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    ‘अमृत स्नान’ करने Mahakumbh आ रहे प्रवासी भारतीय, सालों पहले चले गए थे अमेरिका-कनाडा और USA

    Updated: Thu, 16 Jan 2025 02:51 PM (IST)

    अमेरिका कनाडा यूएसए यूरोप ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय Mahakumbh जैसे भव्‍य आयोजन में भाग लेने पहुंच रहे हैं। उनके लिए यह एक ऐसा मंच है जहां वे न केवल अपने धर्म और संस्कृति का अनुभव कर सकते हैं बल्कि अपने जैसे अन्य लोगों से भी मिल सकते हैं जो उनकी तरह ही विदेश में रहते हैं।

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    अमृत स्नान करने Mahakumbh आ रहे प्रवासी भारतीय।

    राजेंद्र यादव, प्रयागराज। महाकुंभ मेले में शामिल होने वाले अन्य प्रवासियों के लिए भी यह एक अवसर है जब वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति गर्व महसूस कर सकते हैं। अमेरिका, कनाडा, यूएसए, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय इस आयोजन में भाग लेने पहुंच रहे हैं।

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    उनके लिए यह एक ऐसा मंच है जहां वे न केवल अपने धर्म और संस्कृति का अनुभव कर सकते हैं, बल्कि अपने जैसे अन्य लोगों से भी मिल सकते हैं जो उनकी तरह ही विदेश में रहते हैं। प्रयागराज की रहने वाली प्राची चतुर्वेदी रंधावा महिला व्यापारी नेता पल्लवी अरोड़ा की बहन है। वह पिछले 11 वर्षों से वैंकूवर, कनाडा में परिवार समेत रहती हैं।

    भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति गहरी रुचि

    वह कनाडा में सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। प्रवासी हिंदी लेखक और कवियत्री प्राची चतुर्वेदी न केवल तकनीकी क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता के लिए जानी जाती हैं, बल्कि भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति उनकी गहरी रुचि ने उन्हें प्रवासी भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।

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    महाकुंभ सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं

    महाकुंभ में स्नान करने के लिए 27 जनवरी को वह यहां आएंगी। प्राची कहती हैं कि महाकुंभ सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है, यह हमारी जड़ों से जुड़ने का एक सजीव माध्यम है। वर्षों तक विदेश में रहने के बाद यहां आकर मुझे अपने भारतीय होने का गौरव महसूस होता है। यह एक आत्मिक अनुभव है जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है।

    31 साल पहले चले गए थे व‍िदेश

    उनकी तरह ही लूजियाना, अमेरिका के प्रमुख व्यवसायी राजीव मेहरोत्रा अपनी पत्नी रश्मी मेहरोत्रा के साथ इस बार महाकुंभ मेले में भाग लेने आ रहे हैं। चार फरवरी को वह यहां आएंगे। मूलरूप से प्रयागराज के स्टैनली रोड निवासी राजीव मेहरोत्रा लगभग 31 वर्ष पहले परिवार समेत अमेरिका चले गए थे। उनके दो बेटे आयन व अभि वहीं नौकरी करते हैं।

    आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक है महाकुंभ

    राजीव बताते हैं कि प्रवासी जीवन में भारतीय संस्कृति से जुड़े रहना आसान नहीं होता, लेकिन महाकुंभ हमें वह मौका देता है जब हम अपनी जड़ों से पुनः जुड़ सकते हैं। यह न केवल हमारे लिए बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणादायक अवसर है।

    सिविल लाइंस की रहने वाली आयूषी ओबराय व्यापारी नेता सुशील खरबंदा की भांजी हैं। वह अपने पति डा. अंशुल ओबराय के साथ यूएसए में रहती हैं। अंशुल वहां डाक्टर हैं तो आयूषि लेक्चरर हैं। महाकुंभ में वह अपने पति व बेटी के साथ यहां आ रही हैं।

    सांस्कृतिक पहचान के प्रति जागरूक

    आयूषी कहती हैं कि महाकुंभ हमारे लिए एक भावनात्मक पुनः साक्षात्कार का मौका है। यहां आकर हमें एहसास होता है कि चाहे हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें, हमारी जड़ें यहीं हैं। यह हमें हमारी सांस्कृतिक पहचान के प्रति जागरूक करता है।

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