मंगल संभालेंगे आकाशीय सत्ता की कमान… शनि होंगे मंत्री, नौ अप्रैल को पिंगल नामक नवसंवत्सर का होगा शुभारंभ
UP News - केंद्र की सत्ता में नई सरकार जून माह में काबिज होगी। सत्ता की चाबी किस दल के हाथ लगेगी उसके लिए मतगणना तक प्रतीक्षा करनी होगी लेकिन उसके पहले आकाशीय सत्ता में परिवर्तन हो जाएगा। पिंगल नामक नवसंवत्सर नौ अप्रैल से आरंभ हो रहा है। इसके साथ आकाशीय सत्ता में फेरबदल होगा। इसके साथ आकाशीय सत्ता में फेरबदल होगा।

शरद द्विवेदी, प्रयागराज। केंद्र की सत्ता में नई सरकार जून माह में काबिज होगी। सत्ता की चाबी किस दल के हाथ लगेगी उसके लिए मतगणना तक प्रतीक्षा करनी होगी, लेकिन उसके पहले आकाशीय सत्ता में परिवर्तन हो जाएगा। पिंगल नामक नवसंवत्सर नौ अप्रैल से आरंभ हो रहा है। इसके साथ आकाशीय सत्ता में फेरबदल होगा। इसके साथ आकाशीय सत्ता में फेरबदल होगा।
नए नवसंवत्सर के राजा मंगल व मंत्री शनि ग्रह हैं। इसके आधार पर सत्ता की कमान मंगल ग्रह संभालेंगे। मंगल के पास फसल व धन (वित्त), शनि के पास किला (सेना) व मेघ (वर्षा) का प्रभार रहेगा। वहीं, गुरु को रस, चंद्रमा को धान्य (अनाज), शुक्र को फल का प्रभार मिलेगा अर्थात यह सारे ग्रह उसके स्वामी होंगे। बुध व सूर्य के पास कोई प्रभार नहीं रहेगा।
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी के अनुसार, पिंगल नामक नवसंवत्सर के मंत्री शनि हैं। शनि न्याय के प्रतीक हैं। ऐसे में इसमें अन्यायियों के लिए कोई स्थान नहीं होगा। अन्याय के प्रति विश्व में जनाक्रोश बढ़ेगा, जबकि धन, धान्य की बढ़ोत्तरी होगी। सैन्य शक्ति बढ़ेगी। नवसंवत्सर के राजा मंगल के पास वित्त का प्रभार है, उसके प्रभाव से राष्ट्र आर्थिक उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ेगा।
सृष्टि आरंभ का है प्रथम दिन
पाराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय के अनुसार परमपिता ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिप्रदा पर सृष्टि का आरंभ किया। सृष्टि आरंभ के ब्रह्माजी ने समय, वर्ष, मास, ऋतु, दिन-रात, घंटा-मिनट, कला-बिकला आदि का निर्धारण किया। इसी तिथि पर वर्षभर के लिए ग्रहों की सत्ता बदलती है। वहीं, सम्राट विक्रमादित्य ने चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिप्रदा पर राष्ट्र को सुसंगठित करके कई देशों में विजय का पताका फहराया था। उसी की स्मृति में नव संवत्सर मनाया जाता है।
विक्रमी संवत्सर का वैज्ञानिक महत्व
विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष डॉ. बिपिन पांडेय के अनुसार, विक्रमी संवत का संबंध किसी धर्म से नहीं बल्कि विश्व की प्रकृति खगोल सिद्धांत, ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। विक्रमी संवत्सर के बाद वर्ष 12 माह और सप्ताह को सात दिन माना गया। महीनों का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की चाल पर होता है।
एक माह को दो भागों कृष्णपक्ष व शुक्लपक्ष में बांटा गया है। जबकि दिन का नामकरण आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, शनि और चंद्र से हुआ है। दुनिया के महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिप्रदा तिथि पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना व वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी।
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