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    Prayagraj News: गंगा-यमुना में सात प्रतिशत बढ़ीं देसी मछलियां, इस विधि से मिली सफलता

    Updated: Sun, 12 May 2024 10:34 AM (IST)

    केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्सयिकी अनुसंधान केंद्र (सिफरी) प्रयागराज क्षेत्रीय केंद्र के अध्ययन में देसी प्रजातियों की संख्या में छह से सात गुणा वृद्धि के प्रमाण मिले हैं। विज्ञानी इसके लिए आठ वर्षों से निरंतर जारी रैचिंग कार्यक्रम और जल प्रदूषण में आई गिरावट को बड़ी वजह मानते हैं। 60 के दशक में यह गंगा-यमुना पर राज करने वाली इन देसी प्रजातियों का शेयर 50 से 60 प्रतिशत था।

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    मत्स्य संरक्षण के लिए सिफरी द्वारा शनिवार को सिरसा के गंगा नदी में मछलियों को छोड़ते स्कूली बच्चे। सौ. सिफरी

    मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। गंगा नदी तंत्र (गंगा, यमुना, सरयू सहित सभी गंगा की सहायक नदियां) के पारस्थितिकी तंत्र में सुधार को दर्शाती यह एक आशाजनक खबर है।गंगा-यमुना के प्रदूषित जल और जीवट विदेशी प्रजातियों कामन कार्प और तिलापिया के प्रभाव के आगे घुटने टेकने वाली आइएमसी यानी देसी मतस्य प्रजातियां रोहू, कतला और नैन फिर से खड़ी हो रही हैं।

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    केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्सयिकी अनुसंधान केंद्र (सिफरी) प्रयागराज क्षेत्रीय केंद्र के अध्ययन में देसी प्रजातियों की संख्या में छह से सात गुणा वृद्धि के प्रमाण मिले हैं। विज्ञानी इसके लिए आठ वर्षों से निरंतर जारी रैचिंग कार्यक्रम और जल प्रदूषण में आई गिरावट को बड़ी वजह मानते हैं।

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    अपने लजीज स्वाद और पोषक गुणों से भरपूर देशी मत्स्य प्रजातियां रोहू, कतला और नैन गंगा नदी की मूल मछलियां हैं, जो हरिद्वार से गंगासागर तक 2200 किलोमीटर लंबे गंगा स्ट्रेच में पाई जाती है। 60 के दशक में यह गंगा-यमुना पर राज करने वाली इन देसी प्रजातियों का शेयर 50 से 60 प्रतिशत था, जो बाद में सिमटकर 10 प्रतिशत रह गया था।

    सिफरी प्रयागराज क्षेत्रीय केंद्र के प्रमुख डा. डीनएन झा बताते हैं कि मछलियों की संख्या बढ़ाने के लिए 2015-16 में राष्ट्रीय रैंचिंग कार्यक्रम की शुरूआत हुई और दूसरी ओर नमामि गंगा के तहत पानी की गुणवत्ता भी सुधरी। इससे देसी प्रजातियों के लिए पनपने का बेहतर माहौल मिला।

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    मछलियों की संख्या का पता लगाने के लिए सिफरी के निदेशक डा. बीके दास के निर्देशन में अध्ययन की शुरूआत की गई। इसके तहत पांच वर्ष पूर्व प्रयागराज के सदियापुर और दारागंज मछली बाजार से पकड़ का डाटा इकठ्ठा करने का काम शुरू हुआ। नियमित रूप से हर सप्ताह दो दिन बाजार में विदेशी और देशी प्रजातियों की पकड़ का रिकार्ड दर्ज किया गया।

    इस डाटा का विश्लेषण किया गया तो नतीजे चौंकाने वाले रहे। पिछले दो वर्षों में देसी मछलियों की पकड़ छह से सात प्रतिशत से बढ़ गई जबकि विदेशी मछलियों की पकड़ में कमी आई है। झा कहते हैं कि अध्ययन प्रयागराज पर केंद्रित रहा पर उम्मीद है कि गंगा के पूरे स्ट्रेच में देसी प्रजातियों के पनपने के लिए माहौल तैयार रहा है।

    अंगुलिका के प्रयोग से भी मिली सफलता

    सिफरी के विज्ञानियों ने रैंचिंग कार्यक्रम में रोहू कतला और नैन प्रजाति की छोटे आकार की मछलियों को नदी में छोड़ने के बजाय एडवांस फिंगर लिंग यानी बड़े साइज की अंगुलिका को छोड़ने का निर्णय लिया। 2015-16 से अब तक एक करोड़ से अधिक अंगुलिका हरिद्वार से बलिया तक गंगा और सहायक नदियों में छोड़ी जा चुकी हैं वहीं यमुना के भी पूरे स्ट्रेच में अंगुलिका की रैंचिंग की गई। आकार में बड़ी होने के कारण यह अंगुलिका शिकारी मछलियों से बचने के साथ अन्य मुश्किलों हालात में भी खुद को बचाने में सक्षम हैं।

    धीमी वृद्धि के कारण स्वादिष्ट होती है रोहू, कतला और नैन

    विज्ञानियों के अनुसार देसी प्रजातियों को साफ पानी चाहिए और यह साल में मात्र एक एक बार ब्रीड करती है और यह धीरे-धीरे बढ़ती हैं। जबकि विदेशी प्रजातियां गंदले पानी में रहने के लिए अनुकूल हैं और साल में दो से तीन बार ब्रीड करती है और तेजी से वृद्धि के कारण इनकी संख्या बढ़ती है।धीमी वृद्धि के कारण ही देसी प्रजातियां स्वादिष्ट होती है और बाजार में यह महंगी बिकती हैं।