प्रयागराज का पुराना Yamuna Bridge 15 अगस्त को 160 वर्ष का हो जाएगा, इंजीनियरिंग के इस बेजोड़ नमूना से जुड़े रोचक प्रसंग भी हैं
पुराना नैनी यमुना पुल प्रयागराज की जीवंत धरोहर है जो 160 वर्षों से यमुना की लहरों को झेल रहा है। यह ब्रिटिश शासन की तकनीकी कुशलता का प्रतीक है जिसे 1865 में बनाया गया था। 17 पिलर पर टिका यह पुल अपनी अनूठी हाथी पांव डिजाइन के लिए जाना जाता है। कुंभ मेले के दौरान रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगाता रहा।

जागरण संवाददाता, अमरीश मनीष शुक्ल। समय की लहरों पर सवार एक कहानी है....। भाप इंजन की सीटी के साथ, छुक-छुक करती ट्रेनों को इसने देखा, तो आज आधुनिक ट्रेनों की गति का साक्षी भी। असंभव लग रही यमुना के विकराल स्वरूप को को जिसने लांघने का साहस पैदा किया, दिल्ली से जिसने हावड़ा को जोड़ा, यह केवल एक संरचना नहीं है, यह एक जीवंत धरोहर है, जी हां.... नाम है पुराना नैनी यमुना पुल।
15 अगस्त को 2025 को यह पुल 160 वर्ष को हो जाएगा। वे लोग जो इलाहाबादी यानी आज के प्रयागी हैं, उनकी कभी न कभी एक शाम यहां बीती होगी। गऊघाट के पास, जब सूरज ढलता है और यमुना की लहरों पर सवार नाव इस पुल के नीचे से गुजरती हैं, तो मानो समय रुक जाता है। यह दृश्य न केवल सुकून देता है, बल्कि समय की गहराई को भी दर्शाता है और लगता है कि यह समय आगे ही न बढ़े।
17 पिलर पर टिका है पुल
इसके 17 पिलर, खासकर 'हाथी पांव', और डबल-डेकर डिजाइन इसे देश का सबसे अनूठा रेल पुल बनाते हैं। यह इंजीनियरिंग की कारीगरी, इतिहास की गवाही और प्रयागराज की सांस्कृतिक धड़कन का प्रतीक है। यह उन लाखों यात्रियों की कहानियों को समेटे हुए है, जो इसके ऊपर से गुजरे। यह एक ऐसी संरचना है जो न केवल इंजीनियरिंग का चमत्कार है, बल्कि इतिहास, संस्कृति और आधुनिकता का संगम भी है।
159 वर्षों से झेल रहा यमुना की लहरें
यह पुल 159 साल से यमुना की लहरों को झेलते हुए अपनी मजबूती का परिचय दे रहा है। यह केवल स्टील और पत्थरों का ढांचा नहीं, यह केवल एक परिवहन माध्यम नहीं, बल्कि प्रयागराज की धड़कन और उसकी कहानियों का जीवंत प्रतीक है। इसके बिना तीर्थ नगरी की कहानी अधूरी है जो समय को मात देती है। यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करता रहेगा।
ब्रिटिश युग की तकनीकी उपलब्धि
पुराना नैनी यमुना पुल का निर्माण एक ऐसी कहानी है, जो ब्रिटिश शासन की तकनीकी कुशलता और उस दौर की चुनौतियों को दर्शाती है। इस पुल की नींव की कहानी 1855 में शुरू हुई, जब अंग्रेजों ने यमुना नदी पर एक मजबूत रेलवे पुल बनाने की योजना बनाई। हालांकि, 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारण गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग ने निर्माण कार्य को रोक दिया। उनकी मंशा थी कि रेलवे लाइन को किले या उसके आसपास से जोड़ा जाए, जिससे ब्रिटिश सेना को किले से सीधा जोड़ा जा सके, लेकिन तकनीकी बाधाओं के कारण यह संभव नहीं हो सका।
15 अगस्त 1865 को यह पुल बनकर तैयार हुआ
1859 में पुल निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ, ब्रिटिश इंजीनियर सिवले की देखरेख में छह साल की मेहनत के बाद 15 अगस्त 1865 को यह पुल बनकर तैयार हुआ और आवागमन शुरू हुआ। यह पुल उस समय भारतीय रेलवे के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी था, जो प्रयागराज को नैनी और अन्य क्षेत्रों से जोड़ता था। शुरुआत में यह केवल रेलवे के लिए बनाया गया था, लेकिन बाद में इसके निचले हिस्से में सड़क बनाई गई, जिसने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया।
इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना
