'हर वोट की अहमियत, इसकी पवित्रता की रक्षा की जानी चाहिए', UP पंचायत चुनाव से जुड़े मामले में SC की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में ग्राम प्रधान चुनाव में मतगणना की विसंगतियों का मुद्दा उठाते हुए दोबारा मतगणना का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि हर वोट का अपना महत्व है भले ही उसका परिणाम पर कोई असर न हो। कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया की शुचिता और वोट की अखंडता की रक्षा की बात भी कही है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में चुनावी लोकतांत्रिक प्रणाली में मतदान और प्रत्येक मत की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा है कि हर वोट का अपना महत्व है, भले ही चुनाव के अंतिम परिणाम पर उसका कोई भी प्रभाव हो। इसकी पवित्रता की रक्षा की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की तहसील हंदिया के चक साहिबाद में ग्राम प्रधान चुनाव में हुई विसंगतियों को उजागर करते हुए दोबारा मतगणना का आदेश दिया है।
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अदालत इस बात से चिंतित नहीं है कि सत्ता में कौन है, बल्कि इससे कि कोई सत्ता में कैसे आया? यह प्रक्रिया संवैधानिक सिद्धांतों और स्थापित मानदंडों के अनुसार होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो उस व्यक्ति को सत्ता से वंचित किया जाना चाहिए और लोगों की ओर से फैसला लेने की प्रक्रिया एक बार फिर शुरू होनी चाहिए।
लोकतांत्रिक प्रणाली में लोगों के महत्व को किया उजागर
यह अहम फैसला जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने विजय बहादुर बनाम सुनील कुमार के मामले में दिया है। फैसले में चुनावी लोकतांत्रिक प्रणाली में लोगों के महत्व को उजागर किया गया है।
जस्टिस करोल ने फैसले की शुरुआत 31 अक्टूबर 1944 के विंस्टन चर्चिल के कोट से की है जिसमें कहा गया था कि ''लोकतंत्र को दिए जाने वाले सभी सम्मानों के मूल में वह छोटा आदमी है, जो एक छोटी सी पेंसिल के साथ छोटे से बूथ में प्रवेश करता है, कागज के एक छोटे से टुकड़े पर एक छोटा सा क्रास बनाता है। कोई भी बयानबाजी या बड़ी चर्चा संभवत: उसके अत्यधिक महत्व को कम नहीं कर सकती।''
इसके बाद फैसले में नवंबर 1863 का अब्राहम लिंकन का कोट उद्धृत किया है जिसमें कहा गया था 'जनता की, जनता द्वारा, जनता के लिए सरकार'। पीठ ने फैसले में कहा कि बेशक इस अवधारणा के केंद्र में जनता है। भारतीय संवैधानिक दृष्टिकोण इस स्थिति की मिसाल है, जिसमें लोकतांत्रिक शासन की शुरुआत से ही हमारी शासन प्रणाली में वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है। हरेक चुनाव में जनभागेदारी, समानता और वोट की अखंडता के मूल्यों को बनाए रखना संविधान निर्माताओं के सोच का प्रमाण है।
जनप्रतिनिधियों को चुनने में हरेक नागरिक समान
कोर्ट ने कहा कि संसदीय प्रणाली में जनप्रतिनिधियों को चुनने की बात की जाए तो प्रत्येक नागरिक समान है। जबकि अन्य परिदृश्यों में हो सकता है कि वे बराबर न हों, इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि वर्ग और जाति विभाजन जो अभी भी गहराई से जड़ जमाए हुए हैं, लैंगिक असमानता, जागरूकता की कमी और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अवसर की कमी आदि।
कोर्ट ने जनप्रतिनिधियों को चुनने में सभी नागरिकों की समानता की बात करते हुए कहा कि यह क्षणिक समानता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह संवैधानिक तंत्र के माध्यम से सभी के लिए समानता की आकांक्षा की प्राप्ति को दर्शाती है।
कोर्ट ने मौजूदा मामले में कहा कि यह चतुरकोणीय मुकाबला था। प्रधान के पद के लिए चार लोग चुनाव लड़ रहे थे। चार में से तीन व्यक्तियों ने हलफनामे के जरिये चुनाव की शुचिता पर संदेह जताया और मतों की पुनर्गणना का समर्थन किया है। यह भी रिकार्ड में आया है कि अंतिम विजेता को लाभ पहुंचाने के लिए जानबूझकर प्रयास किए गए जैसे कि अपीलकर्ता को मतदान क्षेत्र के आसपास से हटाने के लिए पुलिस बल का प्रयोग करना।
अंतिम निष्कर्ष संदिग्ध-कोर्ट
पीठ ने कहा कि मतदान केंद्रों के पीठासीन अधिकारियों की डायरी, जो मतदान का रिकार्ड रखने वाला एक जरूरी दस्तावेज है, काफी प्रयास के बावजूद नहीं मिल पाई। चुनाव में उम्मीदवार दिनभर मतदान पर नजर रखना चाहता है और उसके रिकार्ड का निरीक्षण करना चाहता है, जिससे उन्हें इनकार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा कि अगर पीठासीन अधिकारियों के रिकार्ड गायब हैं और उन्हें सत्यापित नहीं किया जा सकता है तो ये स्थापित माना जा सकता है कि अंतिम निष्कर्ष संदिग्ध है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव से जुड़ा प्रत्येक दस्तावेज महत्वपूर्ण है और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए।कोर्ट ने कहा कि मौजूदा चुनाव 2021 में हुआ था और चार साल बाद इस फैसले के माध्यम से कानूनी प्रक्रिया का समापन हुआ है। चार में से तीन उम्मीदवारों ने चुनाव की सत्यता और उसे संचालित करने के तरीके पर सवाल उठाया है। चुनाव से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब हैं और गायब होने का कोई स्पष्टीकरण नहीं है। मौजूदा तथ्यों को देखते हुए पुन: मतगणना न्यायोचित होगी। सुप्रीम कोर्ट ने विजय बहादुर की अपील स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया है और पुन: मतगणना का एसडीएम का आदेश बहाल किया है।
क्या है पूरा मामला?
इस मामले में याचिकाकर्ता विजय बहादुर 37 मतों से ग्राम प्रधान का चुनाव सुनील कुमार से हार गए थे। विजय बहादुर ने आरोप लगाया था कि पीठासीन अधिकारी ने मौखिक रूप से उसे बताया था कि तीन मतदान केंद्रों पर 1,194 वोट डाले गए, जबकि बाद में चुनाव फार्म (फार्म 46) में 1,213 वोट डाले जाने की बात दर्शाई गई। यानी कि पीठासीन अधिकारी द्वारा डाले गए मतों का बताया गया मौखिक विवरण और चुनाव प्रपत्र में डाले गए कुल वोटों के बीच 19 मतों का अंतर था।
इस मामले में एसडीएम ने 31 अक्टूबर 2022 को पुन: मतगणना का आदेश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट ने 27 जनवरी 2023 को पुन: मतगणना का एसडीएम का आदेश रद कर दिया था। हाई कोर्ट ने पुन: मतगणना के लिए दस्तावेजी साक्ष्यों को अपर्याप्त माना था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए माना कि पुन: मतगणना कराने के लिए पर्याप्त आधार है।
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