जल संकट पर हाई कोर्ट की टिप्पणी, कहा- स्वच्छ पानी न प्रदान करना जीवन के अधिकार का उल्लंघन
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने लखनऊ में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए भूमि आवंटन में देरी पर सख्त टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा कि स्वच्छ पेयजल का प्रावधान जीवन के लिए अनिवार्य है और इसकी अनुपलब्धता अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। न्यायालय ने लखनऊ के जिलाधिकारी नगर आयुक्त लखनऊ नगर निगम और जल निगम के प्रबंध निदेशक को अगली सुनवाई में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।

विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राजधानी लखनऊ में एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए जमीन के संबंध में अब तक निर्णय न हो पाने पर टिप्पणी की है कि स्वच्छ पेय जल प्रदान करना जीवन के लिए आवश्यक है।
इसकी व्यवस्था न होना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जो जीवन के मौलिक अधिकार का प्रविधान करता है। न्यायालय ने मामले में अगली सुनवाई पर जिलाधिकारी लखनऊ, नगर आयुक्त, लखनऊ नगर निगम व प्रबंध निदेशक जल निगम को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये उपस्थित रहने का आदेश दिया है।
मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।यह आदेश न्यायमूर्ति राजन राय व न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने उत्कर्ष सेवा संस्थान की ओर से दाखिल वर्ष 2016 की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया।
याची के अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने बताया कि शहर के कई इलाकों में पीने के पानी की समस्या पर वर्तमान याचिका दाखिल की गई है। सुनवाई के दौरान न्यायालय के संज्ञान में लाया गया था कि शहर के सराय हसनगंज, बरौरी, बरौलिया, अकबर नगर, हरदासी खेड़ा, डूडा कालोनी, दमदन का पुरवा, चिनहट व मटियारी इलाकों में पीने का पानी नहीं उपलब्ध कराया जा रहा है।
मामले में यूपी जल निगम ने हलफनामा देते हुए बताया है कि 23 जुलाई 2019 को ही प्रोजेक्ट मैनेजर, पेय जल-2 ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए पांच हेक्टेयर जमीन की मांग की थी।
वहीं राज्य सरकार के अधिवक्ता ने बताया कि जमीन को चिन्हित कर लिया गया है लेकिन अभी नगर निगम से एनओसी नहीं प्राप्त हो सके हैं। हालांकि न्यायालय के पूछने पर सरकारी वकील जिलाधिकारी द्वारा नगर आयुक्त को एनओसी के संबंध में भेजे गए पत्र की तिथि नहीं बता सके। इस पर न्यायालय ने उपरोक्त आदेश पारित किया।-----
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