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    Guava Farming Crisis : इलाहाबादी अमरूद पर अमेरिका और यूरोप की बीमारी का वार, दो वर्ष में सूख गए सैकड़ों पेड़

    Guava Farming Crisis प्रयागराज और कौशाम्बी में अमरूद की बागवानी बीमारियों से परेशान है। पहले उकठा रोग से बागवान जूझ रहे थे अब जड़ ग्रंथि रोग ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यह रोग अमेरिका अफ्रीका यूरोप और पूर्वी एशिया से आया है जिससे पेड़ों की जड़ों में गांठे पड़ जाती हैं और पत्तियां पीली हो जाती हैं। पिछले एक साल में सैकड़ों पेड़ सूख चुके हैं।

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava Updated: Fri, 22 Aug 2025 06:00 PM (IST)
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    प्रयागराज और कौशांबी में अमरूद की खेती पर संकट के बादल हैं। बागों पर जड़ गांठ रोग का खतरा है।

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। Guava Farming Crisis संगमनगरी का नाम भले ही इलाहाबाद से बदल कर प्रयागराज हो गया हो, लेकिन अमरूद तो इलाहाबादी ही कहलाता है। यह पिछले कुछ समय से बीमारियों की मार से बेहाल है। बीते दो वर्षों में अमेरिका व यूरोपीय देशों में फलों को लगने वाली बीमारी सुर्खा व अन्य प्रजातियों का दुश्मन बन चली है।

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    प्रयागराज व कौशांबी में लगभग 4,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में अमरूद की उपज होती है। उत्पादकों का कहना है कि अभी तक उकठा नामक बीमारी ही परेशानी का सबब थी, अब अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप व पूर्वी एशिया से आए जड़ ग्रंथि रोग ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

    Guava Farming Crisis प्रयागराज का भगवतपुर, कोरांव, मेजा और कौशाम्बी जनपद का चायल क्षेत्र अमरूद का गढ़ कहा जाता है। यहां के ललित (सुर्खा) अमरूद के चाहने वाले विदेशों तक से इसे मंगाते हैं। इसके अलावा सफेदा, एप्पल कलर, एल-49 (सरदार), ललित (सुर्खा), धवल व श्वेता अमरूद के स्वाद के भी क्या कहने। उकठा रोग से बागवान पहले ही जूझ रहे थे। अब जड़ ग्रंथि रोग भी घाटे का सबब बन रहा है।

    केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा, लखनऊ की एक रिपोर्ट बताती है कि अमरूद के पेड़ में होने वाली यह बीमारी रोग पहले अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप व पूर्वी एशिया में ही पाई जाती थी। पौधों के स्थानांतरण से यह भारत के यूपी समेत अन्य प्रदेशों में आ गई। यह बीमारी पौधों के स्थानांतरण से फैली है। प्रयागराज व कौशाम्बी भी इससे अछूता नहीं रहा।

    औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र खुसरोबाग के प्रभारी विजय किशोर सिंह कहते हैं कि जिले के कई बागवान छत्तीसगढ़ से थाई गोवावा प्रजाति के पौधे लाते हैं। अनुमान है कि वहीं से संक्रमित पौधे यहां भी आ गए। फिर बीमारी ने यहां अपने पैर जमा लिए। बीते एक साल के अंदर ही अमरूद के सैकड़ों पेड़ यहां इसकी वजह से सूख चुके हैं।

    जड़ों में पड़ जाती हैं गांठे

    Guava Farming Crisis उकठा और जड़ ग्रंथि दोनों ही रोग पेड़ों में फूल आने के दौरान लगते हैं। उकठा में पेड़ की पत्तियां सूखने लगती हैं। शाखाएं फट जाती हैं, जबकि जड़ ग्रंथि रोग में पेड़ की जड़ों में गांठे पड़ जाती हैं। फिर उसकी पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। नई बीमारी होने के कारण बागवान इसे भांप नहीं पाते। वह उकठा का उपचार करते रहते हैं। इसी बीच पेड़ दम तोड़ देता है।

    22 वर्ष पुराने पेड़ों की भी निकल गई जान

    भगवतपुर के जनका निवासी बागवान हकीमुद्दीन ने बताया कि पिछले करीब डेढ़ या दो साल से जड़ वाली बीमारी ने बाग को घेर रखा है। पिछले साल ही पांच से छह पेड़ इसकी वजह से सूख गए। कई और पेड़ इसकी चपेट में है। भगवतपुर के दिनेश सोनकर ने बताया कि बाग में 20 से 22 साल तक के पुराने करीब 200 पेड़ थे। इनमें जल्दी से कभी कोई रोग लगता ही नहीं था। इस बार आई नई बीमारी में करीब 20 पेड़ सूख गए हैं। पहले उकठा रोग मान रहे थे। बाद में जब सूखे हुए पेड़ों की जड़े निकाली तो उसमें गांठे मिलीं।