नियमित तरीके से नहीं किया जा सकता डीएनए परीक्षण: हाई कोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि बच्चे के पितृत्व निर्धारण के लिए डीएनए परीक्षण नियमित रूप से नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति चवन प्रकाश की पीठ ने यह टिप्पणी घरेलू हिंसा अधिनियम से जुड़े एक मामले में पति की याचिका खारिज करते हुए की। कोर्ट ने कहा कि डीएनए परीक्षण के आदेश केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही दिए जा सकते हैं, जहाँ पक्षों के बीच शारीरिक संबंध साबित न हो पाए।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए डीएनए परीक्षण नियमित तरीके से नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति चवन प्रकाश की एकल पीठ ने कहा कि डीएनए परीक्षण के आदेश केवल ऐसे विशिष्ट परिस्थितियों में ही पारित किए जा सकते हैं, जहां प्रासंगिक अवधि के दौरान पक्षों के बीच शारीरिक संबंध साबित नहीं हो।
कोर्ट ने उक्त टिप्पणी के साथ घरेलू हिंसा में महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (डीवी एक्ट) से जुड़े मामले में पति की याचिका खारिज कर दी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वाराणसी द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने डीएनए परीक्षण के लिए किसी भी आदेश से इनकार करने वाले विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ पति की अपील को खारिज कर दिया था।
प्रकरण विपक्षी संख्या 2 (पत्नी) द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर शिकायत से संबंधित है। पति ने दावा किया कि हालांकि उसकी शादी अप्रैल 2008 में हुई थी, लेकिन पत्नी ससुराल में केवल एक सप्ताह ही रही।
पत्नी स्नातक होने के साथ इंटर कालेज में शिक्षिका है तथा उसके साथ इसलिए नहीं रहना चाहती क्योंकि वह ‘अशिक्षित ग्रामीण’ है। दिसंबर 2012 में जन्मी बच्ची उनकी जैविक बेटी नहीं थी, क्योंकि पत्नी मई 2011 से अपने माता-पिता के घर में रह रही थी।
एकल पीठ ने कहा- वैध विवाह के अस्तित्व के दौरान पैदा हुए बच्चे की वैधता के पक्ष में क्रमिक धारणा रहती है और कानूनी मान्यता यह है कि पति पैदा हुए बच्चे का पिता है। यह अनुमान तभी हटाया जा सकता है जब यह दर्शाया जा सके कि जब बच्चा पैदा हो सकता था, तब दोनों पक्षों की एक-दूसरे तक पहुंच नहीं थी।
कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने विशिष्ट निष्कर्ष दिए हैं और उपरोक्त आदेश पारित करने में कोई अवैधता नहीं है।

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