प्रयागराज में सीमांचल एक्सप्रेस से 15 बच्चों का रेस्क्यू, 48 घंटे बाद भी कोई मुकदमा नहीं; न परिवार को मिले बच्चे
प्रयागराज में सीमांचल एक्सप्रेस से 15 बच्चों को बचाया गया जिनमें 10 नाबालिग हैं। उन्हें बाल मजदूरी के लिए ले जाया जा रहा था। 48 घंटे बाद भी बच्चे माता-पिता से नहीं मिले ठेकेदार फरार है। जीआरपी आरपीएफ और एएचटीयू जिम्मेदारी से बच रहे हैं। कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ जिससे सिस्टम की असंवेदनशीलता उजागर होती है। बच्चों की काउंसलिंग चल रही है पर कार्रवाई का इंतजार है।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। जोगबनी से आनंद विहार टर्मिनल जा रही सीमांचल एक्सप्रेस (12487) में मानव तस्करी की सूचना पर मंगलवार को जीआरपी और आरपीएफ ने 15 बच्चों को रेस्क्यू किया। इनमें 10 नाबालिग हैं, जिन्हें पढ़ाई का लालच देकर बल्कि बाल मजदूरी के लिए दिल्ली और लुधियाना ले जाया जा रहा था। लेकिन 48 घंटे बीत जाने के बाद भी ये बच्चे अपने माता-पिता से नहीं मिल सके।
ठेकेदार अफरोज, जो इन बच्चों को अमानवीय ढंग से ले जा रहा था, फरार है। हैरानी की बात यह है कि इस गंभीर मामले में न तो कोई मुकदमा दर्ज हुआ और न ही कोई ठोस कार्रवाई। अगर बच्चों को रेस्क्यू करने के बाद भी उन्हें उनके माता-पिता से नहीं मिलाया जा सकता, अगर तस्करों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकती, तो रेस्क्यू का क्या मतलब? यह सिस्टम गरीब और असहाय बच्चों के दर्द के प्रति पूरी तरह बेपरवाह है।
माता-पिता, जो अपने बच्चों को पाने के लिए प्रयागराज पहुंचे, दिनभर इंतजार के बाद अब रात में खुले आसमान के नीचे भूखे पेट सोएंगे, वह जुबान भी नहीं खोल सकते, डर है कि उन पर ही कहीं कार्रवाई न हो जाए। यह स्थिति न केवल हृदयविदारक है, बल्कि सिस्टम के चेहरे पर करारा तमाचा है।
सिस्टम की यह असंवेदनशीलता और लापरवाही न केवल बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रही है, बल्कि समाज के विश्वास को भी कुचल रही है। जिम्मेदारी का टालमटोल रेस्क्यू के बाद बच्चों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के हवाले किया गया, लेकिन अभी काउंसलिंग पूरी नहीं हुई है। आरपीएफ का कहना है कि उनकी जिम्मेदारी केवल सुरक्षा तक सीमित है और कार्रवाई जीआरपी को करनी चाहिए। जीआरपी का तर्क है कि मामला एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) के दायरे में आता है। वहीं, एएचटीयू संसाधनों की कमी का रोना रोकर जीआरपी को ही मुकदमा दर्ज करने की सलाह देता है। यह आपसी टकराव और जिम्मेदारी से पलायन का खेल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
सवाल उठता है कि अगर ये बच्चे नहीं, आतंकवादी होते, तो क्या तब भी यही लापरवाही बरती जाती? 48 घंटे से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी काउंसलिंग चल रही है, बच्चे शेल्टर होम में अपने माता-पिता से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं, वर्दीवालों को देखकर डरे हुए हैं। उनका बाल मन आघात में है, लेकिन सिस्टम को इसकी कोई परवाह नहीं। यह कोई पहला मामला नहीं है। बिहार की ओर से आने वाली ट्रेन, मानव तस्करों का गढ़ बन चुकी हैं, लेकिन तस्करों पर नकेल कसने में सिस्टम नाकाम रहा है। तस्कर गरीब परिवारों को नौकरी और बेहतर भविष्य का लालच देकर बच्चों को ले जाते हैं। फिर उन्हें फैक्ट्रियों, खेतों या दुकानों में अमानवीय परिस्थितियों में काम करने को मजबूर किया जाता है। इस मामले में भी ठेकेदार अफरोज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, न ही उसकी तलाश में कोई ठोस कदम उठाया गया।
सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि इतने गंभीर अपराध के बावजूद कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। जीआरपी का कहना है कि उन्हें लिखित शिकायत नहीं मिली, जबकि एडीजी जीआरपी प्रकाश डी ने मामले को संज्ञान में होने की बात कही। लेकिन यह संज्ञान केवल कागजी खानापूर्ति तक सीमित है। बच्चों की प्रारंभिक काउंसलिंग में यह साफ हो चुका है कि उन्हें बाल मजदूरी के लिए ले जाया जा रहा था। फिर भी, सिस्टम की उदासीनता के चलते न तो तस्करों पर शिकंजा कसा गया और न ही बच्चों को जल्द से जल्द उनके परिवारों से मिलाने की प्रक्रिया तेज की गई। यह लापरवाही केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि समाज के प्रति सिस्टम की असंवेदनशीलता का प्रतीक है।
मानव तस्करी जैसे जघन्य अपराध को रोकने के लिए संविधान तक में अनुच्छेद बनाए गए, सख्त कानून है। एएचटीयू की स्थापना की है, लेकिन संसाधनों की कमी का बहाना बनाकर यह इकाई अपनी जिम्मेदारी से पलायन कर रही है। जीआरपी, आरपीएफ और एएचटीयू के बीच समन्वय बस नाम मात्र का है। जब तक सिस्टम अपनी जवाबदेही नहीं निभाएगा, तब तक मासूम बच्चे तस्करों के चंगुल में फंसते रहेंगे। यह लापरवाही और असंवेदनशीलता न केवल बच्चों के भविष्य को अंधेरे में धकेल रही है, बल्कि समाज के विश्वास को भी तोड़ रही है। सवाल यह है कि आखिर यह नेक्सस कब टूटेगा? क्या इन बच्चों का दर्द सिस्टम को कभी झकझोरेगा?
एसपी जीआरपी प्रशांत वर्मा ने बताया कि बिहार पुलिस को सभी इनपुट उपलबध करा दिए गए हैं। बच्चों को सीडब्ल्यूसी में सुरक्षित पहुंचा दिया गया है। अगर हमें कोई तहरीर मिलती है तो हम मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करेंगे।
सीडब्ल्यूसी चेयरमैन डॉ. अखिलेश मिश्र ने बताया कि बच्चों की काउंसलिंग रिपोर्ट अभी नहीं मिली है। रिपोर्ट मिलने के बाद स्वजन के आवेदन के आधार पर उन्हें माता-पिता को सौंपने पर समिति निर्णय लेगी। बच्चों को पढ़ाई के लिए नहीं बल्कि बाल मजदूरी के लिए ले जाया जा रहा था, वह भी अमानवीय ढंग से ऐसे में कार्रवाई तो होनी चाहिए।
बच्चों को रेस्क्यू कर जीआरपी को सौंप दिया गया है। आगे की कार्रवाई अब वह करेंगे।- विजय प्रकाश पंडित, सीनियर डीएससी आरपीएफ
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