अखाड़ों के संसार में कमांडो से भी कठिन है श्रीनिरंजनी की झुंडी टोली की तपस्या, धर्म की रक्षा के लिए लेते हैं खास ट्रेनिंग
श्रीनिरंजनी अखाड़े की झुंडी टोली की तपस्या कमांडो से भी कठिन होती है। धर्म की रक्षा के लिए इन्हें खास ट्रेनिंग दी जाती है। इस टोली में शामिल नागा संतों की उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच होती है। इनकी कठोरता और समर्पण को प्रदर्शित करने के लिए भगवान शंकर भैरव बाबा मां काली मां दुर्गा आदि के ऊपर नाम होता है।

शरद द्विवेदी, जागरण महाकुंभनगर। धर्म के प्रति जीने-मरने का भाव होता है अखाड़ों के संतों में। नागा संत इसमें अग्रणी होते हैं। ऐसे संतों की श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा में भरमार है, जिसमें श्रेष्ठ है झुंडी (झुंड) टोली। सनातन धर्म व धर्मावलंबियों की रक्षा के लिए झुंडी टोली का गठन हुआ। तब एक झुंड में पांच सौ से एक हजार के बीच संत होते थे।
मौजूदा समय में दो टोलियां हैं। एक टोली में 50 से 60 नागा संत होते हैं, जिन्हें कमांडो के समान प्रशिक्षण दिया जाता है। टोली में शामिल नागा संतों की आयु 18 से 30 वर्ष के बीच रहती है। इनकी कठोरता व समर्पण को प्रदर्शित करने के लिए भगवान शंकर, भैरव बाबा, मां काली, मां दुर्गा आदि के ऊपर नाम होता है, जिससे उसमें रौद्र रूप की झलक मिले।
झुंडी टोली को जंगलों व पहाड़ी क्षेत्रों में रखकर मठ-मंदिरों की सुरक्षा कराई जाती है। 30 वर्ष से ऊपर उम्र होने पर संतों को टोली से हटाकर आश्रमों की आंतरिक व्यवस्था में लगाया जाता है। आगे चलकर यह सचिव, श्रीमहंत, कोठारी, थानापति आदि की जिम्मेदारी निभाते हैं।सात शैव (संन्यासी) अखाड़ों में श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा प्रमुख है।
निरंजनी अखाड़ा की स्थापना 726 ईसवी (विक्रम संवत् 960) में गुजरात के मांडवी में की गई थी। महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने अखाड़े की नींव रखी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व श्री निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी के अनुसार 10वीं से 17वीं शताब्दी तक अखाड़े के संत गांव-गांव घूमकर सनातन धर्मावलंबियों से धर्म के नाम पर एक बच्चे को दान स्वरूप लेते थे।
श्रीनिरंजनी अखाड़ा के प्रमुख संतों के साथ अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद-मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी। जागरण आर्काइव
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उन्हें नागा संत बनाते थे। उस दौर में मुगलों का आतंक था। मठ-मंदिर असुरक्षित थे। खुलेआम मतांतरण कराया जाता था। तब नागा संत उनसे मोर्चा लेते थे। नागा संतों ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में तमाम राजाओं के साथ मिलकर भी युद्ध किया है।
इसलिए बनी झुंडी टोली
वैसे तो श्रीनिरंजनी अखाड़ा में 10 हजार से अधिक नागा संत हैं, उसमें भोले व भैरव की झुंडी अहम है। बात 14वीं शताब्दी की है। उस दौर में मुगलों से मोर्चा लेने के लिए नागा संतों की झुंडी टोली बनाने का निर्णय हुआ। इसमें कम उम्र के लड़ाके संतों को रखा गया। समूह का नेतृत्व करने वाले संत के नाम से झुंडी टोली का नाम पड़ा।
महामंडलेश्वर का अभिषेक करते श्रीनिरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी व अन्य। जागरण आर्काइव
पढ़े-लिखे संतों की संख्या अधिक
श्रीनिरंजनी अखाड़ा की पहचान इसके पढ़े-लिखे संतों से है। अखाड़े में 30 हजार के लगभग संत हैं। इसमें आधे से अधिक डाक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, अधिवक्ता व शिक्षक मिल जाएंगे, जिन्होंने अपना पेशा छोड़कर अथवा सेवानिवृत्त होने के बाद अखाड़े में संन्यास लिया है। केंद्रीय मंत्री रहते हुए साध्वी निरंजन ज्योति वर्ष 2019 कुंभ में निरंजनी अखाड़ा की महामंडलेश्वर बनी थीं।
यह है खास
- श्रीनिरंजनी अखाड़ा के आराध्य भगवान कार्तिकेय हैं।
- धर्मध्वजा का रंग गेरुआ है।
- प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर, उदयपुर सहित अनेक शहरों में अखाड़े के आश्रम हैं।
कुंभ में मिलती है दीक्षा
श्रीनिरंजनी अखाड़े में स्थायी और अस्थायी दीक्षा प्रदान करने का विधान है। अस्थायी संन्यास दीक्षा उन लोगों की दी जाती है, जो गृहस्थ परिवार से आते हैं। अस्थायी संन्यास दीक्षा देने से पहले संन्यास लेने वालों की आधी चोटी काटी जाती है। ऐसे लोगों को अखाड़े में रखकर भजन-पूजन कराया जाता है।
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इससे देखा जाता है कि उनके अंदर संन्यास जीवन जीने के गुण हैं या नहीं? अगर किसी का मन नहीं लगता तो उन्हें पूर्ण संन्यास दीक्षा देने से पहले वापस भेज दिया जाता है, जिनके भीतर साधु-संन्यासी की तरह जीवन जीने के लक्षण दिखता है, उन्हें कुंभ-महाकुंभ के दौरान पिंडदान करवाकर पूर्ण संन्यास की दीक्षा दी जाती है।
चार जनवरी को छावनी प्रवेश
श्रीनिरंजनी अखाड़ा का छावनी प्रवेश (पेशवाई) चार जनवरी, 2025 को है। श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी से धूमधाम से अखाड़े की यात्रा आरंभ होगी।
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