श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से तीन दुकानदार होंगे बेदखल, इलाहाबाद हाई कोर्ट में दावा खारिज
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर, मथुरा में दुकानों पर कब्जे के मामले में किरायेदारों की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ट्रस्ट सार्वजनिक धार्मिक एवं चैरिटेबल है, इसलिए संपत्ति किराया कानून के दायरे में नहीं है। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने निचली अदालत को दो माह में शेष मुकदमे निपटाने का आदेश दिया। संस्थान ने 2000-2002 में बेदखली वाद दायर किए थे, जिन्हें कोर्ट ने सही ठहराया।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से दुकानदारों की बेदखली बरकरार, इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला।
विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में बनी दुकानों के कब्जे को लेकर दाखिल किरायेदारों की याचिका खारिज कर दी है। विवाद 25 साल से अधिक समय से चल रहा था। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने यह आदेश देते हुए कहा है कि संस्था सार्वजनिक धार्मिक एवं चैरिटेबल ट्रस्ट है और उसकी संपत्तियां यूपी किराया कानून के दायरे से बाहर हैं। कोर्ट ने निचली अदालत को शेष बचे दो मुकदमों को दो महीने में निपटाने का निर्देश भी दिया है।
मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि 1944 में पंडित महामना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मस्थान का जीर्णोद्धार हुआ। सन 1951 में ‘श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ स्थापित हुआ तथा 1958 में इसके प्रबंधन के लिए ‘श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान’ नामक सोसाइटी बनाई गई।
संस्थान ने परिसर के अंदर कुछ दुकानें बनवाकर उन्हें किराये पर उठाया। दुकान नंबर 8-ए अशोक राघव, दुकान नंबर 8 सुश्री पद्मा राघव और दुकान नंबर 16-17 स्वर्गीय हरीश राघव (अब उनके वारिस) को दी गई। 11 महीने के लाइसेंस की अवधि समाप्त होने के बाद भी किरायेदारों ने दुकानें खाली नहीं कीं तो संस्थान ने सन 2000-2002 के दौरान इनके खिलाफ बेदखली वाद दायर किए।
किरायेदारों ने कहा कि संस्थान सार्वजनिक धार्मिक या चैरिटेबल ट्रस्ट नहीं है, इसलिए उत्तर प्रदेश अरबन बिल्डिंग एक्ट, 1972 लागू होना चाहिए जो किरायेदारों को ज्यादा सुरक्षा देता है। साथ ही कहा कि संस्थान के सचिव कपिल शर्मा के पास उनके खिलाफ मुकदमा दायर करने का अधिकार नहीं था।
कोर्ट ने ट्रस्ट डीड और सोसाइटी के मेमोरेंडम का अध्ययन करने के बाद कहा कि इसका उद्देश्य पूरे विश्व के हिंदुओं के लिए धार्मिक और कल्याणकारी कार्य है। इसलिए यह स्पष्ट रूप से ‘सार्वजनिक धार्मिक और चैरिटेबल संस्थान’ है। ऐसी संस्थाओं की संपत्तियां किराया कानून के दायरे से बाहर हैं।
सोसाइटी के बायलॉज के मुताबिक सचिव और संयुक्त सचिव को संस्थान की तरफ से मुकदमे चलाने का पूरा अधिकार है। कपिल शर्मा के अधिकार पर संस्थान के किसी भी ट्रस्टी या मेंबर ने आपत्ति नहीं की है इसलिए किरायेदार इस आधार पर मुकदमे को चुनौती नहीं दे सकते। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह पद्मा राघव और हरीश राघव के वारिसों के खिलाफ लंबित बेदखली के मुकदमों की प्रक्रिया दो महीने के भीतर पूरी करे।

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