Maha Kumbh की पूर्वोत्तर तक गूंज: मेघालय के 127 वनवासियों ने संगम में लगाई डुबकी... 'जय तीर्थराज प्रयाग' गूंजा
(Maha Kumbh 2025) महाकुंभ के पावन संगम में पूर्वोत्तर के मेघालय से आए 127 वनवासियों ने आस्था की डुबकी लगाई। हिंदी और अंग्रेजी से अनजान ये वनवासी तीर्थराज प्रयाग की जय-जयकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे। महाकुंभ की दिव्यता और भव्यता में अनेकता में एकता का अद्भुत संगम देखने को मिला। पूर्वोत्तर के खूबसूरत राज्यों में मेघालय का नाम आता है।

रितेश द्विवेदी, महाकुंभनगर। धर्म और संस्कृति को समझने के लिए भाषा से ज्यादा दर्शन का महत्व है। आंखों से महाकुंभ की अलौकिक दृश्य को संजोने के लिए देश और दुनिया के अलग-अलग देश से श्रद्धालु महाकुंभ में स्नान करने आ रहे हैं।
पूर्वोत्तर के सात राज्यों में भी महाकुंभ की महिमा का गुणगान हो रहा है। इसकी झलक उस समय देखने को मिली, जब मेघायल से आए 127 वनवासियों के संगम में डुबकी लगाते हुए तीर्थराज प्रयाग की जय-जयकार करने लगे।
पूर्वोत्तर के खूबसूरत राज्यों में मेघालय का नाम आता है। हरे-भरे पहाड़ और प्राकृतिक सौंदर्य ही उसकी पहचान हैं। प्रयागराज से मेघायल की दूरी लगभग 1300 किमी है। इस राज्य की 75 प्रतिशत आबादी ईसाई धर्म को मानती है। इन सबके बीच सिर्फ 25 प्रतिशत आबादी हिंदू वनवासियों की है।
मेघालय के 127 वनवासियों ने किया स्नान
शुक्रवार दोपहर केसरिया झंडा हाथों में लिए मेघालय की पारंपरिक वस्त्रों को पहने हुए वनवासी कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़े। हिंदी और अंग्रेजी भाषा से अंजान यह वनवासी बस तीर्थराज प्रयाग की जय-जयकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे। मेघायल से लगभग 127 वनवासियों का जत्था स्नान करने के लिए आया था।
मेघायल की पारंपरिक पोशाक (जैनसेम) पहने हुए महिलाओं के जत्थे को लेकर आगे बढ़ रही करूणा किच के चेहरे पर उत्सुकता का अलग भाव नजर आ रहा था। हिंदी के कुछ शब्दों को बोला तो कुछ हाथों के इशारा करते हुए उन्होंने अपने अनुभव का अहसास कराने का प्रयास किया। बताया कि वह पहली बार स्नान करने के लिए महाकुंभ आईं हैं।
धर्म पर पूरी आस्था और निष्ठा है- गंजूराम
महाकुंभ की दिव्यता और भव्यता अनेकता में एकता दिखती है। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से मेघालय से श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन करते हुए संगम तट तक ले जाकर स्नान कराया गया। जत्थे में शामिल प्रत्येक महिला और पुरुष स्नान के बाद त्रिवेणी का जल भरने लगे। साथ में मौजूद गंजूराम ने बताया कि संख्या में हम जरूर कम हैं, लेकिन धर्म पर पूरी आस्था और निष्ठा है। त्रिवेणी के पवित्र जल का स्पर्श उन लोगों को भी कराएंगे,जो यहां आने में असमर्थ थे। यह हमारे के लिए सौभाग्य की बात है।
बांस और बेंत कला वनवासियों के जीवन का आधार
महाकुंभ में स्नान करने मेघायल से आईं अनीता ने बताया कि बांस से बनी टोकरी,कुर्सी और अन्य घरेलू उपयोग की वस्तुओं को तैयार किया जाता है। इसके साथ ही कड़ाई-बुनाई का कार्य वनवासी करते हैं। मेघायल के वन क्षेत्र में ज्यादातर वनवासी में हिंदू हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।