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    Paramanand Maharaj: स्वामी परमानंद महाराज की बिगड़ी तबीयत, अस्पताल में भर्ती

    Updated: Wed, 12 Feb 2025 06:29 PM (IST)

    श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या के ट्रस्टी स्वामी परमानंद की तबीयत बुधवार को बिगड़ गई। संगम स्नान के बाद उन्हें सीने में तेज दर्द हुआ जिसके बाद उन्हें केंद्रीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। प्राथमिक इलाज के बाद स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय रेफर किया गया जहां डॉक्टरों ने मामूली हृदयाघात की पुष्टि की। उनकी स्थिति अब स्थिर है और डॉक्टरों की निगरानी में सुधार हो रहा है।

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    स्वामी परमानंद महाराज - फाइल फोटो ।

    जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या के ट्रस्टी स्वामी परमानंद की बुधवार को तबीयत बिगड़ गई। उन्हें सीने में तेज दर्द होने पर एंबुलेंस से केंद्रीय अस्पताल पहुंचाया गया। आइसीयू में प्राथमिक इलाज के बाद रेफर करके स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय भेज दिया गया। डाक्टरों की निगरानी में स्वामी परमानंद की हालत स्थिर बताई गई है। प्राथमिक परीक्षण में मामूली हृदयाघात की रिपोर्ट आई है।

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    स्वामी परमानंद 77 वर्ष के हैं, महाकुंभ मेला क्षेत्र में माघी पूर्णिमा पर उन्होंने संगम स्नान किया। इसके कुछ देर बाद सीने में दर्द होने लगा। शिष्यों ने इसकी सूचना प्रशासनिक अधिकारियों को दी तो एंबुलेंस भेजी गई। स्वामी परमानंद को केंद्रीय अस्पताल के आइसीयू में भर्ती किया गया और डा. वैशाली सिंह के निर्देशन में डाक्टरों ने इलाज शुरू किया।

    हृदयाघात की जानकारी होने पर बेहतर इलाज के लिए स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय भेजा। एसआरएन में वरिष्ठ फिजीशियन डा. मनोज माथुर और हृदय रोग विशेषज्ञ डा. मोहम्मद शाहिद ने प्राथमिक स्वास्थ्य परीक्षण किया। इसके बाद उन्हें कार्डियोलाजी के आइसीयू में भर्ती किया गया। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज के मीडिया प्रवक्ता डा. संतोष सिंह ने बताया कि स्वामी परमानंद की हालत में सुधार हुआ है। उन्हें पहले से हृदय की बीमारी के चलते कुछ समस्या हुई थी।

    आध्यात्मिक ऊर्जा लेकर विदा हुए कल्पवासी

    वहीं दूसरी ओर, संगम के जिस क्षेत्र में भोर से मंत्रों की कर्णप्रिय गूंज होती थी। मंत्रोच्चार हर किसी के कदम को जड़वत कर देते थे। हर कोई भजन-कीर्तन में रमा रहा। जप, तप और साधना की त्रिवेणी में सुख-सुविधाओं का त्याग करके कल्पवासी गोता लगाते रहे। तपस्वी के समान त्याग किया।

    आध्यात्मिक ऊर्जा के उस अनूठे क्षेत्र का दृश्य बुधवार को बदल गया। सुबह स्नान और पूजन के बाद कल्पवासी सामान समेटने में व्यस्त हो गए। घर से आए सगे-संबंधी उनका हाथ बंटने में लगे रहे। कल्पवासियों के समक्ष यह पल अजीब धर्मसंकट वाला रहा। उन्हें घर लौटकर अपनों से मिलने की खुशी थी, वहीं मेला क्षेत्र छोड़ने से भावुक रहे।

    माहभर टेंट में रहकर कल्पवासियों में बना आपसी संबंध बिछड़ने की अनुमति नहीं दे रहा था। पुन: अगले वर्ष आने का संकल्प लेकर मेला क्षेत्र से रवाना हुए। महाकुंभ अध्यात्म और संस्कृति का सबसे बड़ा आयोजन है। इसका हर सेक्टर ज्ञान, भक्ति और साधना के विविध रंगों से रंगा रहा। अखाड़ों के वैभव, संतों की तपस्या के साथ कल्पवासियों का त्याग अद्वितीय रहा।

    पौष पूर्णिमा पर लगभग 10 लाख गृहस्थों ने कल्पवास आरंभ किया, जो माघी पूर्णिमा पर पूर्ण हो गया। ब्रह्म मुहूर्त में त्रिवेणी में डुबकी लगाकर कल्पवासी अपने शिविर पहुंचे। तीर्थपुरोहितों के सानिध्य में पूजन, हवन और दान किया। आराध्य व पूर्वजों से भूलचूक की क्षमायाचना की।

    भदोही के रामकैलाश के कल्पवास का 14वां वर्ष था। बताते हैं संगम तीरे माहभर बिताकर आध्यात्मिक, आंतरिक व मानसिक ऊर्जा मिलती है। कल्पवास में आने के लिए जितनी खुशी होती है उतना ही इस क्षेत्र को छोड़ने का गम रहता है। संगम की रेती से हमारा जो जुड़ाव हुआ है, उसे व्यक्त करने में शब्द असमर्थ हैं।

    स्वामी ब्रह्माश्रम के शिविर में कल्पवास करने वालीं वाराणसी की हेमलता देवी कहती हैं कि भजन-पूजन व प्रवचन में संतों का सानिध्य प्राप्त हुआ। अब मेला क्षेत्र छोड़ने का कष्ट हो रहा है। कमलावती देवी के कल्पवास का 11वां वर्ष था। कहती हैं कल्पवास से आत्मीय तृप्ति हुई। यहां रहकर कल्पवासियों से आत्मीय रिश्ता बन गया था, जिनसे बिछने का कष्ट है। चित्रकूट के जागेश्वर प्रसाद कहते हैं घर-गृहस्थी में लौटने की खुशी है, लेकिन मेला क्षेत्र छोड़ने का कष्ट अधिक है।