सिगरेट पीने वालों की संगत से कैंसर का खतरा, बुजुर्गों में अधिक जोखिम, AU और WSU के शोध में चौंकाने वाला खुलासा
इलाहाबाद विश्वविद्यालय और वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध में सामने आया है कि निष्क्रिय धूम्रपान (पैसिव स्मोकिंग) सेहत के लिए हानिकारक है। सिगरेट न पीने वालों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है खासकर बुजुर्गों पर। इससे फेफड़ों के कैंसर हृदय रोग और सांस की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। शायद ये महत्वपूर्ण बात आपको नहीं पता हो। यदि आप सिगरेट नहीं पीते लेकिन ऐसे लोगों के साथ रहते हैं जो धूम्रपान करते हैं, तो सतर्क हो जाइए। खासकर अगर आपकी उम्र ज्यादा है तो यह आदत आपकी सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकती है। फेफड़ों का कैंसर, हार्ट अटैक, स्ट्रोक और सांस से जुड़ी बीमारियां आपको चपेट में ले सकती हैं।
यदि आप जवान या अधेड़ हैं तो शरीर दुष्प्रभाव कुछ हद तक जरूर लेगा झेल लेगा पर अंतत: यह आपको तेजी से बूढ़ा बनाकर घातक रूप से बीमार बना देगा।यह खुलासा इलाहाबाद विश्वविद्यालय और वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों द्वारा किए गए एक शोध से सामने आया है। शोध में बताया गया कि पैसिव स्मोकिंग, यानी सिगरेट पीने वाले लोगों के धुएं को सांस के साथ अंदर लेना, शरीर में खतरनाक रासायनिक बदलाव करता है।
WHO के अनुसार प्रतिवर्ष विश्व में 70 लाख धूम्रपान से मौत
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार तंबाकू के कारण हर साल विश्व में लगभग 80 लाख लोगों की मृत्यु होती है, जिनमें से 70 लाख सीधे धूम्रपान और 10 लाख पैसिव स्मोकिंग के कारण होते हैं।इस पैसिव स्मोकिंग के उम्र की हर श्रेणी पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जैव रसायन विभाग के अध्यक्ष प्रो. सैयद इब्राहिम रिजवी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने विस्टार नस्ल के चूहों पर प्रयोग किया।
विस्टार नस्ल के चूहों पर प्रयोग
विस्टार नस्ल के चूहों को तीन उम्र समूहों में बांटा गया– युवा, अधेड़ और वृद्ध। इन चूहों को रोजाना 15 मिनट तक एक बंद चेंबर में रखा गया, जहां दो सिगरेट जलाई गई थीं। यह वैसा ही था जैसे कोई व्यक्ति बंद कमरे में बैठकर किसी और की सिगरेट का धुआं झेल रहा हो। 30 दिनों बाद पाया गया कि सिगरेट के धुएं में रहने वाले चूहों के शरीर में हानिकारक असर साफ तौर पर दिखे और सबसे ज्यादा नुकसान बुजुर्ग चूहों को हुआ।
प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली हो जाती है कमजोर
अंतरराष्ट्रीय जर्नल पब्लिक हेल्थ टाक्सिकालजी में प्रकाशित शोध के अनुसार धूम्रपान वाले समूहों में एंटीआक्सीडेंट्स का स्तर घट गया और हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ गई। विशेष रूप से वृद्ध चूहों में यह प्रभाव सबसे ज्यादा था। प्रो. रिजवी कहते हैं कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली यानी एंटीआक्सीडेंट क्षमता कमजोर होती जाती है। बुजुर्गों का शरीर पहले से ही धीमी गति से काम करता है, ऐसे में अगर पैसिव स्मोकिंग का असर हो जाए, तो वह गंभीर और स्थायी रूप ले सकता है।
हर सांस में छुपा है डीएनए पर हमला
प्रो. रिजवी कहते हैं कि जवान और अधेड़ उम्र पर भी यह प्रभाव कम घातक नहीं है। शोध में यह भी पाया गया कि धुएं में मौजूद फ्री रेडिकल्स शरीर के डीएनए को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें सबसे खतरनाक है 8-आक्सो-2’-डीआक्सीगुआनोसिन, जो डीएनए की गलत नकल करवा कर म्यूटेशन और कैंसर को जन्म दे सकता है। निकोटीन और अन्य रसायन प्लेटलेट्स को सक्रिय करके रक्तचाप, हृदय गति और नसों के कार्यों को भी प्रभावित करते हैं। जो हृदयाघात और पक्षाघात का कारण बनता है।

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