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    IIT Baba: 'पैसे की कोई कमी नहीं...', क्यों संन्यासी बन गए एयरोस्पेस इंजीनियर अभय? परिवार ने कहा था- यह पागल हो गया

    Updated: Wed, 15 Jan 2025 07:21 PM (IST)

    महाकुंभ में इंजीनियर बाबा सबका ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आइआइटी मुंबई से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने जीवन के अंतिम सत्य की खोज में संन्यास लिया। फिजिक्स पढ़ाने फोटोग्राफी और ट्रैवलिंग के बाद उन्होंने आत्मज्ञान की राह पकड़ी। पंचकोष और गीता जैसे ग्रंथों का अध्ययन कर वे विज्ञान और आध्यात्म का संगम समझा रहे हैं। उनका संदेश है असली खुशी आत्मा की खोज में है।

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    इंजीनियर बाबा । सौ इंटरनेट मीडिया ।

    मृत्युंजय मिश्र, महाकुंभनगर। महाकुंभ के पवित्र माहौल में एक खास चेहरा हर किसी का ध्यान खींच रहा है। यह चेहरा है इंजीनियरिंग बाबा के नाम से विख्यात हो रहे जूना अखाड़ा के युवा संन्यासी का, जो आइआइटी बांबे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद जीवन के अंतिम सत्य की खोज में संन्यास का मार्ग चुन लिया।

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    इंजीनियर बाबा, जिनका असली नाम अभय सिंह है। साधारण वेशभूषा और गहन चिंतनशील व्यक्तित्व के कारण विशेष आकर्षण बने हुए हैं। उनकी बातों में विज्ञान और आध्यात्म का अनोखा संगम देखने को मिलता है। वह कहते हैं, “विज्ञान सत्य तक पहुंचने का माध्यम हो सकता है, लेकिन अंतिम सत्य आत्मज्ञान से ही प्राप्त होता है।”

    हरियाणा से निकलकर आइआइटी मुंबई में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग तक पहुंचने और फिर जीवन के अंतिम सत्य की खोज में संन्यास का रास्ता चुनने तक की उनकी कहानी लोगों को सोचने पर विवश करती है।

    एयरोस्पेस इंजीनियर हैं अभय

    इंजीनियर बाबा आइआइटी बांबे में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। लेकिन इंजीनियरिंग से उनका मन नहीं भरा। वे कहते हैं, "पढ़ाई के दौरान ही मेरा दर्शनशास्त्र की ओर झुकाव था। मैं हमेशा जीवन का अर्थ जानने की कोशिश करता था। जो पढ़ाई मैंने की थी, उसमें अच्छे वेतन पर नौकरी मिल जाती।

    पैसे की कोई कमी नहीं थी, मन कुछ और ही करना चाहता था। विज्ञान और तकनीक की ऊंचाइयों को छूने के बावजूद, मन में एक गहरा प्रश्न हमेशा बना रहा—“जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या है?” मैने यह पाया कि मेरा असली पैशन फोटोग्राफी था। ट्रैवलर फोटोग्राफर बना।

    पढ़ाई के बाद फिजिक्स पढ़ाने से लेकर फोटोग्राफी, प्रोडक्ट डिजाइन और एनीमेशन तक कई क्षेत्रों में काम किया। एक ट्रैवल फोटोग्राफर रहे और सत्य की खोज में दो हजार किलोमीटर पदयात्रा करते हुए चार धाम की यात्रा के साथ वह काशी, ऋषिकेश और हिमालय पहुंचे।

    संन्यास की ओर बढ़ाया कदम

    जीवन के इस सफर में अभय सिंह को महसूस हुआ कि वे भौतिकता की दौड़ में सुकून नहीं पा सकते। उन्होंने सन्यास की ओर कदम बढ़ाया। यह फैसला उनके परिवार के लिए चौंकाने वाला था। "जब मैंने सन्यास लिया तो मम्मी-पापा ने कहा कि यह पागल हो गया है। लेकिन मुझे लगा कि असली ज्ञान खुद को समझने में है।"

    वह पंचकोष में शामिल आनंदमय, विज्ञानमय, मनोमय कोष और प्राणमय कोष के प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से समझाते हैं। कहते हैं कि यह मन की आवृत्तियों का भंडार है, जहां आपकी इच्छाएं संचित रहती हैं। वे गीता के कई संस्करणों, "विवेक चूड़ामणि" और अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर चुके हैं।

    जीवन का दृष्टिकोण समझाते हुए कहते हैं, "लोग बोलते हैं कि यह पागल हो गया, लेकिन मेरा मानना है कि सब महादेव करते हैं। असली ज्ञान मन को समझने में है।" वे अपने अनुभवों और ज्ञान से लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जीवन की सच्ची खुशी आत्मा की खोज में है।