प्रयागराज में ब्रिटिश शासनकाल का एक मुहल्ला, जिसमें सिमटी है पुरानी यादें, लूकरगंज से झूलेलाल नगर तक का रोचक सफर
प्रयागराज का लूकरगंज जिसे अब झूलेलाल नगर के नाम से जाना जाता है का उदय अंग्रेजी शासनकाल में हुआ था। 1906 में सरकारी प्रेस के कर्मचारियों के लिए विकसित यह क्षेत्र ब्रिटिश और एंग्लो इंडियन का निवास स्थान था। बाद में इसका नाम बदलकर झूलेलाल नगर कर दिया गया। कनोडिया फ्लोर मिल कभी एशिया की नंबर एक मिल थी जिसके लिए रेलवे लाइन भी बिछाई गई थी।
अमलेन्दु त्रिपाठी, प्रयागराज। संगम नगरी यानी पुराना इलाहाबाद यानी नया प्रयागराज में सनातनी संस्कृति के ढेरों रंग हैं। वैदिक काल हो, मध्य काल हो या आधुनिक भारत, बिना यहां की चर्चा किए बात पूरी नहीं होगी। शहर के साथ यहां के मुहल्लों की भी अपनी कहानियां हैं। कुछ स्थान अति प्राचीन हैं तो कुछ को अंग्रेजी शासनकाल में बसाया गया।
बहुत से क्षेत्र अब विकसित हो रहे हैं लेकिन उनके भी अपने किस्से हैं। मुहल्ला यात्रा में इस बार हम लूकरगंज अर्थात झूलेलाल नगर के अतीत को खंगालते हुए वर्तमान से जोड़ रहे हैं। इसका उदय अंग्रेजी शासनकाल में हुआ।
यहां सबसे पहले ब्रिटिश और एंग्लो इंडियन को बसाया गया
वर्ष 1906 में सरकारी प्रेस के कर्मचारियों के लिए इस क्षेत्र को विकसित किया गया। इस स्थान पर सबसे पहले ब्रिटिश और एंग्लो इंडियन को बसाया गया। कहा जाता है कि लुकर नाम के किसी व्यक्ति के नाम पर इस जगह को यह संज्ञा दी गई। यह क्षेत्र अपनी क्लब संस्कृति के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
अंग्रेजों ने सरकारी कर्मियों के लिए बसाया था मुहल्ला
कुछ प्रपत्रों में उल्लेख है कि सन 1906 के आसपास संयुक्त प्रांत के उपराज्यपाल जेम्स डिग्स लाटूश ने स्टेशन के पास सरकारी कर्मचारियों के रहने के लिए मुहल्ला बसाया, जिसका नाम उन्होंने गवर्नमेंट प्रेस के तत्कालीन सुपरिटेंडेंट एफ. लूकर के नाम पर रखा।
क्लब संस्कृति के रंग में रंगा था लूकरगंज
प्रयागराज जंक्शन के ठीक बगल का मुहल्ला लूकरगंज, अब यह झूलेलाल नगर के नाम से जाना जाता है। यहां की सड़कों और गलियों में चहल कदमी करने पर अतीत की झलक अब मिलती है। ब्रितानी हुकूमत में यह क्षेत्र बड़े बड़े बंगलों और सजे धजे बाग बगीचों वाला होता था। इसके ऐतिहासिक महत्व को पास में ही स्थित खुसरोबाग और बढ़ा देता है।
बंगलों की जगह बन गए अपार्टमेंट व फ्लैट
स्वतंत्रता के बाद भी इस क्षेत्र में लंबे समय तक पुराने बंगले और बगीचे हुआ करते थे। इनमें गिने चुने परिवार रहते थे, लेकिन अब बंगले समाप्त हो गए हैं। उनकी जगह छोटे-छोट प्लाट में घर बन गए हैं। कई अपार्टमेंट व फ्लैट भी हैं। बहुमंजिला इमारतों की संख्या खूब है।
... और लूकरगंज से बन गया झूलेलाल नगर
यह क्षेत्र कब और कैसे झूलेलाल नगर बन गया। इस संबंध में पूर्व पार्षद रोचक दरबारी कहते हैं कि वर्ष 2000 की बात है। उस समय बख्तराम यहां के पार्षद हुआ करते थे। शासन ने आदेश जारी किया कि अंग्रेजों के नाम पर बसे मुहल्लों के नाम बदले जाएंगे। तब बख्तराम ने अपने गुरु झूलेलाल के सम्मान में इस मुहल्ले के एक हिस्से का नामकरण झूलेलाल नगर कर दिया। धीरे-धीरे लोगों ने इस नए नाम को अपना लिया। मुहल्ले की पहचान में नया अध्याय जुड़ गया।
हमेशा यहां का रहन-सहन बहुरंगी रहा
ऊंचे ऊंचे फाटक वाले घर, लंबे छायादार बरामदे और खुले आंगन शायद ही अब कहीं दिखाई दें लेकिन यहां के अग्रसेन इंटर कालेज में अब भी कुछ ऐसा ही एहसास होता है। स्थानीय रहन सहन की बात करें तो वह हमेशा बहुरंगी रहा। पहले बंगाली समाज की बहुलता हुआ करती थी। यही वजह थी कि क्षेत्र में होने वाली दुर्गापूजा की भी अलग पहचान थी। ढेरों सांस्कृतिक कार्यक्रम और साहित्यिक गोष्ठियां हुआ करती थीं।
खानपान और भाषा में विविधता भी
धीरे-धीरे सिंधी समाज ने भी यहां जगह बनाई। अब दोनों संस्कृतियों के रंग देखे जा सकते हैं। तीज त्योहार को बनाने का तरीका, खानपान और भाषा में विविधता अब भी नजर आती है। इस क्षेत्र की चर्चा होते ही क्लब कल्चर की भी बात होती है। लूकरगंज क्लब आज भी अपने पुराने अंदाज में सक्रिय है।
125 वर्ष पुरानी दुर्गापूजा
यहां न केवल 125 वर्ष पुरानी दुर्गापूजा धूमधाम से होती है, बल्कि खेलकूद की परंपरा भी बरकरार है। टेनिस कोर्ट खिलाड़ियों से गुलजार रहता है। ब्रिज का खेल यहां की आम जिंदगी का हिस्सा है। बंगालियों का क्लब भी सक्रिय है। आए दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम उनमें होते रहते हैं। क्लब में साहित्य, संगीत और खेलकूद जैसी गतिविधि अब भी होती रहती है।
कनोडिया फ्लोर मिल के लिए रेलवे ने बिछाई थी लाइन
लूकरगंज उद्योगों के लिए भी जाना जाता था। यहां कनोडिया फ्लोर मिल थी जिसे एशिया की नंबर एक मिल का तमगा मिला था। यही वजह थी कि रेलवे ने अपनी लाइन यहां तक बिछाई थी, हालांकि अब वह मिल नहीं है। छोटी मोटी फैक्ट्री व कोल्डस्टोर ही अब यहां है। पुराने शिक्षण संस्थान के रूप में बात करें तो विद्यावती दरबारी बालिका इंटर कालेज, अग्रसेन स्कूल और अग्रसेन इंटर कालेज खास है। ये संस्थान अतीत और वर्तमान के बीच सेतु हैं। इसी क्षेत्र की सुनीता दरबारी नगर निगम की कार्यकारिणी उपाध्यक्ष के रूप में सक्रिय हैं। वह कहती हैं कि लूकरगंज की शक्ल बदल गई लेकिन आत्मा अब भी वैसी ही है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।