पुराना नैनी यमुना पुल अपनी तकनीकी बनावट के लिए भी प्रसिद्ध है। यह 14 पिलर पर टिका है, जिनमें से प्रत्येक 67 फीट लंबा और 17 फीट चौड़ा है। इन पिलरों की नींव 42 फीट तक गहरी है, जो इसकी मजबूती का आधार है। पुल में 14 स्पैन 61 मीटर लंबे, दो स्पैन 12.20 मीटर लंबे और एक स्पैन 9.18 मीटर लंबा है। इसकी संरचना में 30 लाख क्यूबिक ईंट और गारा का उपयोग हुआ, जबकि गर्डर का कुल वजन 4300 टन है। गर्डर पर एक करोड़ 46 लाख 300 रुपये का खर्च आया था, जो उस समय की मुद्रा में एक विशाल राशि थी।
एक अनूठी विशेषता- हाथी पांव पिलर
पुल की एक अनूठी विशेषता इसका 'हाथी पांव' पिलर है। यमुना नदी के तेज बहाव के कारण एक खास स्थान पर बार-बार पिलर टूट रहा था। इस समस्या से निपटने के लिए इंजीनियरों ने एक पिलर को हाथी के पांव की तरह डिजाइन किया, जो अपनी मजबूती और अनूठे डिजाइन के लिए आज भी चर्चा का विषय है। यह डबल-डेकर पुल अपनी बहु-स्तरीय उपयोगिता के लिए भी खास है। सबसे ऊपर रेलगाड़ियां, बीच में सड़क पर वाहन, और सबसे नीचे यमुना नदी में नावें चलती हैं। इसके अलावा, यह पुल बरौनी-प्रयागराज तेल पाइपलाइन और गऊघाट से नैनी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक सीवर लाइन को भी जोड़ता है।
समय के साथ बदलाव और उन्नयन
पुराना नैनी यमुना पुल समय के साथ कई बदलावों का साक्षी रहा है। 1913 में इस पर डबल रेल लाइन बिछाई गई, जिसने इसकी क्षमता को बढ़ाया। 1928-29 में पुराने गर्डर को नए गर्डर से बदला गया, ताकि यह और अधिक मजबूत हो सके। 2007 में लकड़ी के स्लीपर की जगह स्टील चैनल स्लीपर लगाए गए, जिसने इसकी आयु और सुरक्षा को और बढ़ाया। 2013 में बड़े पैमाने पर मरम्मत कार्य हुआ, लेकिन इस दौरान रेल और सड़क यातायात निर्बाध रूप से चलता रहा।
2004 से पुराने यमुना पुल पर भारी वाहनों का प्रवेश बंद
2004 में नए यमुना केबल ब्रिज के बनने के बाद इस पुराने पुल पर भारी वाहनों का प्रवेश बंद कर दिया गया। अब इस पर केवल हल्के वाहन ही चलते हैं, जबकि रेल मार्ग पर ट्रेनें 80 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती हैं। 2019 के कुंभ मेले के दौरान इस पुल को रंग-बिरंगी एलईडी और फसाड लाइट्स से सजाया गया, जिसने इसे एक पर्यटक आकर्षण के रूप में नई पहचान दी।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर भी
प्रयागराज का पुराना नैनी यमुना पुल केवल एक इंजीनियरिंग उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह शहर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का भी हिस्सा है। कुंभ और माघ मेलों के दौरान लाखों श्रद्धालु इस पुल से होकर संगम तट तक पहुंचते हैं। इसकी भव्यता और यमुना के शांत प्रवाह का दृश्य हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। खासकर गऊघाट के पास, सुबह और शाम के समय का सूरज।
2019 के महाकुंभ में रंग-बिरंगी रोशनी से नहा उठा था
2019 के कुंभ मेले में जब इस पुल को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया, तो यह केवल एक परिवहन मार्ग नहीं रहा, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक बन गया। यह उन असंख्य यात्रियों की कहानियों को अपने भीतर समेटे हुए है, जो इसके ऊपर से गुजरे- कभी भाप इंजन की सीटी के साथ, तो कभी आधुनिक ट्रेनों की रफ्तार के साथ।
पुल का रखरखाव और चुनौतियां
160 साल से से यमुना की लहरों को झेलने के बावजूद, यह पुल अपनी मजबूती के लिए जाना जाता है। रेलवे की एक विशेष टीम इसका नियमित निरीक्षण करती है। हर चार साल में इसकी आयलिंग, ग्रीसिंग और पेंटिंग की जाती है, ताकि इसे जंग और मौसमी प्रभावों से बचाया जा सके। फिर भी, आधुनिक युग की बढ़ती जरूरतों और ट्रैफिक के दबाव ने इसकी क्षमता पर सवाल उठाए हैं। यही कारण है कि नया यमुना पुल बनाया गया। लेकिन पुराना नैनी पुल अपनी ऐतिहासिकता और मजबूती के कारण आज भी अपरिहार्य है।
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