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    UP High Court: बिना सात वचनों के कानून की नजर में शादी वैध नहीं, हिंदू विवाह को लेकर इलाहाबाद HC की टिप्पणी

    By Jagran NewsEdited By: Prince Sharma
    Updated: Wed, 04 Oct 2023 06:45 AM (IST)

    UP High Court इलाहाबाद हाई कोर्ट (High Court) ने कहा है कि हिंदू विवाह में वैधता के लिए सप्तपदी अनिवार्य है। सभी रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुए विवाह समारोह को ही कानून की नजर में वैध विवाह माना जा सकता है। कोर्ट ने 21 अप्रैल 2022 को याची के विरुद्ध जारी समन व परिवाद की प्रक्रिया को रद कर दिया।

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    UP High Court: बिना सात वचनों के कानून की नजर में शादी वैध नहीं, हिंदू विवाह को लेकर इलाहाबाद HC की टिप्पणी

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह में वैधता के लिए सप्तपदी अनिवार्य है। सभी रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुए विवाह समारोह को ही कानून की नजर में वैध विवाह माना जा सकता है। यदि ऐसा नहीं है तो कानून की नजर में ऐसा विवाह वैध विवाह नहीं माना जाएगा। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने वाराणसी निवासी स्मृति सिंह उर्फ मौसमी सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

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    कोर्ट ने 21 अप्रैल, 2022 को याची के विरुद्ध जारी समन व परिवाद की प्रक्रिया को रद कर दिया। मौसमी के पति और ससुराल के लोगों ने बिना तलाक दिए दूसरा विवाह करने का आरोप लगाते हुए वाराणसी जिला अदालत में परिवाद दायर किया था।

    बता दें, सनातन धर्म में विवाह के समय अग्नि को साक्षी मान वर -वधू सात फेरे लेते हैं। इसमें वधू वर से सात वचन लेती है। इसके बाद विवाह पूर्ण माना जाता है। इस प्रक्रिया को सप्तपदी कहते हैं। याची का कहना था कि उसका विवाह पांच जून, 2017 को सत्यम सिंह के साथ हुआ था। विवादों के कारण उसने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न व मारपीट का मुकदमा दर्ज कराया।

    ससुराल वालों की ओर से दिया गया था शिकायत पत्र

    पुलिस ने पति व ससुराल वालों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट भी दाखिल की है। पति और ससुराल वालों की तरफ से पुलिस अधिकारियों को शिकायती पत्र देकर कहा गया कि याची ने तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर ली है। इस शिकायत की सीओ सदर मीरजापुर ने जांच की और उसे झूठा करार देते हुए रिपोर्ट लगा दी। इसके बाद सत्यम ने जिला न्यायालय वाराणसी में परिवाद दाखिल किया।

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    अदालत ने मौसमी को समन जारी किया था। इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि दूसरा विवाह करने का आरोप गलत है। यह उसकी (याची की) तरफ से दर्ज कराए गए मुकदमे का बदला लेने के लिए लगाया गया है। शिकायत परिवाद में विवाह समारोह संपन्न होने का कोई साक्ष्य नहीं है। न ही सप्तपदी का कोई साक्ष्य है जो विवाह की अनिवार्य रस्म है एकमात्र फोटोग्राफ साक्ष्य के तौर पर है। इसमें भी लड़की का चेहरा स्पष्ट नहीं है।

    हिंदू विवाह की वैधता को स्थापित करने के लिए सप्तपदी जरूरी

    कोर्ट ने दोनों पक्षों की जिरह को सुनने के बाद कहा, हिंदू विवाह की वैधता को स्थापित करने के लिए सप्तपदी अनिवार्य तत्व है मगर वर्तमान मामले में इसका कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। यह स्पष्ट है कि सिर्फ याची को परेशान करने के उद्देश्य से दूषित न्यायिक प्रक्रिया शुरू की गई है और यह अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अदालत का यह दायित्व है कि वह निर्दोष लोगों को ऐसी प्रक्रिया से बचाए।

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