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    महाकुंभ आइए तो लीजिए नैमिष दर्शन संग प्रकृति का अनंद, तीर्थ क्षेत्र के जंगल वातावरण को बना रहे मनमोहक

    Updated: Fri, 31 Jan 2025 06:45 PM (IST)

    नैमिषारण्य में महाकुंभ के साथ ही आसपास के धार्मिक स्थल आस्था के केंद्र बने हैं। आप एक दो दिन की यात्रा में ही 88 हजार मुनियों की तपोस्थली नैमिष के चक्रतीर्थ में डुबकी लगा सकते हैं। नैमिषारण्य क्षेत्र सिर्फ आध्यात्मिक और धार्मिक ही नहीं प्राकृतिक दृष्टि से भी समृद्ध है। यहां एक ओर जहां पौराणिक तीर्थ हैं तो वहीं दूसरी ओर हरा-भरा जंगल भी हैं।

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    महाकुंभ आइए तो लीजिए नैमिष दर्शन संग प्रकृति का अनंद

    जगदीप शुक्ल, सीतापुर। प्रयागराज में महाकुंभ के आयोजन के साथ ही आसपास के धार्मिक स्‍थल आस्‍था के केंद्र बने हैं। आप एक दो दिन की यात्रा में ही 88 हजार मुनियों की तपोस्‍थली नैमि‍ष के चक्रतीर्थ में डुबकी लगा सकते हैं। नैमिषारण्य क्षेत्र सिर्फ आध्यात्मिक और धार्मिक ही नहीं प्राकृतिक दृष्टि से भी समृद्ध है। यहां एक ओर जहां पौराणिक तीर्थ हैं तो वहीं दूसरी ओर हरा-भरा जंगल भी हैं। तमाम बदलावों के बावजूद तीर्थ का अरण्य स्वरूप बरकरार है।

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    यहां मां ललिता देवी शक्तिपीठ, व्यास गद्दी, मन-सतरूपा मंदिर, हनुमान गढ़ी, कालीपीठ, देव देवेश्वर, रुद्रावर्त, देवपुरी, चक्रतीर्थ, काशी कुंड, राजघाट, देव देवेश्वर घाट, मिश्रिख के दधीचि कुंड सहित अनेक दर्शनीय स्थल हैं। यदि आप महाकुंभ स्नान के लिए प्रयागराज जा रहे हैं और पर्यटन के साथ ही तीर्थाटन, साधना और प्रकृति से नजदीकी का अनुभव करना चाहते हैं तो यह तीर्थ आपके लिए उपयुक्त स्थान हो सकता है।

    धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण

    यहां मां ललिता देवी शक्ति पीठ है। इसका वर्णन देवी भागवत में भी है। श्लोक है कि ‘वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषेलिंग धारिणी, प्रयागे ललिता देवी कामुका गंध मादने...। ’ देवी भागवत के अनुसार दक्ष द्वारा अपने पति भगवान शंकर के अपमान को मां न सह सकीं और आहत होकर अपने प्राणों की आहुति दे दी।

    तब शंकर जी ने अपने गणों के साथ यज्ञ को नष्ट कर डाला और सती के शव को लेकर इधर-उधर विचरण करने लगे। इस पर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के अंग के 108 टुकड़े कर डाले। उनके शरीर के अंश जिन-जिन स्थानों पर गिरे, वे देवी पीठ बने। नैमिषारण्य में सती जी का हृदय गिरा था।

    श्रीहरि को पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए महराज मनु व देवी सतरूपा ने नैमिष क्षेत्र में कठिन तपस्या की थी। इसी पुण्य भूमि पर ऋषि-मुनियों के आग्रह पर ब्रह्मा जी का छोड़ा चक्र गिरा था। महर्षि वेदव्यास ने यहीं वेद-पुराणों की रचना की थी और सूत महाराज ने ऋषि-मुनियों को कथा सुनाई थी।

    साधकों को भाता यह क्षेत्र

    तीर्थ को जाने वाले सभी मार्गों पर दोनों ओर पेड़ों की छांव है तो क्षेत्र में कई बड़े जंगल हैं। यह तीर्थ के प्राकृतिक संपदा संपन्न होने का परिचय कराते हैं। कल्ली, मिश्रिख और हरदोई मार्गों बिखरी पेड़ों की हरियाली और तीर्थ क्षेत्र के जंगल बरबस ही लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के साथ ही भरपूर सुकून देते हैं। शायद इसीलिए साधकों को भी यह क्षेत्र अधिक भाता है।

    तीर्थ के महत्व के अनुरूप तैयार कराए जा रहे प्रोजेक्ट

    सरकार ने तीर्थ के विकास के लिए श्री नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद का गठन किया, जिसके बाद विकास कार्यों में तेजी आई है। तीर्थ का विकास इसके वैदिक, पौराणिक और प्राकृतिक स्वरूप अनुरूप हो इसकी शासन स्तर से निगरानी की जा रही है। इससे संबंधित प्रस्तावों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं नजर रख रहे हैं। प्राकृतिक संपदा को सहेजने के लिए वेदारण्यम और अध्यात्म को बढ़ावा देने के लिए वैदिक विज्ञान केंद्र का निर्माण प्रस्तावित है।

    ऐसे पहुंचे नैमिषारण्य

    नैमिषारण्य रेल व सड़क मार्ग से जुड़ा है। सीतापुर व बालामऊ जंक्शन से नैमिषारण्य के लिए सीधे ट्रेन की सुविधा है। रेल मार्ग पर सीतापुर से नैमिषारण्य 36 किलोमीटर व बालामऊ से 32 किलोमीटर की दूरी पर है। लखनऊ कैसरबाग बस अड्डा से नैमिषारण्य के लिए सीधे परिवहन निगम की बस सुविधा उपलब्ध है।

    साथ ही सीतापुर, हरदोई बस अड्डे से भी बस सेवा मिलती है। निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ है, जो नैमिषारण्य से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है। हेलपीर्ट का भी निर्माण अंतिम दौर में है। तीर्थ के लिए चार बसे इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जा रहा है। दो बसें वाया संडीला और दो बसें का वाया माल-भरावन संचालित की जा रही हैं।

    ठहरने और खान-पान की बेहतर व्यवस्था

    तीर्थाटन के लिए आने वालों के ठहरने के लिए यहां बेहतर व्यवस्था है। धर्मशाला, लाज से लेकर अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त होटल हैं वहीं भोजन के लिए भी छोटे व बड़े रेस्टोरेंट हैं। दक्षिण भारतीय, राजस्थानी, गुजराती व्यंजनों के लिए रेस्टोरेंट आदि का बनाया जाना प्रस्तावित है।

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