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    Pandit Hariprasad Chaurasia: पिता चाहते थे पं. हरि प्रसाद चौरसिया बन जाएं पहलवान, छुपकर बांसुरी बजाकर पाया मुकाम

    Updated: Tue, 01 Jul 2025 04:09 PM (IST)

    पद्मविभूषण पं. हरि प्रसाद चौरसिया (Pandit Hariprasad Chaurasia) का जन्म प्रयागराज में हुआ था। उनके पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे लेकिन उनकी रुचि संगीत में थी। उन्होंने बांसुरी वादन में महारत हासिल की और पद्मविभूषण से सम्मानित हुए। दिसंबर 2024 में उन्होंने प्रयागराज में अपनी संगीत यात्रा का वर्णन किया। उनके शिष्यों ने भी इस विरासत को आगे बढ़ाया है।

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    Pandit Hariprasad Chaurasia: पद्मविभूषण सम्मान से विभूषित बांसुरी वादक पं. हरि प्रसाद की साधना थी गजब की थी।

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। (Pandit Hari Prasad Chaurasia) खपरैल के घर से बंशी बजाकर संगीत साधना और (Padma Vibhushan Awardee) पद्मविभूषण सम्मान पाने तक की यात्रा, पं. हरि प्रसाद चौरसिया के लिए यह आसान रास्ता नहीं था। ऐसा इसलिए कि उनके पिता चाहते थे कि बेटा अखाड़े में जाकर कुश्ती लड़े और पहलवान बने।

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    प्रयागराज के लोकनाथ मुहल्ले में बचपन बीता

    प्रयागराज के लोकनाथ मुहल्ले में भारती भवन लाइब्रेरी के ठीक बगल स्थित घर में उनका बचपन बीता। यहीं एक जुलाई 1938 को उनका जन्म हुआ था। पं. हरि प्रसाद चौरसिया के शिष्यों राकेश चौरसिया, दो बहनें देबोप्रिया एवं सुचिस्मिता चटर्जी ने बांसुरी बजाने की विरासत को आगे बढ़ाया और इन्होंने भी फिल्म नगरी मुंबई में स्वयं को स्थापित किया।

    बज्म-ए-विरासत में अपनी संगीत यात्रा का जिक्र

    दिसंबर 2024 में 20 तारीख को प्रयागराज आए पं. हरि प्रसाद चौरसिया ने कार्यक्रम बज्म-ए-विरासत में अपनी संगीत यात्रा का जिक्र किया था। यह भी बताया था कि किस तरह से वे लोकनाथ की गलियों में खेले, घर में पिता के डर से एक कमरे में छुप कर बांसुरी बजाते थे और उनकी साधना एकाग्र रही। यह साधना स्थली अब भी भारती भवन पुस्तकालय के बगल में है लेकिन उसका स्वरूप अब बदल चुका है, घर में दूसरे लोग रह रहे हैं।

    परिवार के साथ मुंबई में रहते हैं

    जबकि पं. हरि प्रसाद चौरसिया परिवार सहित मुंबई में रहते हैं। पारिवारिक सदस्य गोपाल जी चौरसिया ने बताया कि पं. हरि प्रसाद चौरसिया 1980 के बाद मुंबई चले गए थे। जब तक यहां रहे बांसुरी वादन उन्होंने कई मंचों पर किया।

    बचपन में जब वे बांसुरी बजाना सीख रहे थे तब आसपास रहने वालों का संगीत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। सुबह-सुबह घर से बजती बांसुरी वातावरण में स्वर लहरी घोल देती थी। उनके तमाम मित्र सहयोग करते थे ताकि जिस रास्ते पर पं. हरि प्रसाद चल पड़े हैं उसमें सफलता मिले।

    कम होता है प्रयागराज आना

    गोपाल जी चौरसिया कहते हैं कि पं. हरि प्रसाद चौरसिया (Pandit Hariprasad Chaurasia) के दिल में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) रचा बसा है। वृद्धावस्था के चलते उनका आना अब कम होता है।

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