राममंदिर आंदोलन के प्रमुख सूत्रधार थे शिवनाथ काटजू, इस बड़े काम में निभाई थी अहम भूमिका; कल्याण सिंह और मुरली मनोहर जोशी के साथ...
पूर्व न्यायमूर्ति और विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष रहे स्व. पं. शिवनाथ काटजू पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी इनमें प्रमुख हैं। संयोग से इन तीनों का ही पांच जनवरी को जन्मदिन है। अयोध्या के मामले में कल्याण सिंह और डा. मुरली मनोहर जोशी का योगदान तो सभी जानते हैं लेकिन शिवनाथ काटजू की भागीदारी कम प्रचलित हुई।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। इन दिनों जब अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण का सपना साकार होने जा रहा है ऐसे में उन विभूतियों की तरफ ध्यान आकृष्ट होना भी जरूरी है जिन्होंने श्रीराम जन्म भूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पूर्व न्यायमूर्ति और विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष रहे स्व. पं. शिवनाथ काटजू, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी इनमें प्रमुख हैं। संयोग से इन तीनों का ही पांच जनवरी को जन्मदिन है।
अयोध्या के मामले में कल्याण सिंह और डा. मुरली मनोहर जोशी का योगदान तो सभी जानते हैं लेकिन शिवनाथ काटजू की भागीदारी कम प्रचलित हुई। साहित्यिक चिंतक व्रतशील शर्मा बताते हैं कि चार दशक तक ताले में बंद श्रीराम जन्भभूमि को सार्वजनिक दर्शन के लिए सुलभ करवाने का शिवनाथ काटजू के नेतृत्व में जन आंदोलन चलाया गया था।
उस समय पं. काटजू ने एक साक्षात्कार में कहा था कि " विहिप के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए बहुत पहले से ही मांग की जाती रही है। विश्व हिंदू परिषद ने इसलिए जनजागरण का बीड़ा उठाया ताकि जनता का सहयोग मिले और शासन तक भी बात पहुंचे।
पं. काटजू के संस्मरण बताते हुए व्रतशील कहते हैं कि जनवरी 1986 में जन्म-स्थान से ताला खुलवाने के लिए पं. शिवनाथ काटजू अयोध्या गए थे। मुख्यमंत्री से भी मुलाकात हुई और उनसे भी ताला खुलवाने के लिए कहा। ताला खुलने के बाद वे फिर अयोध्या गए और जनसभा कर बधाई दी।
विशिष्ट योगदान की बनाई श्रृंखला
पं. शिवनाथ काटजू सनातन संस्कृति के आराधक थे। उन्होंने कभी अपने द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों का श्रेय लेना ठीक नहीं समझा।
श्रीराम जन्मभूमि स्थान का ताला खुलवाने में ही नहीं, बल्कि 1950 में अक्षयवट की खोज, 1942 में अखिल भारतीय शाक्त सम्मेलन संस्था का गठन और 'चण्डी' पत्रिका के प्रकाशन का सूत्रपात भी कराया। पं. शिवनाथ ने सब कुछ अपने दीक्षा-गुरु पं. देवीदत्त शुक्ल और भगवती के चरणों में समर्पित कर दिया।
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