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    Astronomical Event: आज और कल देखें आसमान में जेमिनिड उल्का बौछार, आसमान साफ रहने पर दिखेगा अनोखा नजारा

    Updated: Sat, 13 Dec 2025 10:38 AM (IST)

    प्रयागराज में दिसंबर की खगोलीय घटनाओं में जेमिनिड उल्का पिंडो की बौछार सबसे आकर्षक है। 13 और 14 दिसंबर की रात इसे देखा जा सकता है। आसमान साफ होने पर ब ...और पढ़ें

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    21 दिसंबर की रात दिखने वाले उल्का बौछार का आरेख। सौ.जवाहर तारामंडल की तरफ से जारी

    अमलेन्दु त्रिपाठी, प्रयागराज। दिसंबर की खगोलीय घटनाओं में सब से अधिक आकर्षक जेमिनिड उल्का पिंडो की बौछार है। इसे 13 और 14 दिसंबर की रात देखा जा सकता है। इसके लिए आसमान साफ होना आवश्यक है। यदि बादल नहीं हुए तो आप इन्हें बिना दूरबीन की मदद के पूरी रात देख सकते हैं। प्रत्येक वर्ष होने वाली इस घटना की विशिष्टता है कि प्रति घंटे 30 से 40 उल्का बारिश होती है।

    ये उल्कापिंड जेमिनी (मिथुन) तारामंडल से आते हुए प्रतीत होते हैं। इसे उल्का वर्षा का विकिरण बिंदु कहते हैं। इसी नाम के साथ तारामंडल के लैटिन नाम जेमिनी को जोड़ा गया है, जो उल्का वर्षा के स्रोत के पास स्थित है। अधिकांश उल्का वर्षा धूमकेतुओं से होती है लेकिन जेमिनिड्स क्षुद्रग्रह 3200 फेथान से छोड़े गए मलबे से उत्पन्न होती है।

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    इसे चट्टानी धूमकेतु भी माना जाता है। जब पृथ्वी इस छोटे ग्रह से छोड़े गए धूल और चट्टानों के मलबे के बादल के पास से गुजरती है तो ये कण वायुमंडल में जलकर चमकदार लकीरें बनाते हैं। इसे ही हम उल्कापिंड कहते हैं। जवाहर तारामंडल की विज्ञानी सुरूर फातिमा कहती हैं कि अधिकांश उल्का वर्षा आधी रात के बाद दिखाई देती हैं लेकिन जेमिनिड्स अपेक्षाकृत जल्दी शुरू हो जाती हैं।

    इन उल्काओं को पहली बार 1862 में मैनचेस्टर, इंग्लैंड में देखा गया। खगोल विदों का यह भी कहना है कि प्रत्येक वर्ष यह उल्का बौछार तीव्र होती आई है। इसके अतिरिक्त 21 दिसंबर की रात से उर्सिड्स उल्का बौछार भी नजर आएगी। इसे 22 दिसंबर तक देख सकेंगे। जहां चांदनी रात होगी वहां इसे देखना कठिन होगा। प्रत्येक घंटे करीब दस उल्काएं गिरती नजर आएंगी।

    पूर्व में एक दो बार करीब 100 उल्का प्रति घंटे की भी बौछार हो चुकी है। ये उल्कापिंड आकाश में उर्सा माइनर तारामंडल (छोटे भालू) की दिशा से निकलते हुए दिखाई देते हैं। बीटा उरसा माइनोरिस (कोचाब) तारे के पास स्थित है और उल्का बौछारों को उनके चमकने वाले बिंदु के नाम पर रखा जाता है, जो धूमकेतु आठ पी/टटल के मलबे से बनते हैं। यह वर्ष की अंतिम उल्का वर्षा है।

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    इसकी खोज 20वीं शताब्दी में मानी जाती है। विलियम एफ डेनिंग ने पहली बार देखा था। जवाहर तारा मंडल की विज्ञानी कहती है कि इसके बारे में डा. ए बेकवार ने 1945 में विस्तृत अध्ययन किया। यह भी बताती हैं कि उर्सिड्स उल्का बौछार को शहर से दूर के क्षेत्रों से ज्यादा अच्छी तरह से देख सकते हैं।

    पहाड़ी क्षेत्रों में इन्हें बेहतर तरीके से देखा जा सकता है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों के साथ दक्षिण भारत के ऊंचे पठार जैसे केरल/कर्नाटक के पहाड़ी क्षेत्रों में बेहतर नजर आएगा। इसकी वजह यह कि यहां प्रदूषण और रोशनी प्राय: कम होती है।