस में उनका चयन हो गया तो उनकी पहली तैनाती बहराइच में हुई। 1965 से 1967 तक फूलपुर एवं इलाहाबाद सदर में प्रशासनिक अधिकारी भी रहे।
दया प्रकाश ने 13 नाटक लिखे थे
बताया कि इलाहाबाद में उनकी रंगमंच के प्रति रुचि विकसित हो गई थी। उन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत लक्ष्मीनारायण लाल के नाटक 'ताजमहल के आंसू' से की थी। मेरे भाई मेरे, इतिहास चक्र, मन के भंवर, पंचतंत्र, और दुश्मन सहित 13 नाटक लिखे, जिनका कई प्रमुख रंगमंच निर्देशकों ने मंचन कराया।

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