प्रयागराज के इस स्कूल में संस्कृत बनी बोलचाल की भाषा, बच्चे सीख रहे वेद और उपनिषद
प्रयागराज के एक स्कूल में बच्चे संस्कृत में बात करते हैं जो उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। शिक्षक डा. रीना मिश्रा ने खेल-खेल में संस्कृत सिखाने के लिए विशेष शिक्षण सामग्री बनाई है। बच्चे गीता के श्लोक और रामायण की चौपाई याद करते हैं। ग्रीष्मावकाश में रामायण अभिरुचि कार्यशाला भी आयोजित की गई।

अमलेंदु त्रिपाठी, प्रयागराज। कल्पना कीजिए, परिषदीय विद्यालय का एक आंगन, जहां बच्चों की चहचहाहट संस्कृत के स्वरों में गूंज रही हो। जहां ‘नमः’, ‘त्वम्’, ‘अहम्’, ‘वयम्’ जैसे शब्द केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित न होकर बच्चों की दिनचर्या और बातचीत का हिस्सा बन गए हों।
यह कोई कथा नहीं, बल्कि साकार होती तस्वीर है संगमनगरी प्रयागराज के सैदाबाद विकासखंड स्थित संविलयन विद्यालय चक सिकंदर की। यहां संस्कृत अब एक विषय नहीं, बल्कि संवाद की जीवंत भाषा बन चुकी है।
लगभग 150 छात्र-छात्राएं देववाणी से इस तरह आत्मसात हो चुके हैं कि वे परिचय, संवाद, और यहां तक कि भाव-प्रकटन भी संस्कृत में ही करते हैं। बच्चों की उपस्थिति संस्कृत में ली जाती है और कक्षा में उपयोग होने वाली वस्तुओं को भी संस्कृत नामों से पुकारा जाता है। जैसे डस्टर को मार्जक, चाक को सुधाखंड, और कुर्सी को आसंदिका।
यह बदलाव सिर्फ शैक्षिक ही नहीं, बल्कि रचनात्मक भी है। विद्यालय की शिक्षिका डा. रीना मिश्रा ने बच्चों के लिए ऐसा टीएलएम (टीचिंग लर्निंग मैटेरियल) तैयार किया है, जो पढ़ाई को खेल में बदल देता है। संस्कृत में आधारित लूडो और सांप-सीढ़ी के माध्यम से फल, फूल, सब्जियों के नाम, संख्याएं और सरल वाक्य संरचना बच्चों को खेल-खेल में सिखाई जा रही है।
बच्चे श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक और रामचरित मानस की चौपाइयों को न केवल याद कर रहे हैं, बल्कि उनके अर्थ को संस्कृत में समझने और बताने का भी प्रयास कर रहे हैं। जब कोई बालक सहजता से कहता है, 'मम नाम राहुलः अस्ति।
अहम् क्रीडां कर्तुं इच्छामि। तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रयोगात्मक शिक्षण पद्धति बच्चों के मन और मस्तिष्क दोनों को संस्कृत से जोड़ रही है। संस्कृत की यह पुनर्स्थापना केवल भाषा का अभ्यास नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का एक सार्थक प्रयास बन गई है।
डा रीना ने बताया कि नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूट्रीशन हैदराबाद के शोध में इस बात को बताया गया है कि लूडो और सांप सीढ़ी का खेल न्यूट्रिशन खेल है। उसके बाद ही अपने स्कूल में भी इस दिशा में प्रयास किया।
इसके अतिरिक्त छात्र छात्राओं ने वेद, उपनिषद, पुराण के बहुत से श्लोक कंठस्थ कर लिए हैं। साथ बैठकर वे सस्वर पाठ भी करते हैं। उन्हें महेश्वर सूत्र, गुरु वंदना, परिवार के सदस्यों के संस्कृत संबोधन, मिठाइयों के नाम भी इसी भाषा में बोलना अच्छा लगता है।
शासन स्तर से भाषा, गणित जैसे विषय में बच्चों की निपुणता का मूल्यांकन किया जाता है, ठीक उसी तरह संस्कृत में भी यहां के बच्चे निपुण हैं। विद्यालय में बच्चों को शाबाशी हिंदी या अंग्रेजी में न देकर संस्कृत में दी जाती है। छात्र छात्राएं भी उसी का अनुशरण करते हैं। वे अच्छा, बहुत अच्छा की जगह समीचीन, अतिशोभनम, बहुउत्तम, बहुशोभनम जैसे शब्द प्रयोग करने में नहीं झिझकते हैं।
ग्रीष्मावकाश में रामायण अभिरुचि कार्यशाला
बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए ग्रीष्मावकाश में रामायण अभिरुचि कार्यशाला वाट्स्एप के जरिए की गई। फोन पर बातकर उनसे सरल संवाद भी हुआ। प्रत्येक विद्यार्थी को बहुत सी चौपाई याद कराई गई। उसके अर्थ बताए गए। इसे लेकर वे आपस में अंत्याक्षरी खेलने में रुचि ले रहे हैं।
संस्कृत अभ्यास के लिए बनाई नौ मीटर लंबी पोथी
बच्चों को संस्कृत रुचिकर लगे इसके लिए नौ मीटर लंबी बाल पोथी बनाई गई है। इसे पूरी कक्षा एक साथ पढ़ सकती है। उसमें ढेरों श्लोक व व्याकरण आदि की जानकारी देने वाली विषयवस्तु समाहित है। इन सब के साथ बच्चों की पर्ची गतिविधि भी होती है। इसके माध्यम से शब्दों का संग्रह, शब्दों के अर्थ लिखना, अधूरी पंक्ति को पूरा करना, वाक्य बनाने का अभ्यास कराया जाता है। इससे उच्चारण और शब्दकोश समृद्ध हो रहा है।
इसी अभ्यास का प्रतिफल रहा कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की ओर से होने वाली प्रतियोगिताओं में पिछले सत्र में कक्षा छह की नैनसी शर्मा ने सस्वर वाचन में दूसरा, कक्षा सात की अंशिका यादव ने दूसरा, कक्षा आठ की बेबी भारतीय ने प्रथम, इसी कक्षा के गोलू ने संस्कृत गीत प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया। उसे 700 रुपये की छात्रवृत्ति भी मिल रही है।
ऐसे प्रयास सांस्कृतिक समृद्ध लाएंगे
टीकर माफी आश्रम के महंत हरि चैतन्य ब्रह्मचारी इस तरह के प्रयास को सराहते हैं। कहते हैं, ऐसे प्रयास सभी विद्यालयों में हों तो सांस्कृतिक समृद्धि आएगी। नई पीढ़ी जड़ों से जुड़ेगी। संस्कृत से हिंदी भी विकसित होगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।