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    ये महाकुंभ है... शाही स्नान से पहले उमड़ा आस्था का जनसैलाब, चारों ओर दिखा श्रद्धालुओं का रेला

    Updated: Mon, 13 Jan 2025 11:51 AM (IST)

    महाकुंभ नगरी में सूर्यास्त के समय संगम तट पर अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। सूर्य की सुनहरी किरणों से जगमगाता संगम उत्ताल लहरों से निर्मित जलराशि और पुलों की छटा देखते ही बन रही है। लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई और मंत्रोच्चारण के साथ हवन किया। हर तरफ भक्तिमय माहौल है। गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई... देव दनुज किन्नर-नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं...वर्तमान में भी प्रासंगिक नजर आई।

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    महाकुंभ में शाही स्नान से पहले उमड़ा आस्था का जनसैलाब

    शिवा अवस्थी, महाकुंभनगर। सूर्य देव अस्ताचल की ओर जा रहे हैं। किरणों की लालिमा से संगम तट की रेतीली धरती पर चहुंओर स्वर्णिम आभा बिखरी हुई है। उत्ताल लहरों से निर्मित सुनहरी जलराशि का समूह हर किसी को आकर्षण के मोहपाश में बांधने को आतुर दिख रहा है। महाकुंभ के इस पावन, पवित्र, आह्लादित करने वाले सुअवसर का पहला अमृत (शाही) स्नान 14 जनवरी को है पर आस्था का ज्वार  उमड़ पड़ा है।

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    हर तरफ मेला है, ठेला है, साधु-संतों, गृहस्थों का बस रेला ही रेला है। तीरथपति प्रयाग आने के बाद हर गली-सड़क संगम की ओर सैलाब लिए मुड़ रही है। अद्भुत, विहंगम, बस नजर भर निहारिए और नजरों में भर लीजिए इस सुअवसर को। संगम तट पर बनाए गए पुलों, रेती व जल प्रवाह की कल-कल को।

    हजारों, लाखों व करोड़ों लोग संगम तट, सड़कों, चौक-चौराहों, मठ-मंदिरों से लेकर दूर-दूर तक टेंट सिटी में बैठकर माला, मंत्र जप, हवन व यज्ञ में आहुतियों से ऐसा ही कर भी रहे हैं। लेटे हनुमान बाबा व किला के सामने तट पर सीढ़ियों में खड़े हरियाणा के भिवानी के संजय शर्मा व कैलाश शर्मा अमृत पान करते मिले।

    ढलती शाम में दातुन करते हुए बोले-तीन गाड़ियों से आए हैं। जूना अखाड़ा में रुके हुए हैं। हरिद्वार कुंभ में भी गए थे। प्रयागराज में पहली बार आए हैं। सुविधाएं बढ़िया हैं। कोई दिक्कत नहीं हुई। मोदी व योगी ने श्रद्धालुओं की मौज कर दी है। बातें और साथ में बीच-बीच में फक सफेद दांतों पर थिरकती उनकी दातुन ने गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई... देव, दनुज, किन्नर-नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं...वर्तमान में भी प्रासंगिक नजर आई।

    आसपास धर्म-अध्यात्म की अलौकिक छाप छोड़ते युवाओं का समूह भी ये दृश्य देखकर उन्हें कुछ देर तक अपलक निहारता रहा। मानों वहां से कुछ ही दूर स्थित दक्षिण शैली में निर्मित श्री आदि शंकर विमान मंडमपम को प्रणाम कर रहे हों। इसी तरह 28 सेक्टर में विभाजित महाकुंभ नगर में कहीं अखाड़ों में कठिन तप-साधना जीवन मे तमाम कष्टों, बाधाओं के बावजूद डटकर खड़े रहने का संकल्प लेती दिख रही तो 13 किलोमीटर के परिक्षेत्र में हर वर्ग, समुदाय, समाज के श्रद्धालुओं की आस्था एकता का बिगुल फूंकती नजर आ रही।

    बीच-बीच में पुलिस, प्रशासन के कैंप, मोदी-योगी की तस्वीरों वाली बड़ी-बड़ी होर्डिंग से विकास का, एकजुटता का, अपनत्व का, प्रजा के प्रति राजतंत्र की भूमिका व प्रतिबद्धता का अहसास करा रही हैं। संगम तट पर नौकायन व अगाध जलराशि के बीच गंगा, यमुना व सरस्वती के पावन जल के स्पर्श की उत्कंठा, आतुरता हिलोर ले रही। कोई नौका पर ही बैठे-बैठे अलग-अलग तरह से संगम की यादें सहेज लेना चाह रहा है।

    कोई उन अपनों की स्मृतियां ताजा कर रहा, जिनकी अस्थियां कभी संगम तट पर विसर्जित कर गए। न जाने वो कहां चले गए, ऐसे सवालों के बीच हरदोई के विमलेश पास खड़े अपने साथी से बोले, ये संगम की पवित्र अमृत जैसी जलराशि मोक्षदा है। ऐसे अप्रतिम, अविस्मरणीय, अविचल व अकल्पनीय क्षेत्र में बार-बार आने का मन है।

    उधर सूर्य देवता अस्ताचल की ओर गए और इधर संगम तट पर बिजली के बल्बों की टिमटिमाहट ने स्वर्णिम जलराशि पर चांदनी बिखेर दी। जैसे दिन था, वैसे ही धीरे-धीरे गहराती रात में भी बस हर सड़क पर पैदल, बग्घी, हाथी, घोड़ा व पालकी पर सवार साधु, संत, सज्जन और दुर्जन भी अपने अंदाज में है। हर तरफ बस जन ही जन...ये उल्लास, ये आह्लादित करने वाले पल, क्षण यही कह रहे हैं ...ये महाकुंभ है।

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