Shakti Dubey Interview: कितने घंटे पढ़ाई करती थी शक्ति दुबे? यूपीएससी टॉपर बनने की रणनीति कर दी शेयर
प्रयागराज की शक्ति दुबे ने यूपीएससी परीक्षा में सफलता प्राप्त कर क्षेत्र का नाम रोशन किया है। सात साल की तैयारी और कई असफलताओं के बाद उन्होंने हार नहीं मानी। अपने साक्षात्कार में उन्होंने तैयारी की रणनीति प्रेरणा और युवाओं को मोबाइल के सही उपयोग के बारे में मार्गदर्शन दिया। शक्ति दुबे (Shakti Dubey Interview) ने बताया कि माता-पिता के समर्थन और सही मार्गदर्शन से ही सफलता मिली।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की यह कविता आइएएस टापर शक्ति दुबे के संघर्ष से सफलता तक के सफर में उनके व्यक्तित्व को बखूबी दर्शाती है।
सात वर्ष की तैयारी, चार बार असफलता और अंत में स्वर्णिम सफलता के इंद्रधनुष में गुंथी शक्ति ने आइएएस-आइपीएस देने वाली प्रयागराज की उर्वरा माटी को बंजर होने से रोक दिया। वह कहती हैं कि असफलता से कई पर पग डगमगाया।
सिविल सेवा परीक्षा-2024 में दो नंबर से असफल रहने पर लगा सबकुछ खत्म हो गया, लेकिन हार नहीं मानी। कुछ समय बाद पुन: नई ऊर्जा से लक्ष्य की ओर बढ़ने लगी, जिससे सफलता मिली। प्रस्तुत है शक्ति दुबे की दैनिक जागरण से बातचीत के प्रमुख अंश...।
प्रश्न: चार प्रयासों में असफलता और फिर टापर बनने का अनुभव कैसा रहा?
उत्तर: इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी और बीएचयू से एमएससी टापर रही पर असली चुनौती तो यूपीएससी की तैयारी थी। पहला प्रयास महज औपचारिकता था, असली गंभीरता तो बाद में आई। चौथे प्रयास में जब दो नंबर से चूक गई तो लगा जैसे सब खत्म हो गया। लेकिन पापा ने हिम्मत, मम्मी ने सहारा, भाई ने संबल दिया और मैंने हार नहीं मानी।
यह मेरे पिता का सपना था कि मैं अधिकारी बनूं। उन्होंने ही मेरे भीतर प्रेरणा का बीज बोया। कई बार ऐसा लगा कि सब कुछ खत्म हो गया है, लेकिन मम्मी-पापा और छोटे भाई ने हर बार मुझे खड़ा किया और मैंने निराशा को पास नहीं आने दिया।
प्रश्न:: साक्षात्कार का अनुभव कैसा रहा?
उत्तर:: इस बार इंटरव्यू पिछले वर्ष से बेहतर गया। मुझसे प्रयागराज महाकुंभ, भारत-चीन और भारत-नेपाल संबंधों पर प्रश्न पूछे गए। मेरी रूचियों और करंट अफेयर्स से जुड़े कई सवाल पूछे गए। साक्षात्कार के लिए उन्होंने खुद को लगातार अपडेट रखा और अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने का अभ्यास किया।
प्रश्न:: तैयारी के लिए उचित मार्गदर्शन कैसे मिला?
उत्तर:: मेरी तैयारी एकांत में हुई। मेरा कोई बड़ा फ्रेंड सर्कल नहीं था। मैंने खुद को किताबों, शिक्षकों और परिवार के मार्गदर्शन तक सीमित रखा। फाउंडेशन कोर्स के बाद जब मैं शिक्षकों के टच में आई, तब समझ आया कि सही मार्गदर्शन सफलता की चाबी है।
यह उनका पांचवां प्रयास था और सात वर्षों की तैयारी रही। हर असफलता के बाद मैंने अपनी गलती को पहचाना और अगली बार उस पर ध्यान दिया। आपको अपनी कमजोरियों को स्वीकार करना होगा, तभी सफलता की ओर बढ़ा जा सकता है।
प्रश्न:: युवा पीढ़ी मोबाइल पर ज्यादा समय देती है, इस पर क्या कहेंगी?
उत्तर:: किसी भी चीज के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू होते हैं। इसी तरह मोबाइल के भी हैं। मोबाइल आज एक शस्त्र बन सकता है, यदि आप उसे सही तरीके से इस्तेमाल करें। मैंने मोबाइल का प्रयोग केवल पढ़ाई और करंट अफेयर्स के लिए किया। प्रतियोगियों को चाहिए कि वे मोबाइल का उपयोग केवल स्टडी के लिए करें, वरना ध्यान और समय दोनों बर्बाद होते हैं।
प्रश्न:: प्रतियोगी छात्रों को क्या सुझाव देंगी?
उत्तर:: अब प्रारंभिक परीक्षा में 30 दिन बचे हैं। ऐसे समय में कुछ नया पढ़ने की जरूरत नहीं है। जो पढ़ा है, उसे रिवाइज करें। खुद पर विश्वास रखें और मानसिक मजबूती बनाए रखें। मैं औसतन 14 घंटे की पढ़ाई करती थीं और हमेशा पाठ्यक्रम की गहराई में जाकर पढ़ने की कोशिश करती थीं।
यूपीएससी में पालिटिकल साइंस एंड इंटरनेशनल रिलेशंस को अपना वैकल्पिक विषय चुना। उन्होंने कहा कि विषय का चयन रुचि और समझ के अनुसार करना चाहिए न कि ट्रेंड देखकर। इससे अध्ययन में गहराई आती है।
प्रश्न:: पहलगाम में आतंकी घटना पर क्या कहेंगी?
उत्तर:: आतंकवाद भारत के लिए सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, खासतौर पर सीमा पार आतंकवाद। सरकार आतंकवाद के खिलाफ अच्छा कार्य कर रही है, लेकिन हमें सतर्क रहना होगा। जब पहलगाम हमले की खबर पढ़ी तो बहुत बुरा लगा।
प्रश्न:: टापर बनकर कैसा लग रहा है?
उत्तर:: जब रिजल्ट आया और पता चला कि मैं टापर बनी गई हूं। पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ। फिर मैं सुनिश्चित होने के बाद सबसे पहले पापा को फोन किया। पापा कुछ देर तक चुप रहे, फिर बोले - एक बार फिर से बताओ, क्या हुआ है? यह पल कभी नहीं भूल सकती। सात वर्षों के संघर्ष, आत्ममंथन, असफलताओं और फिर सफलता के इस सफर ने बताया है कि यदि इच्छा सच्ची हो, तो रास्ता खुद बनता है।
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