प्रयागराज में बढ़ी कौवों और चीलों की संख्या, पर्यावरण की दृष्टि से सुखद संकेत मान रहे विज्ञानी
अयोध्या के केएस साकेत कॉलेज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त शोध में पता चला कि प्रयागराज में कौवों और चीलों की संख्या बढ़ गई है । वर्ष 2020 में कौवों की संख्या 2386 थी वर्ष 2022 में बढ़कर 2792 हो गई। ऐसे में पितृ पक्ष पितरों को भोजन अर्पण करने के लिए कौवों की तलाश में खाक नहीं छाननी होगी।
मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। पितृ पक्ष पितरों को भोजन अर्पण करने के लिए कौवों की तलाश में खाक नहीं छाननी होगी। इस साल प्रयागराज में कौवों की संख्या बढ़ गई और उनकी कांव-कांव शहरी क्षेत्रों में भी सुनाई देने लगी है। वास की उपलब्धता, जल की प्रचुरता और भोज्य पदार्थों की पर्याप्त मात्रा ने कौवों के साथ चीलों की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। केएस साकेत पीजी कालेज अयोध्या और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के संयुक्त शोध में यह जानकारी सामने आई है।
तीन साल से कौवों और चीलों की जनसंख्या पर कर रहे शोध
यह शोध जर्नल आफ एक्सपेरीमेंटल बायोलाजी के जनवरी 2024 अंक में प्रकाशित होने के लिए स्वीकृत हुआ है। विज्ञानी इसे पर्यावरण की दृष्टि से सुखद संकेत मान रहे हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के डा. अनिल कुमार ओझा और केएस साकेत पीजी कालेज अयोध्या के डा. प्रशांत कुमार तीन वर्षों से प्रयागराज में कौवों और चीलों की जनसंख्या पर शोध कर रहे हैं।
इन स्थानों पर संपन्न किया गया शोध
प्रशांत कुमार और डा. अनिल कुमार ओझा ने यह शोध शहर के उत्तरी छोर बेली कछार, फाफामऊ, सलोरी, शिवकुटी, तेलियरगंज के दस किलोमीटर क्षेत्र में संपन्न किया। इसमें कौवों के लिए रूस्ट काउंट मेथड और चीलों के लिए प्वाइंट काउंट विधि का प्रयोग किया गया। प्रशांत के अनुसार कौवे रात को अपने आश्रय स्थलों पर लौटते हैं, इस दौरान उनकी संख्या की गणना की गई। वहीं चीलों के लिए निश्चित स्थानों पर एक स्थान पर खड़े होकर उनकी गणना की गई। इस आधार पर परिणाम निकाला गया। इसमें कौवों की जनसंख्या जहां इस क्षेत्र में वर्ष 2020 में औसतन 2386 थी, वहीं वर्ष वर्ष 2022 में 2792 पाई गई।
कौवों की संख्या अक्टूबर से फरवरी माह के मध्य सर्वाधिक व जून व जुलाई माह के मध्य निम्नतम पाई गई है। प्रशांत कहते है कि प्रजनन काल (अप्रैल से सितंबर) के दौरान उनकी जनसंख्या कम होती है। इसी प्रकार गर्मी के दिनों में इनकी औसत जनसंख्या निम्नतम 2386 और शीतकाल में सर्वाधित 2856 दर्ज की गई।
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चीलों की संख्या भी करीब दोगुना बढ़ी
चीलों की संख्या 2020 में औसतन 80 और वर्ष 2022 में 144 दर्ज की गई। औसत जनसंख्या सितंबर में सर्वाधिक 169 व मई माह में निम्नतम 57 दर्ज की गई। वर्षा काल में इनकी संख्या सर्वाधित 138 और गर्मी के दिनों में 72 दर्ज की गई।
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पर्यावरण में बड़ी भूमिका निभाते हैं चील-कौवे
कौवे और चील की संख्या में वृद्धि के लाभ हैं तो हानियां भी है। कौवे और चील का मुख्य भोजन मृत जीवों के अवशेष और मानव द्वारा ताज्य खाद्य पदार्थों के अवशेष है। इस प्रकार इनकी बढ़ती संख्या नगरों की स्वच्छता में सहयोग के साथ बीमारियों से हमे बचाते भी है। कीटों का भी भक्षण कर फसल सुरक्षा भी करते हैं और वनस्पतियों के बीजों का प्रसार करने में इनकी बड़ी भूमिका है। हालांकि आक्रामक जाति की श्रेणी में होने के कारण अपने वास स्थान में यह अन्य देशज पक्षियों को पनपने नहीं देते हैं। एकाधिकार स्थापित कर अन्य पक्षियों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। इनकी अत्यधिक बढ़ी हुई संख्या यह प्रदर्शित करती है कि क्षेत्र में अवशेष पदार्थ अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध हैं और जगह की वातावरणीय सेहत चिंताजनक है।
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