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    दवाइयां बनेंगी मिनटों में, बीमारियों की पहचान होगी तुरंत; क्या है एलईडी-नियंत्रित माइक्रोफ्लूडिक फोटो-रिएक्टर?

    By MRITUNJAI MISHRAEdited By: Aysha Sheikh
    Updated: Wed, 29 Oct 2025 07:10 PM (IST)

    प्रयागराज के भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक में एलईडी-नियंत्रित माइक्रोफ्लुइडिक फोटो-रिएक्टर का उपयोग किया गया है, जो दवा निर्माण को तेज, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल बनाता है। इस प्रणाली से रासायनिक अभिक्रियाएं तेजी से होती हैं और ऑनलाइन निगरानी भी की जा सकती है। इस तकनीक को भारत सरकार ने पेटेंट दिया है।

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    मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। अब प्रकाश की किरणें सिर्फ उजाला नहीं फैलाएंगी, बल्कि जीवनरक्षक दवाओं और औद्योगिक यौगिकों के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाएंगी। भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान के विज्ञानियों ने एलईडी-नियंत्रित माइक्रोफ्लूडिक फोटो-रिएक्टर विकसित कर एक ऐसी तकनीक प्रस्तुत की है, जो दवा निर्माण को तेज, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल बना देगी।
     
    यह अभिनव प्रणाली न केवल रासायनिक अभिक्रियाओं को पलभर में पूर्ण करती है, बल्कि आनलाइन निगरानी के जरिये हर क्षण उनकी प्रगति पर भी नजर रखती है। इस तकनीकी को भारत सरकार ने पेटेंट भी प्रदान कर दिया है, इस आशय का शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल एसीएस ओमेगा में प्रकाशित हुआ है।
     
    आइआइआइटी के अप्लाइड साइंस विभाग के प्रोफेसर अमित प्रभाकर के नेतृत्व में डा. दीप्ति वर्मा, अमरध्वज, ज्ञानेंद्र चौधरी के दल ने माइक्रोफ्लूडिक फोटो-रिएक्टर विकसित किया है। डा. अमित प्रभाकर कहते हैं कि अब रासायनिक संयोजन किसी विशाल लैब में नहीं, बल्कि ‘लैब-आन-ए-चिप’ नामक सूक्ष्म तकनीक में होता है।
     
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    इस अभिनव फोटो-रिएक्टर में एलइडी लाइट्स और आप्टिकल फाइबर सीधे सूक्ष्म चैनलों के भीतर लगाए गए हैं। इन चैनलों में प्रवाहित रासायनिक द्रव पर जब प्रकाश पड़ता है, तो वह फोटो-रासायनिक प्रतिक्रिया को प्रेरित करता है।
     
    इस तकनीक से विज्ञानियों ने बेंजिमिडाजोल नामक यौगिकों का सफल संश्लेषण किया है जो एंटी-कैंसर, एंटी-वायरल, एंटी-फंगल और एंटी-हाइपरटेंशन जैसी कई औषधियों की रीढ़ माने जाते हैं। जहां पारंपरिक विधियों में इन यौगिकों को तैयार करने में 2-3 घंटे लगते थे, वहीं इस नई प्रणाली से सिर्फ 10 मिनट में 85-94 प्रतिशत की उत्कृष्ट उपज प्राप्त होती है और वह भी बिना किसी हानिकारक रसायन या धातु उत्प्रेरक के।
     
    अणुओं की संरचना व गुणों का सटीक अध्ययन
    डा. अमित प्रभाकर कहते हैं कि रिएक्टर पर आधारित तकनीक में बहुत ही बारीक चैनलों के भीतर रासायनिक अभिक्रियाएं नियंत्रित ढंग से होती हैं। बेहद छोटे चैनल से होकर रासायनिक द्रव पदार्थ गुजरते हैं। इन चैनलों की दीवारों पर धातु नैनोकण को स्थायी रूप से जोड़ा गया है।
     
    ये नैनोकण उत्प्रेरक (कैटलिस्ट) का कार्य करते हैं और रासायनिक अभिक्रियाओं की गति, दक्षता और सटीकता को कई गुना बढ़ा देते हैं। माइक्रोफ्लुइडिक डिवाइस से विज्ञानी दवाओं के अणुओं की संरचना और गुणों का सटीक अध्ययन कर सकते हैं। इससे पारंपरिक बड़े पैमाने की प्रयोगशालाओं पर निर्भरता घटेगी और मिनटों या घंटों में ही नई औषधि संयोजन (ड्रग फार्मुलेशन) की जांच संभव हो सकेगी।
     
    हरित केमिस्ट्री की दिशा में बड़ा कदम
    इस खोज की सबसे बड़ी विशेषता है इसका पर्यावरण-अनुकूल स्वरूप। इससे ऊर्जा की खपत घटती है, रासायनिक अपशिष्ट लगभग शून्य होता है और सुरक्षा जोखिम नगण्य रहते हैं। इस तकनीक की दूसरी अनोखी विशेषता है आनलाइन रिएक्शन मानिटरिंग सिस्टम। आप्टिकल फाइबर के माध्यम से रिएक्शन के दौरान यूवी–विज स्पेक्ट्रोस्कोपी द्वारा हर क्षण डेटा रिकार्ड किया जा सकता है। इससे विज्ञानियों को यह तुरंत पता चल जाता है कि प्रतिक्रिया किस स्तर तक पहुंची है और किस समय इसे रोका जाना चाहिए।
     
    दवा बनाना, परखना व रोग की पहचान को बन रही नई डिवाइस
    दवा निर्माण में एलईडी-नियंत्रित माइक्रोफ्लूडिक फोटो-रिएक्टर के बेहतर परिणाम और पेटेंट को देखते हुए उतर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद यूपीसीएसटी ने आइआइआइटी के नया प्रोजेक्ट सौंपा है। यह एक ऐसी कांबो तकनीक होगी, जिसमें दवा निर्माण की प्रक्रिया को तेज, सटीक और अत्यधिक किफायती बनाने के साथ ही रोगों की सटीक पहचान सटीकता से की जा सकेगी।
     
    इस डिवाइस को मेटल नैनोपार्टिकल-इममोबिलाइज्ड माइक्रोफ्लुइडिक रिएक्टर नाम दिया गया है। डा. प्रभाकर कहते हैं कि किसी विशेष रोग से संबंधित बायोमार्कर (जैसे किसी वायरस या कैंसर कोशिका से निकलने वाला प्रोटीन) इस डिवाइस के संपर्क में आएगा तो धातु नैनोकण उससे प्रतिक्रिया कर विद्युत या प्रकाशीय संकेत उत्पन्न करते हुए रोग की पहचान बता देंगे।
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