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    पीड़िता से विवाह करने वाले के खिलाफ दर्ज पॉक्सो मामला रद, कोर्ट ने कहा- हर आंख से आंसू पोंछना पवित्र कर्तव्य

    Updated: Fri, 28 Nov 2025 11:00 AM (IST)

    उच्च न्यायालय ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामला रद्द कर दिया, क्योंकि पीड़िता से आरोपी ने विवाह कर लिया था। न्यायालय ने कहा कि हर आंख से आंसू पोंछना एक पवित्र कर्तव्य है। अदालत ने मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया, और कहा कि कानून का उद्देश्य पीड़ितों को न्याय दिलाना है, तथा समाज में सद्भाव बनाए रखना है।

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पीड़िता से विवाह करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध पॉक्सो अधिनियम के तहत आपराधिक केस कार्रवाई को रद कर दिया है। कहा है दोनों ने समझौता कर लिया,ऐसे में केस चलाना कोर्ट के समय की बर्बादी ही होगी।

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    न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की एकलपीठ ने अश्विनी आनंद की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि जब न्याय का उद्देश्य तत्काल हस्तक्षेप की मांग करता है, तो वह ‘मूक दर्शक’ नहीं बना रह सकता। खुशहाल वैवाहिक जोड़े को मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर करना ‘भाग्य की विडंबना’ और ‘उत्पीड़न’ होगा।

    कोर्ट ने कहा- न्यायाधीश का ‘पवित्र कर्तव्य’ हर आंख से आंसू पोंछना है और कानून का उद्देश्य समाज के लिए समस्याएं पैदा करना नहीं, बल्कि समाधान ढूंढ़ना है। मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि पीड़िता के पिता ने याची के खिलाफ फर्रुखाबाद के राजेपुर थाना में केस दर्ज कराया था।

    याची पर आरोप लगाया था कि उसने उसकी बेटी का अप्रैल 2024 में अपहरण कर लिया। पुलिस ने आइपीसी की धारा 363, 366 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 11/12 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया, लेकिन पीड़िता ने ही अभियोजन कथानक का खंडन किया।

    सीआरपीसी की धारा 161 के तहत अपने बयान में कहा कि वह अपनी इच्छा से घर से गई थी। बालिग होने पर पीड़िता और आरोपित ने इसी वर्ष जून में विवाह किया। दंपती ने उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत इसे पंजीकृत भी कराया है।

    पीड़िता ने पति के खिलाफ दर्ज केस रद करने की याचिका का समर्थन करते हुए हाई कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। राज्य सरकार के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि जो कृत्य हुआ वह समाज के विरुद्ध अपराध है और इन्हें समझौते के आधार पर रद नहीं किया जा सकता।

    एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों, जिनमें के. किरुबाकरण बनाम तमिलनाडु राज्य 2025 का निर्णय भी है, हवाला देते हुए कहा कि धारा 528 बीएनएसएस (482 सीआरपीसी) के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग न करना कानून के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देगा। न्यायमूर्ति ने कहा, ‘यदि विधानमंडल द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग नहीं करते हैं तो हम अपने कर्तव्य में विफल हो जाएंगे।’