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    सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाला कोई भी कृत्य बिगाड़ता है सार्वजनिक व्यवस्था: हाई कोर्ट

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 10:45 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मऊ निवासी शोएब की एनएसए के तहत नजरबंदी बरकरार रखी है। कोर्ट ने कहा कि सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाला कोई भी आपराधिक कृत्य सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ता है। शोएब पर 15 नवंबर, 2024 को घोसी में एक घटना के बाद हिंसा भड़काने का आरोप है, जिसके कारण सांप्रदायिक तनाव और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान हुआ। कोर्ट ने कहा कि इस घटना से सार्वजनिक व्यवस्था भंग हुई।

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत मऊ निवासी शोएब की नजरबंदी बरकरार रखी है। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए कहा है कि कोई भी आपराधिक कृत्य यदि सांप्रदायिक तनाव का कारण बनता है और जीवन की गति को अस्त-व्यस्त करता है तो वह केवल कानून-व्यवस्था ही नहीं, बल्कि लोक व्यवस्था का उल्लंघन है। याची ने जिलाधिकारी मऊ के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

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    न्यायालय ने कहा कि यद्यपि आरोपित प्रारंभिक हमला कानून-व्यवस्था के उल्लंघन का साधारण मामला प्रतीत हो सकता है, लेकिन इसका सीधा परिणाम व्यापक दंगा, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान और सांप्रदायिक तनाव था। इसलिए यह मामला पूरी तरह से ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ के दायरे में आता है।

    कोर्ट प्रशासन के तथ्यात्मक निष्कर्ष को अपील की तरह नहीं सुन सकती। तथ्य की संपुष्टि प्रशासन का निष्कर्ष है। मुकदमे से जुड़े संक्षिप्त तथ्य ये हैं कि 15 नवंबर, 2024 को घोसी क्षेत्र में याची ने अपनी बाइक से सुक्खू की बाइक में टक्कर मार दी।

    मौखिक विवाद के बाद याची ने साथियों को बुलाया और उनमें एक ने सुक्खू पर चाकू से हमला कर उसकी गर्दन और कंधे पर गंभीर चोटें पहुंचाई। मामला केवल मारपीट तक ही सीमित नहीं था। जैसे ही पीड़ित को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, शोएब की ओर से बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए और दोनों पक्षों में झड़प, पथराव शुरू हो गया।

    अस्पताल में अफरा-तफरी मच गई। भीड़ ने अस्पताल के दरवाजे, खिड़कियां और अन्य कीमती उपकरण भी क्षतिग्रस्त कर दिए। इसके बाद 200 से अधिक लोगों की भीड़ ने घोसी-दोहरीघाट मुख्य मार्ग जाम कर दिया। पुलिस ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो नारेबाजी करते हुए पुलिस वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया।

    आस-पास की दुकानों, धार्मिक स्थलों और सार्वजनिक संपत्ति को भी ईंट-पत्थर फेंककर नुकसान पहुंचाया। अभियोजन के अनुसार उपद्रव में सर्किल आफिसर और थाना प्रभारियों सहित कई पुलिसकर्मी गंभीर घायल हो गए। खंडपीठ ने कहा, याची के कृत्य के कारण सभी घटनाएं घटीं।

    याची का कहना था कि सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाली किसी भी घटना से उसका कोई लेना-देना नहीं है। प्राथमिकी में उसके खिलाफ हिंसा के लिए भीड़ का नेतृत्व करने का आरोप नहीं है। यह घटना कानून-व्यवस्था के साधारण उल्लंघन का मामला था और जब भीड़ ने हिंसा की, तब वह हिरासत में था और उसे अस्पताल ले जाया गया था।

    कोर्ट ने कहा, यह सच है कि याची और उसके साथियों द्वारा मोटरसाइकिलों में टक्कर लगने की छोटी सी घटना को लेकर सुक्खू पर चाकू से हमला करने का कृत्य कानून-व्यवस्था के उल्लंघन का साधारण मामला हो सकता है,लेकिन उक्त कृत्य का सीधा परिणाम यह हुआ कि दो समुदायों के बीच तनाव फैल गया, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक व्यवस्था बिगड़ गई।

    कोर्ट ने कहा कि निवारक निरोध के मामलों में न्यायिक समीक्षा की सीमित गुंजाइश है। वह निरोध प्राधिकारी की व्यक्तिपरक संतुष्टि की सत्यता पर तब तक निर्णय नहीं देता जब तक कि वह अप्रासंगिक विचारों पर आधारित न हो या ‘स्पष्ट रूप से बेतुका’ न हो। रासुका के आधार सुविचारित थे।