Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Prayagraj News : 'गुलाबी गैंग' ने तोड़ा रेलवे की ठेकेदारी में पुरुषों का वर्चस्व, शून्य से करोड़ों तक पहुंचाया कारोबार

    Updated: Wed, 10 Apr 2024 07:09 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक महिला ने सिविल और मैकेनिकल क्षेत्र में ना सिर्फ खुद काम शुरू किया है। बल्कि दूसरी महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ा है। पति की मौत के बाद कारोबार को शून्य से बढ़ाकर करोड़ों के टर्नओवर में बदला। उनके स्टाफ में महिलाएं ही हैं। संघर्ष की यह कहानी औरों के लिए भी प्रेरणादायक है।

    Hero Image
    Prayagraj News : 'गुलाबी गैंग' ने तोड़ा रेलवे की ठेकेदारी में पुरुषों का वर्चस्व, शून्य से करोड़ों तक पहुंचाया कारोबार

    ज्ञानेंद्र सिंह, प्रयागराज। नारी शक्ति है, गौरव है और अभिमान भी। नारी के विभिन्न स्वरूप अपने समाज में दिखाई देते हैं। कुछ ऐसी ही जिजीविशा प्रयागराज की मंजू में दिखाई देती है, जिनके जोश, जज्बे और जुनून ने कांटों भरी राह में भी उन्हें सफलता के सोपान तक पहुंचाया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इंजीनियर पति राजेंद्र की मौत और 20 वर्ष के बेटे शुभम के दुर्घटनाग्रस्त होकर बेड जाने के बाद भी हार नहीं मानी, संघर्षों के सामने घुटने नहीं टेके। उस कार्य को चुना, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व है।

    रेलवे में ठेकेदारी उन्होंने शून्य से शुरू किया और अब करोड़ों में काम है। काम करने वाली टीम में ज्यादातर महिलाओं को ही स्थान दिया।

    तीर्थराज की मंजू अब गुलाबी गैंग की लीडर के नाम से मशहूर हो चुकी हैं। नारी को वह प्रबल पहचान दी है जिसके सुखद परिणाम की अनुभूति महिलाएं कर सकती हैं।

    मंजू की यह कहानी लगती रील लाइफ जैसी है मगर रीयल है। घर में पड़ी मानसिक बेड़ियों को अपनी लगन और मेहनत से तोड़कर उन्होंने नारीत्व को सशक्त और समृद्धि की नई पहचान दी। छोटे-छोटे कदम बड़े ही प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाया, जो भविष्य में इतिहास रचने के परिचायक बने।

    मंजू को कम पूंजी में काम की तलाश थी। उस कार्य को चुना, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व है। रेलवे में ठेकेदारी के रजिस्ट्रेशन कराने में पूरे डेढ़ वर्ष लग गए थे। बताती हैं कि टीएसएल से सेवानिवृत्त उनके पिता 50 रुपये ही देते थे, वह दिन भर में खर्च हो जाते थे और कोई काम नहीं होता था तो शाम को खाली हाथ घर लौटते समय उन्हें बेहद पीड़ा होती थी।

    रेलवे के कार्यालय से स्कूटी से घर लौटती थीं तो यमुना ब्रिज पर उनके आंसू भर जाते थे। घर पहुंचती तो पिता हौसला बढ़ाते और फिर अगले दिन वह निकल पड़तीं। आखिर एक दिन उन्हें प्लेटफार्म मिल ही गया।

    रेलवे में उन्हें सबसे पहला ठेका इंजन के पार्ट की सप्लाई का मिला। फिर तो उनकी राह बनती चली गई। जल्द ही काल्पी ब्रिज और फिर चंबल ब्रिज की पेंटिंग का ठेका मिल गया।

    इसके बाद उन्होंने झांसी मंडल तथा इलाहाबाद मंडल में मुगलसराय (अब पीडीडीयू नगर) से गाजियाबाद तक प्लेटफार्म की सीढ़ियों तथा फुटओवरब्रिज के अगल-बगल जाली का काम कराया। संसद भवन में कैटरिंग में काम उनको मिला है।

    माफिया से मुकाबले को स्कूटी से पहुंचता है 'गुलाबी गैंग'

    मंजू अब पाइप लाइन बिछाने से लेकर सड़क निर्माण के क्षेत्र में भी उतर चुकी हैं। रेलवे के ठेके में माफिया से मुकाबला किया तो चंबल में काम के दौरान उन्हें डाकुओं ने पैसे के लिए धमकाया भी। ठेकेदारी में माफिया से मुकाबला को अपनी कंपनी की युवतियों के साथ स्कूटी से पहुंच जाती थीं।

    उनकी कंपनी में 70 प्रतिशत युवतियां और महिलाएं हैं, जो हर मुश्किल में मंजू के साथ खड़ी हो जाती हैं। सिविल और मैकेनिकल दोनों क्षेत्र में उतरीं मंजूरी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया है।

    रेलवे स्टेशनों पर इन दिनों वह लिफ्ट लगाने का कार्य कर रही हैं। इसके साथ ही हर घर से नल से जल योजना के तहत लगाई जा रही पानी की टंकियों की लोहे की सीढ़ियों का फैब्रिकेशन काम बड़े स्तर पर मिला है।

    रेलवे में कमीशनखेरी नहीं, इसलिए चुना

    रेलवे के लिए मैकेनिकल और इंजीनियरिंग विभाग के लिए काम करना बहुत चुनौतीपूर्ण है। मंजू कहती है कि संघर्ष के समय काम तो बहुत मिले लेकिन मैंने रेलवे में ठेकेदारी को चुना। क्यों कि रेलवे के काम में कमीशनखोरी नहीं है।

    अच्छा काम काने वाला का सम्मान है और यहां के अधिकारी बहुत सुलझे हुए हैं। मात्र डेढ़ माह में रेलवे के जीएम का सैलून बना दिया। इसके लिए अपनी टीम के साथ रात-दिन मेहनत किया। इससे रेलवे में कंपनी (श्रीविष्णु इंटरप्राइजेज, श्रीविष्णु इंजीनियरिंग) की साख बन गई।