Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ठेले पर बैठकर पढ़कर बन गए इंजीनियर, प्रेरणादायक है प्रयागराज के छात्र के संघर्ष की कहानी

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Fri, 10 Oct 2025 01:39 PM (IST)

    प्रयागराज के अल्लापुर के करन सोनकर की कहानी प्रेरणादायक है। सब्जी विक्रेता पिता और दाई मां के बेटे करन ने ठेले पर पढ़ाई करके इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। शुरुआत संस्था ने उनकी फीस भरने में मदद की। 2.5 लाख के पैकेज पर पुणे की एक कंपनी में इंजीनियर बने करन अब अपनी बस्ती के बच्चों की मदद करना चाहते हैं। उनकी सफलता दिखाती है कि हौसले से गरीबी को हराया जा सकता है।

    Hero Image

    गरीबी में पले प्रयागराज के करन का हौसला उन्हें इंजीनियर बना दिया।

    अमरीश मनीष शुक्ल, प्रयागराज। प्रयागराज के अल्लापुर मुहल्ले की तंग गलियां... जहां जिंदगी की जिद्दोजहद हर कदम पर नजर आती है। एक ठेला ने करन सोनकर के सपनों को पंख लगा दिए। करन के पिता रामू सब्जी बेचकर परिवार का गुजारा करते हैं और मां रीता निजी स्कूल में दाई हैं। इस छात्र ने दृढ़ संकल्प और मेहनत से न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि अपनी बस्ती के लिए एक मिसाल भी कायम की।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अभाव में पढ़ाई और बन गए इंजीनियर

    वर्तमान में करन सोनकर पुणे की एक प्रतिष्ठित कंपनी ‘फ्लैश इलेक्ट्रानिक्स में क्वालिटी इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहे हैं। इनके जीवन की कहानी हर उस बच्चे के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किलों के बीच सपने देखने की हिम्मत रखते हैं, चाहे परिस्थितियां विपरीत ही क्यों न हों, उन्हें अपने लक्ष्य से नहीं डिगना चाहिए।

    झोपड़ी में बीता बचपन, झेली आर्थिक तंगी

    करन का बचपन अलोपी मंदिर के पास एक झोपड़ी में बीता। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि पिता की कमाई का अधिकांश हिस्सा नशे में चला जाता था। मां की मामूली तनख्वाह से घर का खर्च चलाना मुश्किल था। फिर भी करन के मन में पढ़ाई का जुनून था।

    मन में आया, पढ़ाई ही गरीबी कर सकती है दूर

    करन कहते हैं, मुझे बचपन से लगता था कि पढ़ाई ही मुझे और मेरे परिवार को इस गरीबी से निकाल सकती है। हालांकि वर्ष 2019 में कुंभ मेला के दौरान सड़क चौड़ीकरण के लिए उनकी झोपड़ी तोड़ दी गई। उस समय करन 10वीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।

    झोपड़ी तोड़ दी गई, सब्जी के ठेले को ही बनाया स्टडी रूम

    घर नहीं था, पढ़ने की जगह नहीं थी, लेकिन करन ने हार नहीं मानी। उसने अपने पिता के सब्जी के ठेले को ही अपनी पढ़ाई का ठिकाना बनाया। ठेले पर बैठकर, सब्जियों के बीच किताबें खोलकर करन रात-दिन पढ़ती करते। मेहनत रंग लाई और 10वीं में शानदार अंक हासिल किए।

    इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल था

    करने ने वर्ष 2021 में 12वीं में 75% अंक प्राप्त किए और उसी वर्ष जेईई परीक्षा में भी सफलता हासिल की। उन्हें प्रयागराज की आइईआरटी में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में दाखिला मिला। हालांकि चुनौतियां यहीं खत्म नहीं हुईं। इंजीनियरिंग की 60,000 रुपये सालाना फीस करन के परिवार के लिए असंभव थी।

    शुरुआत संस्था ने करन की मदद को बढ़ाया हाथ

    यहीं पर ‘शुरुआत संस्था’ ने करन का हाथ थामा। इस संस्था ने क्राउडफंडिंग के जरिए करन की चार साल की फीस जमा की। संस्था के संस्थापक अभिषेक शुक्ला बताते हैं, करन में हमने एक असाधारण जुनून देखा। वह न केवल अपने लिए बल्कि अपनी बस्ती के बच्चों के लिए भी बदलाव लाना चाहते थे। हमने तय किया कि उन्हें सपोर्ट करेंगे।

    ट्यूशन भी पढ़ाने लगे करन

    करन ने भी अपने हिस्से का संघर्ष जारी रखा। पढ़ाई के खर्चे और घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए उसने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। बीच में एक समय ऐसा भी आया जब परिवार की आर्थिक तंगी के कारण करन पर पढ़ाई छोड़कर काम करने का दबाव बना। वह याद करते हैं, मेरे पिता चाहते थे कि मैं पढ़ाई छोड़ दूं और कोई छोटा-मोटा काम शुरू कर दूं। मां और शुरुआत संस्था ने मुझे हिम्मत दी। मेरी मां कहती थीं, बेटा, तुम पढ़ो, मैं हर मुश्किल झेल लूंगी। करन ने हार नहीं मानी और इस वर्ष इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की।

    2.5 लाख के सालाना पैकेज में मिली नौकरी

    करन की प्रतिभा ने उसे पुणे की ‘फ्लैश इलेक्ट्रानिक्स’ में क्वालिटी इंजीनियर की नौकरी दिलाई, जहां उसे 2.5 लाख रुपये का सालाना पैकेज मिला। यह उपलब्धि केवल करन की नहीं, बल्कि उसकी बस्ती की भी जीत थी। करन अपनी बस्ती का पहला बच्चा है, जिसने बारहवीं के बाद पढ़ाई जारी रखी और इंजीनियर बना। उसकी इस कामयाबी ने बस्ती के लोगों में नई उम्मीद जगाई है। करन की मां रीता कहती हैं, मेरा बेटा इंजीनियर बन गया, यह मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं। अब बस्ती के और बच्चे भी पढ़ना चाहते हैं।

    सफलता का श्रेय मां को

    करन अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां और शुरुआत संस्था को देते हैं। कहते हैं, मेरी मां ने मेरे लिए सब कुछ सहा और शुरुआत संस्था ने मुझे रास्ता दिखाया। उनके बिना मैं यहां नहीं पहुंच पाता। करन अब अपने जैसे जरूरतमंद बच्चों की मदद करना चाहते हैं। बोले, मैं अपनी कमाई का एक हिस्सा उन बच्चों की पढ़ाई के लिए दूंगा, जिनके पास संसाधन नहीं हैं। मैं चाहता हूं कि मेरी बस्ती का हर बच्चा पढ़े और अपने सपनों को पूरा करे।

    अभाव में जी रहे तमाम बच्चों के लिए मिशाल

    शुरुआत संस्था के अभिषेक शुक्ला कहते हैं, करन की कहानी उन तमाम बच्चों के लिए एक मिशाल है, जो मुश्किल हालात में भी बड़े सपने देखते हैं। हमारी संस्था ऐसे और बच्चों को सपोर्ट करने के लिए प्रतिबद्ध है।” करन की कहानी केवल एक व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत है। उसने साबित कर दिया कि अगर हौसला हो और सही मार्गदर्शन मिले, तो एक ठेले पर बैठकर पढ़ने वाला बच्चा भी आसमान छू सकता है।