11 हजार रुपये के लिए रेलवे की मुकदमेबाजी पर हाई कोर्ट को आश्चर्य, कहा- इससे ज्यादा वकीलों की फीस है
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 साल पुराने मुकदमे में 11 हजार रुपये के मुआवजे के भुगतान के आदेश को चुनौती देने पर रेलवे को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि वकीलों की फीस मुआवजे से कहीं ज्यादा है और ऐसे मुकदमे न्याय व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। कोर्ट ने रेलवे अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा है और मुकदमेबाजी में हुए खर्च का विवरण तलब किया है।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 साल की मुकदमेबाजी के बाद उत्तर मध्य रेलवे सूबेदारगंज, प्रयागराज को बतौर मुआवजा व वाद खर्च वादी को 11 हजार रुपये भुगतान करने संबंधी राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश के खिलाफ याचिका दायर करने पर आश्चर्य प्रकट किया है।
कहा, वकीलों की फीस में खर्च, मुआवजे से कहीं अधिक है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत राय सहारा केस में साफ कहा है कि व्यर्थ व निरर्थक मुकदमे भारतीय न्याय व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। इस कारण महत्वपूर्ण मुकदमों के निपटारे के लिए कोर्ट के पास समय नहीं बचता, निर्दोष परेशान होता है।
न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने भारत संघ व अन्य बनाम विजय कुमार मालवीय की याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। कोर्ट ने रेलवे के नई दिल्ली स्थित लीगल सेल के वरिष्ठ अधिकारी से इस बात के लिए व्यक्तिगत हलफनामा मांगा और पूछा कि छोटी सी रकम का मुआवजा व खर्च भुगतान करने संबंधी आदेश के खिलाफ किन परिस्थितियों के कारण हाई कोर्ट में उत्तर मध्य रेलवे प्रयागराज द्वारा याचिका दायर की गई?
कोर्ट ने जिला उपभोक्ता फोरम से हाई कोर्ट तक मुकदमेबाजी में रेलवे व भारत सरकार द्वारा अबतक कुल खर्च का विवरण मांगा है। कहा, क्यों न उस अधिकारी से खर्च की वसूली की जाए जिसकी राय से हाई कोर्ट में छोटे से मामले को लेकर याचिका दाखिल की गई है। प्रकरण में अगली सुनवाई पांच अगस्त को होगी।
विपक्षी वादी ने ट्रेन विलंबित होने के कारण माल की आपूर्ति समय से न होने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिला उपभोक्ता फोरम में वाद दायर किया। फोरम ने 25 हजार मुआवजा व दो हजार वाद खर्च का अवार्ड दिया। इसे भारत सरकार द्वारा राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील में चुनौती दी गई।
कहा गया कि नियम 115 के अनुसार कोहरे के कारण ट्रेन लेट होती है और सामान की आपूर्ति समय से नहीं हो पाती तो इसके लिए रेलवे को लापरवाही का जिम्मेदार नहीं माना जाएगा। राज्य आयोग ने मुआवजा 10 हजार व वाद खर्च एक हजार यानी कुल 11 हजार का भुगतान करने का आदेश दिया।
इसके खिलाफ रेलवे की पुनरीक्षण अर्जी राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने खारिज कर दी। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। केस 2008 से चल रहा है। कोर्ट ने कहा, ‘रेलवे ने अवार्ड से कई गुणा अधिक मुकदमा लड़ने में खर्च कर दिया।’
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