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    SSP बदायूं को इलाहाबाद हाई कोर्ट की फटकार, कहा- आपने की उद्दंडता, दिया ये बड़ा आदेश

    Updated: Sat, 20 Dec 2025 02:00 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बदायूं के एसएसपी द्वारा पुलिस उप निरीक्षक को सीजेएम से संवाद के लिए नियुक्त करने पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने इस रवैये को ...और पढ़ें

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बदायूं के एसएसपी द्वारा पुलिस उप निरीक्षक को सीजेएम से संवाद के लिए नियुक्त करने पर नाराजगी जताई है और उनके रवैये को सरासर उद्दंडता करार दिया है। साथ ही उन्हें व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि उनके खिलाफ अलग से सिविल अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।

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    यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर तथा न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने दिया है। मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि 1984 की लंबित अपील का अपीलार्थी आनंद प्रकाश लापता है। कोर्ट ने गत 10 दिसंबर को अपीलार्थी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया था।

    साथ ही स्पष्ट किया था कि वारंट तब तक बिना तामील लौटाया नहीं जाएगा, जब तक पुलिस शपथपत्र सहित यह प्रमाण न सुलभ करा दे कि अपीलार्थी की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह देश छोड़ चुका है। एसएसपी को यह भी सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि अपीलार्थी जहां भी छिपा हो या स्थानांतरित हुआ हो, वहां उसकी तलाश कर वारंट का तामीला कराया जाए। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि एसएसपी ने वारंट तामीला के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किए और संबंधित सीजेएम से स्वयं संवाद भी नहीं किया।

    अधीनस्थ उपनिरीक्षक से सीजेएम को भिजवाया पत्र 

    कोर्ट के आदेश के अनुपालन में सीजेएम बदायूं ने सीधे एसएसपी को मेमो भेजा था लेकिन उन्होंने स्वयं उत्तर देने की बजाय अधीनस्थ उपनिरीक्षक से सीजेएम को पत्र भिजवाया। रवैये पर आपत्ति जताते हुए खंडपीठ ने कहा, ‘जब सीजेएम ने हाई कोर्ट के आदेश के तहत स्वयं एसएसपी को मेमो भेजा था तो उपनिरीक्षक से जवाब भिजवाना प्रथम दृष्टया उद्दंडता है।’

    कोर्ट ने कहा कि मामला न्यायालय की प्रक्रिया से जुड़ा था, तब भी एसएसपी को स्वयं मेमो के माध्यम से जवाब देना चाहिए, न कि किसी साधारण अधीनस्थ अधिकारी से पत्र लिखवाना चाहिए। कोर्ट ने पुलिस की रिपोर्ट पर भी असंतोष जताया, जिसमें कहा गया कि अपीलार्थी का पता नहीं चल सका। कोर्ट ने कहा कि यह रिपोर्ट उसके आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है क्योंकि वारंट केवल दो ही परिस्थितियों में बिना तामीला लौटाया जा सकता है, या तो अपीलार्थी की मृत्यु हो चुकी हो या वह देश छोड़ चुका हो।

    दोनों में किसी भी स्थिति की पुष्टि रिपोर्ट में नहीं की गई। इन परिस्थितियों में एसएसपी प्रथमदृष्टया हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना के दोषी प्रतीत होते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निर्धारित समय सीमा के भीतर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया तो एसएसपी को स्वयं उपस्थित होना होगा।