इलाहाबाद हाई कोर्ट में राहुल गांधी की याचिका पर आदेश सुरक्षित, सिखों को उकसाने की बात से इनकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की पुनरीक्षण याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया है। बहस में याची ने कहा कि उन्होंने सिखों को उकसाया नहीं। वहीं अपर महाधिवक्ता ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष का बयान साधारण नहीं माना जा सकता। राहुल गांधी के वकील ने कहा कि निचली अदालत ने उनके तर्कों पर विचार नहीं किया। अदालत ने शिकायतकर्ता की याचिका पर असहमति जताई।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की पुनरीक्षण याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया है। करीब तीन घंटे से अधिक समय तक न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ में बहस चली।
याची ने कहा कि उनकी तरफ से सिखों को उकसाया नहीं गया । एकाध वाक्य से इरादे का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। अपर महाधिवक्ता का कहना था कि नेता प्रतिपक्ष के बयान को साधारण व्यक्ति का बयान नहीं माना जा सकता।
कांग्रेस नेता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि मेरे मुवक्किल द्वारा दिए गए बिंदुओं पर निचली अदालत ने विचार नहीं किया। अभी तक यह तय नहीं किया है कि संज्ञेय अपराध बनता है अथवा नहीं।
सत्र न्यायाधीश का कर्तव्य था कि वह अपने समक्ष प्रस्तुत तर्कों पर निष्कर्ष दर्ज करें। इस मामले को सत्र न्यायाधीश के पास वापस भेजकर शुरू से ही समग्रता से निर्णय लिया जाना चाहिए।
इससे पूर्व शिकायतकर्ता नागेश्वर मिश्र के अधिवक्ता सत्येन्द्र नाथ त्रिपाठी ने कहा कि वाराणसी न्यायालय के आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण याचिका स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यह अंतरिम प्रकृति का है, लेकिन कोर्ट इससे असहमत दिखा।
न्यायमूर्ति ने अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल से पूछा कि क्या वह शिकायतकर्ता पक्ष के वकील की दलीलों पर विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं अथवा वह अदालत से सहमत हैं ?
इस पर अपर महाधिवक्ता ने कहा कि वह अदालत से सहमत हैं। बता दें कि वाराणसी की एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट के आदेश को राहुल गांधी ने पुनरीक्षण याचिका में चुनौती दी है।
यह है मामला
एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट ने अमेरिका में सिख समुदाय को लेकर दिए गए बयान के मद्देनजर 21 जुलाई को राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने की मांग वाली अर्जी स्वीकार कर ली थी।
सितंबर 2024 में राहुल गांधी ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर कहा था कि भारत में सिखों के लिए माहौल अच्छा नहीं है, क्या सिख पगड़ी पहन सकते हैं, कड़ा रख सकते हैं और गुरुद्वारे जा सकते हैं? उनके इस बयान शिकायतकर्ता ने भड़काऊ और समाज में विभाजनकारी बताया।
सारनाथ थाने में एफआईआर दर्ज करने के लिए तहरीर दी थी, लेकिन प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। इस पर अदालत में परिवाद दाखिल किया। इसे न्यायिक मजिस्ट्रेट (द्वितीय) ने 28 नवंबर 2024 को कहते हुए खारिज कर दिया कि मामला अमेरिका में दिए गए भाषण से जुड़ा है और यह उनके क्षेत्राधिकार से बाहर है।
इसके बाद नागेश्वर मिश्रा ने सत्र न्यायालय में निगरानी याचिका दाखिल की जिसे 21 जुलाई 2025 को विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए) की अदालत ने स्वीकार कर लिया।
याचिका में कहा गया है कि वाराणसी अदालत का आदेश गलत, अवैध और अधिकार क्षेत्र से बाहर है। लिहाजा जब तक यह मामला हाई कोर्ट में लंबित है तब तक वाराणसी अदालत के आदेश पर रोक लगाई जाए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।