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    स्मार्ट जैविक परत देगी कृत्रिम जोड़ों को मजबूती, संक्रमण से भी मिलेगी सुरक्षा

    Updated: Tue, 06 May 2025 07:50 PM (IST)

    एमएनएनआईटी की प्रोफेसर संगीता नेगी ने चीड़ के पेड़ की पत्तियों से निकले लिगनेन तत्व से एक जैविक कोटिंग विकसित की है। यह कोटिंग कृत्रिम जोड़ों और इम्प्लांट्स में संक्रमण और शरीर द्वारा अस्वीकार की समस्या को हल करती है। यह मजबूत टिकाऊ और संक्रमण-रोधी है जिससे इम्प्लांट्स की उम्र बढ़ती है और सर्जरी की आवश्यकता कम होती है। यह तकनीक सस्ती और प्रभावशाली है।

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    प्रो. संगीता नेगी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान। जागरण

    मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। किसी हादसे में हड्डी टूटने या फिर उम्र के कारण जोड़ों में खराबी आने पर उसे ठीक करने के लिए कृत्रिम जोड़ों और इम्प्लांट का उपयोग किया जाता है। लेकिन, कई बार इंप्लांट और कृत्रिम जोड़ों में संक्रमण और शरीर द्वारा अस्वीकार किए जाने की समस्या भी आती है।

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    अब मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) की प्रो. संगीता नेगी ने इस चुनौती का समाधान खोज निकाला है। उन्होंने चीड़ के पेड़ की पत्तियों से निकले लिगनेन तत्व से एक जैविक कोटिंग (बायोपालीमर) विकसित की है। यह कोटिंग शरीर से पूरी तरह सामंजस्य भी रखती है। इससे स्टील जैसे मैटीरियल को शरीर नहीं ठुकराता और संक्रमण की संभावना भी काफी घट जाती है।

    परीक्षणों में यह कोटिंग मजबूत, टिकाऊ और संक्रमण-रोधी साबित हुई है। यह शरीर की कोशिकाओं को इम्प्लांट की सतह पर तेजी से विकसित होने में मदद करती है, जिससे इम्प्लांट जल्द और बेहतर तरीके से जुड़ता है। इस नवाचार को भारत सरकार का पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है। प्रो. नेगी की यह "स्मार्ट परत" काफी सस्ती भी है। यह चिकित्सा क्षेत्र में इम्प्लांट तकनीक को सस्ता और अधिक विश्वसनीय बना सकती है।

    बेहद मजबूत होती है यह कोटिंग

    इस कोटिंग को खासतौर पर शरीर में लगाए जाने वाले इम्प्लांट्स जैसे कृत्रिम घुटने, कूल्हे, दांतों के इम्प्लांट और हड्डी जोड़ने वाले उपकरणों के लिए डिजाइन किया गया है। इसकी बायो-कम्पैटिबिलिटी इसकी ताकत है। यानी शरीर इसे अपनाने में हिचकिचाता नहीं है।

    प्रो. नेगी कहती है कि इंप्लांट में स्टील का प्रयोग होता है, जिसे शरीर कई बार अस्वीकार भी करता है। इसी को देखते हुए प्राकृतिक तत्वों से कोटिंग बनाने का निर्णय लिया गया। इस कोटिंग को किसी महंगे रसायन से नहीं, बल्कि चीड़ के पेड़ की पाइन नीडल से निकाले गए लिगनेन नामक तत्व से तैयार किया गया है।

    विभिन्न रासायनिक प्रक्रिया से गुजारने के बाद लिगनेन को बायोपालीमर में बदल दिया गया। इसकी एडहेसिव (चिपकने) स्ट्रेंथ काफी ज्यादा है इस कारण यह काफी मजबूत है। परीक्षण में पाया गया कि इसको शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसे "अनचाही वस्तु" मानकर अस्वीकार नहीं करती। साथ ही यह बैक्टीरिया की सतह पर चिपकने की क्षमता को कम कर देती है, जिससे संक्रमण की संभावना बहुत घट जाती है।

    इम्प्लांट की सतह पर नई कोशिकाओं का जन्म और विकास बेहतर होता है, जिससे इम्प्लांट जल्दी और अच्छी तरह शरीर से जुड़ जाता है। इम्प्लांट्स की उम्र बढ़ती है और इसे बार-बार बदलने के लिए सर्जरी की आवश्यकता कम हो जाती है। प्रो. नेगी कहती हैं कि ये कोटिंग सिर्फ एक परत नहीं, बल्कि शरीर के साथ संवाद करने वाली एक 'स्मार्ट परत' है

    आर्थिक दृष्टिकोण से भी क्रांतिकारी

    प्रो. नेगी के अनुसार, अब तक जो कोटिंग्स यानी परत इम्प्लांट्स पर लगाई जाती थीं, वे अक्सर महंगे धातुओं (जैसे प्लैटिनम) से बनती थीं। लेकिन यह प्राकृतिक बायोपालिमर कोटिंग बेहद सस्ती है, जिससे चिकित्सा क्षेत्र में यह एक सुलभ और प्रभावशाली विकल्प बन सकती है। आने वाले वर्षों में जब मरीज बिना डर के इम्प्लांट सर्जरी करा सकेंगे, तेजी से ठीक होंगे और लंबे समय तक आराम से जी सकेंगे।

    वह कहती हैं कि भारत सरकार से इसका पेटेंट मिल गया है। इसलिए अब यह तकनीक व्यावसायीकरण के लिए भी तैयार हो गई है।

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