मोबाइल की लत से छूटी गार्ड की नौकरी फिर भी आदत नहीं सुधरी, रीढ़ की हड्डी में हुआ घाव, अब अस्पताल में भर्ती
आजकल बुजुर्ग भी मोबाइल की लत के शिकार हो रहे हैं, जिससे उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही है। एक मामले में, एक सेवानिवृत्त बुजुर्ग को आईसीयू में भर्ती करा ...और पढ़ें

बुजुर्गों में मोबाइल फोन का सदैव उपयोग करने की लत से मनोचिकित्सकों के समक्ष घातक परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। मोबाइल फोन से बच्चों के मनोभाव बिगड़ने की परेशानी अधिकांश घरों में है। जिन बुजुर्गों पर ऐसे बच्चों को सही और गलत समझाने की जिम्मेदारी होनी चाहिए वे स्वयं इंटरनेट मीडिया के मकड़जाल में फंसने लगे हैं। मनोचिकित्सकों के सामने आ रहे मामले घातक परिणाम दिखाने वाले हैं।
इन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मोबाइल की लत
सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त बुजुर्ग के साथ ऐसी स्थिति आई कि परिवार को उन्हें अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कराना पड़ा। एक अन्य अधेड़ उम्र के व्यक्ति को पहले तो गार्ड की नौकरी से हटा दिया गया, फोन से आंखें फिर भी नहीं हटीं। दिन-रात फोन ही देखते रहने से बेडसोर (रीढ की हड्डी में घाव) हो गया।
काल्विन की ओपीडी में 55 वर्षीय बेडसोर के मरीज
मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय 'काल्विन' में नैदानिक मनोचिकित्सक डाॅ. पंकज कोटार्य की ओपीडी में लाए गए 55 वर्षीय मरीज के बारे में साथ आए तीमारदार ने बताया कि गार्ड की नौकरी करते थे। ड्यूटी पर रहते अधिकांश समय फोन देखने के चलते सुरक्षा एजेंसी ने नौकरी से हटा दिया। घर पर रहने लगे तो नौकरी जाने का पश्चाताप की बजाए फोन देखने की आदत और भी गहरा गई। अधिकांश समय लेटे हुए या कुर्सी पर घंटों बैठे रहने के चलते रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में बेडसोर हो गया।
नंबर गेम
01 घंटे से ज्यादा फोन देखने पर होता है विपरीत प्रभाव
06 से आठ घंटे तक हो रही स्क्रीन पर निर्भरता
30 नये बुजुर्गों की हर महीने करनी पड़ रही काउंसिलिंग
02 विधियों से छुड़ाई जाती है मोबाइल की लत
07 बुजुर्गों को दो माह में भर्ती करके किया गया इलाज
11 बुजुर्गों को फोन के चलते हुए अन्य मानसिक रोग
मना करने पर बच्चों सा बिस्तर पर पटकने लगे हाथ-पांव
मनोचिकित्सक डाॅ. राकेश पासवान ने 65 वर्षीय ऐसे मरीज का इलाज किया जिन्हें परिवार के द्वारा लाए जाने पर शहर के एक अस्पताल में आइसीयू में भर्ती किया गया था। इन बुजुर्ग को फोन देखने के चलते पांच दिनों से नींद नहीं आई थी, खाना-नाश्ता नहीं किया था। घर के लोगों ने फोन इस्तेमाल न करने का दबाव बनाया तो बच्चों की तरह बिस्तर पर ही हाथ-पैर पटकने लगे।
बदल रही मानसिकता
फोन के अत्यधिक इस्तेमाल से लोगों की मानसिकता बदल रही है। रात में कमरे की रोशनी अन्य लोगों को बंद नहीं करने दे रहे हैं। घर के लोग सो जाने के लिए कहते हैं तो चिढ़न हो रही है। आधी रात को परिवार में फोन के चले झगड़े हो रहे हैं। घर के बच्चों से भी फोन के आदी हो रहे लोग बोलना बात करना पसंद नहीं कर रहे हैं।
ऐसे असर दिखाती है दवा
मनोचिकित्सकों के द्वारा जो दवाएं दी जाती हैं वह डोज और समय के अनुसार मस्तिष्क की कुछ विशेष नसों पर असर करते हुए उन्हें शांत करती हैं। फोन से प्रभावित रोगी को इससे सही और गलत का एहसास होने लगता है। इसके बाद जो काउंसिलिंग होती है उसी धनात्मक सोच को चिकित्सक बढ़ाते हैं। कुछ दिनों में फोन वाली सोच और मस्तिष्क का तारतम्य टूट जाता है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान कहते हैं कि मोबाइल अब सभी के लिए जरूरी हो गया है लेकिन इस पर अनावश्यक समय बिताना घातक है। एक बुजुर्ग को बेडसोर हो गया, एक को आइसीयू में भर्ती करके इलाज करना पड़ा। यह मामले मोबाइल के नशे की चरम सीमा को दिखाने वाले हैं। परिवार को ध्यान देना चाहिए कि बच्चे ही नहीं, बुजुर्ग भी फोन से अपने लिए परेशानी उतन्न कर रहे हैं।

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